Thursday, May 28, 2009

दिल का हाल सुने दिल वाला.. मन्ना दा के गीतों पर कार्यक्रम

मेरे आवाज़ की दुनिया के मित्रों,

आज तक आप मेरे साथ यहां तक आये, संगीत के सुरों के शीतल बयार में हमने अपनी दिल की प्यास बुझायी उन सदाबहार हिंदी फ़िल्मी गीतों से. साथ ही आप हमखयाल हुए उन गीतों से जुडे हुए सृजनकार स्वर ऋषियों की जीवनी से, मेथडोलोजी और अलग अलग विधाओंके पहलुओं से. हम रू ब रू हुए कई गायक और गायिका कलाकारों से , जिनके अथक परिश्रम से हम पा पाये ऐसे नायाब गीत जिन्हे हमने अपने सुरीले जीवन का एक हिस्सा बना रखा है.

जीवन की आपाधापी में, विशेषकर इन दिनों जब मैं अपने इजिप्ट के प्रोजेक्ट के सिलसिले में काफ़ी बाहर हूं, और आप सभी की मुझसे जो अपेक्षायें है, (यदि हैं),जो मैं पूरा नहीं कर पा रहा हूं. वैसे अपने इस प्रोजेक्ट के केस में सृजन की पराकाष्ठा को छू रहा हूं, फ़िर भी इन गीतों का सहारा मिल ही जाता है, कभी बीच में ड्राईंग बनाते बनाते हुए कुछ सुरीला सुन लिया, और दिली सूकून हासिल कर लिया.

मगर अब ये ब्लोग जगत भी दिली सूकून देने लग गया है. मन भागता रहता है पोस्ट करने को. मगर हालात होती है उस बल्लेबाज़ की तरह जो आऊट ओफ़ फ़ोर्म रहता है. कुछ भी लिख पाना समयाभाव की वजह से और वो भी लिखने पढने लायक,बडी़ ही टेडी़ खीर है.Hats Off to all those fellow Bloggers who manage this Herculean Task!! Indeed !!!

तो जैसा कि आपको पिछली बार लिखा था , मैं आज से वह शृंखला शुरु करने की अनुमती लेना चाहता हूं जिसमें मैं बीच बीच में अपने प्रोग्राम की विडियो या ऒडियो क्लिपिंग दिखाऊंगा. कार्यक्रम का नाम था दिल का हाल सुने दिल वाला - जिसमें मन्ना डे के गीतों को पेश किया गया था.

कुछ दो तीन सालों पहले हुए ये कार्यक्रम हुआ था इंदौर में, जो मेरे एक स्वनामधन्य मित्र की प्रयोगधर्मी संस्था श्रोता बिरादरी के बेनर तले हुआ था, जिसके सदस्य होते हैं वे सभी श्रोता जो अच्छे और सुरीले संगीत की गहरी पकड रखते हैं विशेष कर पुरानी फ़िल्मों का संगीत . ये समाज के सभी तबकों से चुन चुन कर स्वयं मेनिफ़ेस्ट होते है और इनके सामने सोच समझ कर ही गाया जा सकता है. ना कोई फ़ीस ना कोई सदस्यता की फ़ोर्मेलीटी, बस महिने के किसी एक शनिवार को शाम को ठीक छः बज कर पचपन मिनीट पर पुराने संगीत पर कोई अनोखे फ़ोर्मेट में, किसी अनोखी थीम पर मात्र देड घण्टे का प्रोग्राम होता था.कभी दुर्लभ गानों के रिकोर्ड या केसेट को सुनवाया जाता था,तो कभी किसी गायक गायिका या संगीतकार की जन्मदिन या पुण्यतिथी पर उसके चुने हुए गीत गाये जाते थे मधुर स्वरों के गायक और गायिकाओं से.

अमूमन सभी कार्यक्रमों की एंकरींग का ज़िम्मा वहन करते थे हमारे प्रदेश के प्रख्यात संस्कृतिकर्मी मेरे अनुज मित्र श्री संजय पटेल , जो अपनी वरेण्य वाणी के सन्मोहन से सभी श्रोताओं के दिलों को एक सूत्र में पिरोने का महत कार्य बखूबी किया करते थे, (अब भी करते है). हर गीत से पहले उसकी पृष्ठभूमी को , उसकी तकनीकी बारिकीयों को यूं पेश करते थे कि श्रोता उस गीत के रंग में खुद ब खुद रंग जाता था कि कलाकार का काम आसान हो जाता था.

साथ ही साथ ,उनके स्पष्ट ,धीर गंभीर आवाज़ का जादू श्रोताओं के साथ खुद कार्यक्रम पेश करने वाले कलाकारों पर भी खूब तारी होता था, और उनके हौसला अफ़ज़ाई की वजह से कलाकार अपने हुनर को कमाल की हद तक जाकर पर्फ़ेक्शनिस्ट की तरह पेश करता था.और क्या चाहिये एक सफ़ल और मुकम्मल प्रोग्राम के लिये.कई सालों से हम दोनों स्टेज पर एक साथ अपने अपने हुनर की सुरभी बिखेरते आ रहे है, और इंशा अल्लाह , आगे भी करते रहेंगे.

इस कार्यक्रम में सभी गीत गाने का सौभाग्य मुझे मिला था और मेरा साथ युगल गीतॊम के लिये दिया था सुश्री शीला वर्मा, और सुश्री प्रियाणी वाणी.

कार्यक्रम का प्रारंभ किया एक भक्ति गीत से -

तू प्यार का सागर है...

जो फ़िल्म सीमा के लिये शैलेंद्र जी ने सरल भावपूर्ण शब्दों मे लिखा है, और संगीत बद्ध किया है शंकर जयकिशन जी नें.

सुनिये और आनंद लिजिये...

Sunday, May 10, 2009

तलत महमूद.. एक कोमल एहसास... दर्द की श्वेत श्याम तसवीर..


तलत महमूद,

जब भी तलत मेहमूद ये नाम हमारे ज़ेहन में आता है, तो हमारे यादों की खिडकीयों पर दस्तक देते हैं उनकी मखमली आवाज़ के मोरपंखी एहसासात.हमारा प्यासा मन खुद ब खुद, सुरों की इन हसीन वादीयों से टकरा कर गूंजते हुए दर्द भरे नगमों के समंदर में डूब जाता है.

अभी परसों तो उनकी बरसी थी.एक मित्र नें मेहफ़िल जमाई और देर रात तक उनके सभी गीत प्यार भरे, दर्द भरे सुनते रहे और फ़िर भी अतृप्त ही रहे.

आज कुछ और नहीं सिर्फ़ दिल की एक तमन्ना. इस महान गायक का एक गीत सुनाउं. गीत है फ़िल्म जहांआरा का

तेरी आंख के आंसू पी जाऊं....


मैं अब तक संकोच में ही था, कि क्या करूंगा अपने ही गीत सुना कर . फ़िर आप ही मित्रों में से एक सुरीले साथी नें सारथ्य किया और मेरे मन की दुविधा दूर कर दी. कहा, हम सभी अपने अपने हुनर को पेश करते हैं, जैसे कि कविता, लेख, कार्टून, चित्र आदि. फ़िर आप गाना अपने ही आवाज़ में क्यों नहीं. मगर मुझे ये भी पता है, कि जितने बुलंद और मधुर इन सभी गायकों के गीत होते है, हम सभी के ज़ेहन में गहरे बाबस्ता है, और कोई कुछ भी कर ले , यह अंतर पाटना किसी भी खां साहब के बस की बात नही, जब कि मैं एक अदना सा पार्ट टाईम गायक ,बिना किसी तालीम के. इस उत्तुंग हिमालय को लांघ सकने की सोच ही नही सकता. हां , इंजिनीयर हूं तो उसका ड्राईंग बनाए का प्रयास ज़रूर कर सकता हूं.

इसलिये ये कोशिश रहेगी कि सुरमई गीत भी चल निकले, गले से, दिल से, और हम सभी इस बात का खयाल ना रखें कि आवाज़ की कितनी सही कॊपी की गयी है. ये कतई कोई मिमिक्री नही है. यकीन मानिये, वह बहुत मुश्किल नहीं .मगर ज़रूर मेहसूस करें उस गीत की और महान गायक की मूल आत्मा और संगीतकार की सृजनता को, और स्वानंद की प्राप्ति करें.

तेरी आंख के आंसू पी जाऊं....




अभी एक और गीत सुना रफ़ी जी की कलेजे को भिड जाने वाली आवाज़ में..

चल उड जा रे पंछी .....

पहले ही आलाप में आर्तता की पराकाष्ठा ...

फ़िर सुना यही गीत तलत मेहमूद जी की कांपती हुई , दर्द की गहराई से निकलती हुई कोमल आवाज़ में. दोनों ही महान,मगर अंदाज़े बयां जुदा जुदा... साथ ही तलत जी का मुरकीयां लेने का एक विशिष्ट तरीका..

मैं तो लुट ही गया.

कंगाली के इस खूबसूरत आलम में दिल नें चाहा कि सिर्फ़ गुनगुनाऊं इन दोनों गीतों को तरन्नुम में, और गाने के शब्दों के उन भावों को , भावनाओं को नज़दीक से स्पर्श करूं.दोनों ही स्वर एक ही गीत के एक ही अंतरे में... मूल गीत आपने सुने ही होंगे, आज मुझे मौका दें..

चल उड जा रे पंछी...



Friday, May 8, 2009

शंकर जयकिशन, रफ़ी और मन्ना डे…

अभी आपने पिछली कडी में पढा़ था प्रसिद्ध संगीतकार जोडी के शंकर के जीवन की कुछ घटनाओं के बारे में …

अभागे शंकर -(कृपया यहां पढे..)

हमारे एक टिप्पणीकार नें यह लिखा था कि इसमें से एक घटना को उन्होने किसी साप्ताहिक में पढी थी. वे सही हैं. जो भी हम यहां लिखते हैं, कहीं ना कहीं से हमे मालूम पडता ही है. चूंकि ये वस्तुस्थिती है, कि ये सम्भव नही कि हर घटना आपके सामने ही घटी हो. मित्रों, वैसे भी गायक , संगीत और गीत के बोलों के अलावा कुछ भी तो ORIGINAL नहीं.
आज हम कुछ और छोटी छोटी स्मृतियों के बारे में यहां ज़िक्र करेंगे. कुछ कहीं पढी हुई कुछ मित्रों द्वारा बताई गई:

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मोटे तौर पर ये बात बताई जाती है कि पहले कुछ सालों को छोडकर शंकर और जयकिशन नें हमेशा अलग अलग फ़िल्मों में संगीत दिया(भले ही नाम जोडी का दिया गया हो), जबकि दूसरे संगीतकार जोडी अपना काम यूं बांटते थे कि धुन एक बनाता था और अरेंजिंग दूसरा.(LP). और एक आश्चर्य की बात ओर मालूम पडी जिसे चेक करना पडेगा कि शंकर के लिये हमेशा हसरत जयपुरी लिखते थे और जयकिशन के लिये शैलेन्द्र!!!   ( जानकार बतायें कि क्या ये उनस भी १७१ फ़िल्मों के बारे में सही है , जिसके लिये इस जोडी नें संगीत दिया?)

पता है, सबसे पहला गीत जो शंकर नें रिकोर्ड किया वह था फ़िल्म बरसात में रफ़ी की आवाज़ में एकमात्र गाना – मैं ज़िंदगी में हर दम रोता ही रहा हूं…शंकर और बाकी सभी इस बात पर एकमत हुए थे कि ये गाना रफ़ी जी ही गायेंगे.मगर उन्हे ये डर था कि रफ़ी जी व्यस्तता के रहते हुए, उन जैसे नये संगीतकार जोडी के लिये गायेंगे या नही. मगर रफ़ी जी नें कोई शर्त नही रखी और ये गीत और बाकी सभी गीत बडे ही मकबूल हुए. बाद में तो इस जोडी नें रफ़ी  जी के साथ  अनगिनत हिट गानें दिये.  २१६ एकल गीत,११६ युगल गीत,९ मिश्र गीत = कुल ३४१ गीत.( लक्ष्मीकांत प्यारेलाल – ३६९)

कई सालों बाद जब फ़िल्म ब्रम्हचारी के लिये जयकिशन नें उनसे एक गीत दिल के झरोके में तुझको बिठा कर..के लिये एक अजीब फ़रमाईश की. उन्होने रफ़ी जी को आग्रह किया कि इस गीत का स्थाई (याने पहली लाईन) बिना सांस लिये लगातार गाये.(शंकर महादेवन का Breathless गाना याद है?) 

रफ़ी जी नें उनकी ये बात मानी और आप खुद सुनें कि पहली लाईन बिना सांस लिये गायी गयी है.रिकोर्डिंग के बाद हंसते हंसते  रफ़ी जी बोले, भाई याद है,आपके लिये मैंनें सबसे पहला गीत गाया था. अब आप मुझे यूं गवाते रहे अगला गाना गाने के लिये मैं ज़िन्दा ही नही रहूंगा और फ़िर लोग कहेंगे रफ़ी नें आपके लिये अपना अंतिम गीत गाया !!!

वैसे शंकर जयकिशन नये नये प्रयोग करते थे मगर रफ़ी जी भी कभी कभी मस्ती में आ कर कुछ अलग करते थे.फ़िल्म तुमसे अच्छा कौन है का गाना किस को प्यार करूं , कैसे प्यार करूं . तो गाना रिकोर्ड होने के बाद रिकोर्डिंग रूम से बाहर आ कर रफ़ीजी शंकर से बोले – इस गाने की रिकोर्डिंग एक और बार करते हैं. किसी को कूछ समझ नही आया.

मगर बाद में रफ़ीजी  नें कहा कि स्टुडियो में कुछ खूबसूरत लडकियों को बुलाया जाये और शर्त ये रहेगी कि उन से एक भी उनकी तरफ़ नहीं देखेंगी (Cheer girls of IPL?!!!!)

बस फ़िर क्या था. आनन फ़ानन में यूं जमाया गया, और गाने की रिकोर्डिंग फ़िर से कीग यी जिसमें रफ़ी जी नें उन सुंदरीयों की तरफ़ देखकर हाथों से मुद्रायें बनाते हुए पूरा गीत गाया जिसमें वह प्रभाव और आवाज़ में वह बिंदासपन कैसे झलका है ये आपने सुना ही है.

वैसे ही मिज़ाज़ के शौकीन शंकर नें फ़िल्म जंगली के गाने ऐयईय्या सूकू सूकू .. गाने मॆं ये बोल गाये है, फ़िल्म संगम के गाने दोस्त दोस्त ना रहा में पियानो बजाया है.

मैं इस बात से हमेशा  दुखी रहा   कि शंकर और लताजी के बीच में अनबन हो गयी थी(जयकिशन के साथ नहीं-याद है वे हसीं गीत – ओ मेरे शाहे खूबा…, तुम मुझे यूं…, तुम्हे याद करते करते ..) 

वैसे किशोर कुमार के साथ काफ़ी कम गीत  बनाये है इस जॊडीनें…

img0501(रिकोर्डिंग के समय)

अपने अंतिम दिनों मॆं जयकिशनकी मृत्यु के बाद शंकर के पास बहुत फ़िल्में नही आयी मगर वे LIVE concert  करते रहे, मगर इंडस्ट्री  में उनका वजन कम ही हो गया.

मुझे याद है ८० के दशक का वो वाकया, कि जब मैं एक बार मुंबई से इंदौर के लिये फ़्रंटियर मेल  मॆं चढा था (रतलाम तक), तो द्वितीय वर्ग के रिज़र्वेशन कोच में मैने एक musicians का ग्रूप देखा जिनके पास सभी instruments थे. इसमें से एक साथी मेरे पहचान का था जो इंदौर का था जिसनें मेरे साथ स्टेज पर कभी बजाया था .और साथ ही में आजके प्रसिद्ध संगीतकार की जोडी जतिन ललित  में से जतिन थे(शो अरेंजर के रूप में !!)

मुझे फ़िर ये भी बताया गया   कि इसी ट्रेन में खुद शंकर जी और शारदा भी जा रही थे, और तीसरे दिन  उनका दिल्ली में शो तथा बात ही बात में जतिन से पता चला कि इन सभी वादकों के समूह का रिज़र्वेशन तक नही हुआ था, सिर्फ़ टिकट थे. साथ में इन्हे जो बूक करके लाया था उसनें जतिन को  कोई एडवांस भी नही दिया था . जाहिर है ये बात मालूम होते ही अधिकतर वादक पसर गये, और उतरने की बातें करने लगे. जतिन  नें काफ़ी समझाया कि शंकर जी की इज़्ज़त दांव पर लगी है.मगर वे टस से मस नही हुए.

तब  मेरे युवा संवेदन मन को बडी ठेस पहुंची थी ये देख कर कि बंबई  में पैसे के आगे कोई भी बडा नाम  या हस्तीन हीचल ती जिसकी आप इतनी इज़्ज़त करते हैं .

इस बीच जतिन शंकर जी को बताने पहुंचे जो प्रथम वर्ग के केबिन में, तो मैं भी साथ हो  लिया , सोचा था कि मेरे फ़ेवराईट म्युज़िक डायरेक्टर से मुलाकात होगी. मगर अफ़सोस कि शंकर के  ये बात सुन यूं होश उडे के वे गश खाकर गिर ही पडे(उन्हे ब्लड प्रेशर का प्राब्लेम था ) शारदा नें  और हम ने बडी कोशिशों से उन्हे सम्हाला, और दवाई दे कर उन्हे सेटल किया. यहां तक कि ट्रेन रुकवाने की  नौबत आ गयी थी .

इसी बीच सूरत आ गया और देखते ही देखते सारे Musicians अपने अपने वाद्य लेकर उतर गये,और ग्रुप में रह गये सिर्फ़ जतिन और मेरा इंदौर का साथी.फ़िर क्या था. मैने मेरी बर्थ   ललित के साथ शेयर की, और वह दिल्ली निकल गया.मेरा साथी मेरे साथ इंदौर आया, और कुछ musicians दिल्ली ले गया, और सुना है, कि वहां कुछ और को साथ में लेकर शो हुआ था .आज जब भी वह वाकया याद आता है,तो दुख  होता है,कि  इस बंबई फ़िल्म ईंडस्ट्री में सभी चढते सूरज को सलाम करते है और जब ये सूरज़ ढलता है, तब उसे गर्त में धकेल दिया जाता है. जो व्यक्ति हमारे मनमें एक हीरो की तरह उसके साथ यूं बदसलूक दिल को चोट पहुंचाता है.(ऐसा ही वाकया बाद में  मेरे सामने महान संगीतकार जयदेव के साथ भी हुआ )
आज मैं यहां संगीतकार शंकर जयकिशन की एक सुंदर रचना को सुनाता हूं अपने ही  आवाज़ में. गीत है फ़िल्म दिल एक मंदिर का ….MV5BMTM2NjQ1Nzg2N15BMl5BanBnXkFtZTcwNDkyNjAzMQ@@__V1__SX96_SY140_

याद ना जाये ,बीते दिनों की…. 



इसे मूलतः रफ़ीजी नें गाया है, मगर यहां केरीओके (Karaaoke) की ट्रेक पर मैने गया है.मैं यहां अपने सुरीले साथियो को  बता दूं कि मैं मूलतः स्टेज का कलाकार हूं और ये घर पर ही amateurish Recording की गयी है.  गलती हो तो सुधी जन माफ़ करेंगें, और पसंद आया तो हौसला अफ़ज़ाई करें.इस माध्यम को भी उपयोग में ला कर देखें.

वैसे ये गीत मेरे दिल के  बहुत करीब है. वो इसलिये कि शंकर जयकिशन नें इस गीत में जैसे मेलोडी ठूस ठूस के भर दी है.मगर साथ में मन के अंदर  दर्द के धीरे धीरे हो रहे रिसाव को भी सुरों के माध्यम से बखूबी उभारा है. ऊपर से महागायक रफ़ी साहब के  एहसास भरे भीगे  स्वर .. ऊफ़्फ़ , आपकी और हमारी तो जान ही ले ली है.

और हां, जब दर्द भरे गीतों की जब बयार चली ही है,  तो याद आ गयी वो दिल की पीडा को बखूबी अभिव्यक्त करने वाली आवाज़  - मुकेश जी की ……..
और उनकी सरल , पाक साफ़ आवाज़ में , दिल की गहराई को  छू जाने वाला फ़िल्म यहुदी का ये गीत जिसकी  धुन में शंकर जयकिशनजी नें दुख की इंतेहा का जो आलम तारी किया है, वह दिल से भुलाये नही भूलता.वैसे इस गाने के लिये शैलेंद्र जी को फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड से  नवाज़ा जा चुका है.

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ये मेरा  दिवानापन है….



ये गीत मेरे किसी स्टेज कार्यक्रम का है, इसलिये ओडिटोरीयम   का प्रभाव आया है.
मन्ना डे - 

इस १ मई को इस महान गायक नें अपना ९० वां जन्म दिन मनाया. 


चाह कर ही उनके बारे  में प्लान करने के बावजूद पोस्ट नही लिख पाया. फ़िर भी इस लेट लतिफ़ नें vlcsnap-223198१ठान लिया है, कि अगली पोस्ट को छोड कर  मन्ना दा पर कुछ कडीयां लिखूंगा. और साथ ही में आप ही लोगों के आग्रह पर मन्ना दा के गीतों पर किये गये अपने एक स्टेज कार्यक्रम दिल का हाल सुने दिल वाला की क्रमवार गीत शृंखला का (विडियो) पेश करूंगा.

अगली पोस्ट नज़र है  मखमली आवाज़ के  शहेंशाह तलत मेहमूद पर जिनकी ९ मई को ११ वीं पुण्य तिथी है.तो एक दो गाने उनके भी …( ता.१० को )
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