Monday, January 18, 2010

है दुनिया उसीकी,ज़माना उसीका... ओ पी नय्यर और रफ़ी का दर्द में डूबा हुआ एक कालजयी गीत



आज लगभग एक महिना होने आया, आपसे मुखातिब नहीं हो पाया.

पिताजी की तबियत के कारण, काम में थोडा पिछड गया था. मूड भी नहीं बन पा रहा था. गोया कोई बडा़ उपन्यास लिखना था,जो मूड बना रहा था.

इन दिनों, रफ़ी साहब का जन्म दिन चला गया २४ दिसंबर को. मैं संयोग से एक दिन पहले मुंबई में था, तो किसी से मिलने शाम को बांद्रा में था, तो पता चला, रफ़ी साहब का पुराना घर वहीं करीब था. बस, दिल नें चाहा और मैं निकल पडा.

मगर वहां चूंकि रेडियो मिर्ची FM की टीम आयी हुई थी, अंदर जाना संभव नहीं हो पाया, क्योंकि वह कोई किसी फ़िल्म का प्रीमीयर नहीं था जो भागम भाग में चला जाता. बस सोचा बाद में सुकून से दिली सुकूं पाने के लिये फ़िर आऊंगा. बस नीचे रखी हुई उनकी फ़ियेट ज़रूर देखी, जिसमें चाबी लगी हुई थी, और वही छल्ला जो रफ़ी साहब जेब में रखते थे, जब भी वे शौक से खुद गाडी चलाते थे. ऊपर जाना फ़िर कभी ....

फ़िर महेंद्र कपूर जी का भी जन्म दिन चला गया, ९ जनवरी को. उनके साथ बिताये कुछ लमहे याद किये और उनके गाये हुए गीत सुने और गुनगुनाये.

अब परसों स्व. ओ पी नय्यर साहब का जन्म दिन था. दो साल पहले इसी दिन उनसे मिलने जा पहुंचा था उनसे मिलने, मगर मिल नहीं पाया क्योंकि वे कहीं विरार गये थे आदिवासीयों में डाक्टरी करने. कुछ दिन बाद उनके निधन की खबर आयी, तो दिल को धक्का पहुंचा कि दुर्भाग्य रहा था मेरा.

खैर, रफ़ी जी और नय्यर साहब की जोडी तो सबसे ज़्यादह मकबूल हुई. करीब १५० से अधिक गानें उन्होने रफ़ी जी से गवाये. फ़िर महेंद्र कपूर जी से. किशोरदा, मुकेशजी ,हेमंतदा,मन्ना दा तो कम ही गा पाये उनकी बनाई तर्ज़ों पर. और तो और सरदार मलिक की तरह नय्यर साहब नें भी राज कपूर के लियी रफ़ी साहब को गवाया.


रफ़ी साहब को हमेशा यही मलाल रहा कि वे हमेशा हर हीरो या नायक के चरित्र, मेनरिझ्म और अदायगी की तरह से अपनी आवाज़ को बदल लेते थे, जबकि उन्हे लता जी की यह बात बडी़ ही अच्छी लगती थी लता जी नें कभी भी अपनी आवाज़ को नहीं बदला. लताजी के अनबन के बाद जब उनकी फ़िर से लता जी के साथ दिल जमाई हुई, तो उन्होने नय्यर साहब को यह बात बताई थी. नय्यर साहब बहुत हंसे थे, और उन्होने कहा था कि आप जिसे अपनी कमज़ोरी मान रहे हैं , वह तो आपकी खा़सियत है, जो दूसरे गायक कलाकारों को संभव नहीं है.

नय्यर साहब नें कई गानों की धुन बनाईं, ठसक के साथ पंजाबी ठेके पर , ढोलक की दुडकी चाल पर .चेलो, क्लेरिनेट और सॆक्सोफ़ोन जैसे पाश्चात्य वाद्यों से लेकर सारंगी , सितार ,और बांसुरी जैसे खालिस देसी वाद्यों का भरपूर उपयोग किया. मस्त ,रंगीन रोमांटिक गानों पर महारत रखनें वाले नय्यर साहब कभी कभी दर्द भरे गानों का भी सृजन बखूबी किया करते थे .

मेरी पसंद के दो महानतम दर्द भरे गानों की फ़ेहरिस्त में आपके दो गानें है:

चैन से हमको कभी .. और

है दुनिया उसीकी, ज़माना उसीका......



जी हां , फ़िल्म कश्मीर की कली का यह गीत दर्द के एहसासात की इंतेहां बयान करता है. रफ़ी साहब के भीगे हुए स्वरों में एस एच बिहारी नें लिखे हुए भावपूर्ण अश’आर, नय्यर साहब की पेथोस से भरी तर्ज़ में जब हमारे कानों में पडते हैं ,तो ज़माने भर के मुहब्बत करने वाले प्रेमीयों के टूटे दिलों के साथ आपके संवेदनशील दिल के तार अपने आप जुड जाते हैं, और आप उसी भाव में दर्द के उस सागर में डूबने उतरने लगते हैं. साथ में प्रस्तुत सॆक्सोफ़ोन की प्रील्युड और इंटरल्युड में सोलो रेंडरिंग आपके कलेजे को चीर डालती है, और भावनाओं से लहु लुहान हो कर शम्मी कपूर, रफ़ी जी, नयार साहब और आप एकजीव हो जाते हैं
.

कौन नहीं चाहेगा इस तडप को , मेहबूब की बेवफ़ाई को जीना, भोगना?

चलिये, आपको यह गीत सुनवा देतें है. इसके विडियो को मिक्सिंग के लिये उपलब्ध कराने के लिये अल्पना जी का धन्यवाद. आप भी यह प्रयास देखें , सुनें, और पसंद आये तो दाद दिजीये. जिन्हे संगीत और रिकोर्डिंग में दिलचस्पी हो, उन्हे बता देना उचित होगा, कि यह असंभव ही है, कि किसी भी गाने का कराओके उस्के ओरिजिनल साऊंडट्रॆक से हूबहू मॆच करे. प्रस्तुत गाने की विडियो क्लिपिंग में मूल गाने को कराओके ट्रेक के साथ पहले सोफ़्ट्वेयर की मदत से कोशिश करके मिलाया, स्स्वर, ताल और लिप्स मूव्हमेंट में, फ़िर उसपर गीत रिकोर्ड किया और मिक्स किया. ऐसे प्रयोग करने सें जो दिली सुकून मिलता है, वह आप जैसे कलाकार या कवियों को पता ही है.

(आज फ़िल्मी जगत के प्रथम सिंगिंग सुपरस्टार के एल सहगल साहब की भी पुण्यतिथी है. रात को उनके गानों की समाधि में बैठूंगा)





ओडियो प्लेयर भी लगाया है, जिन्हे विडियो स्ट्रीमिंग में परेशानी आती है, उनके लिये. बाकि विडियो के लिये प्ले का बटन दबाने के बाद pause करने से थोडे देर बाद बिना रुके देख सुन सकने में आसानी होगी.
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