Sunday, May 10, 2009

तलत महमूद.. एक कोमल एहसास... दर्द की श्वेत श्याम तसवीर..


तलत महमूद,

जब भी तलत मेहमूद ये नाम हमारे ज़ेहन में आता है, तो हमारे यादों की खिडकीयों पर दस्तक देते हैं उनकी मखमली आवाज़ के मोरपंखी एहसासात.हमारा प्यासा मन खुद ब खुद, सुरों की इन हसीन वादीयों से टकरा कर गूंजते हुए दर्द भरे नगमों के समंदर में डूब जाता है.

अभी परसों तो उनकी बरसी थी.एक मित्र नें मेहफ़िल जमाई और देर रात तक उनके सभी गीत प्यार भरे, दर्द भरे सुनते रहे और फ़िर भी अतृप्त ही रहे.

आज कुछ और नहीं सिर्फ़ दिल की एक तमन्ना. इस महान गायक का एक गीत सुनाउं. गीत है फ़िल्म जहांआरा का

तेरी आंख के आंसू पी जाऊं....


मैं अब तक संकोच में ही था, कि क्या करूंगा अपने ही गीत सुना कर . फ़िर आप ही मित्रों में से एक सुरीले साथी नें सारथ्य किया और मेरे मन की दुविधा दूर कर दी. कहा, हम सभी अपने अपने हुनर को पेश करते हैं, जैसे कि कविता, लेख, कार्टून, चित्र आदि. फ़िर आप गाना अपने ही आवाज़ में क्यों नहीं. मगर मुझे ये भी पता है, कि जितने बुलंद और मधुर इन सभी गायकों के गीत होते है, हम सभी के ज़ेहन में गहरे बाबस्ता है, और कोई कुछ भी कर ले , यह अंतर पाटना किसी भी खां साहब के बस की बात नही, जब कि मैं एक अदना सा पार्ट टाईम गायक ,बिना किसी तालीम के. इस उत्तुंग हिमालय को लांघ सकने की सोच ही नही सकता. हां , इंजिनीयर हूं तो उसका ड्राईंग बनाए का प्रयास ज़रूर कर सकता हूं.

इसलिये ये कोशिश रहेगी कि सुरमई गीत भी चल निकले, गले से, दिल से, और हम सभी इस बात का खयाल ना रखें कि आवाज़ की कितनी सही कॊपी की गयी है. ये कतई कोई मिमिक्री नही है. यकीन मानिये, वह बहुत मुश्किल नहीं .मगर ज़रूर मेहसूस करें उस गीत की और महान गायक की मूल आत्मा और संगीतकार की सृजनता को, और स्वानंद की प्राप्ति करें.

तेरी आंख के आंसू पी जाऊं....




अभी एक और गीत सुना रफ़ी जी की कलेजे को भिड जाने वाली आवाज़ में..

चल उड जा रे पंछी .....

पहले ही आलाप में आर्तता की पराकाष्ठा ...

फ़िर सुना यही गीत तलत मेहमूद जी की कांपती हुई , दर्द की गहराई से निकलती हुई कोमल आवाज़ में. दोनों ही महान,मगर अंदाज़े बयां जुदा जुदा... साथ ही तलत जी का मुरकीयां लेने का एक विशिष्ट तरीका..

मैं तो लुट ही गया.

कंगाली के इस खूबसूरत आलम में दिल नें चाहा कि सिर्फ़ गुनगुनाऊं इन दोनों गीतों को तरन्नुम में, और गाने के शब्दों के उन भावों को , भावनाओं को नज़दीक से स्पर्श करूं.दोनों ही स्वर एक ही गीत के एक ही अंतरे में... मूल गीत आपने सुने ही होंगे, आज मुझे मौका दें..

चल उड जा रे पंछी...



17 comments:

Neeraj Rohilla said...

दिलीप साहब,
तलत साहब का मुरीद कौन न होगा।

आपकी आवाज में "तेरी आंख के आंसू पी जाऊ" सुनकर बडा सुकून मिला। बहुत आभार,

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिलीप भाई , दोनोँ गीत सुने और आपके इस सच्चे मन से किये प्रयास से सचमुच मन खुश हो गया है !
आप सुँदर गाते हैँ और सारे शब्दोँ के भावोँ को बखूबी गायकी मेँ ढालते भी हैँ ..वेरी गुड ! कीप सीन्गीँग -
स स्नेह आशिष
- लावण्या

ताऊ रामपुरिया said...

भाई दिलिप जी आप का तो जवाब नही है. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ .अनुराग said...

आपका गला भी हजूर आपके मन जैसा ही है ...मीठा ......

रंजू भाटिया said...

आपकी आवाज़ में गीत सुनना दिल को भाता है ..मेरी फरमाइश अब तक बाकी है :)

mark rai said...

i am very fond of the songs of talat mahmud....nice post...

Alpana Verma said...

तलत जी की गायकी अपने आप में अनूठी थी..तभी तो गीत 'तेरी आँख के आंसू पी जाऊं 'के लिए मदन जी ने किसी दूसरे गायक के बारे में सोचा भी नहीं था..बेहद मीठा और सुरीला गीत गया है आप ने .और दूसरा गीत चल उड़ जा रे--बिना संगीत गाया है मगर यह गीत भी जबरदस्त समा बाँध रहा है.बहुत बहुत आभार सुन्दर गीतों को सुनवाने हेतु.

Harshad Jangla said...

Dilipbhai

Well done! Shukriya.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Manish Kumar said...

Achcha laga talat ji ke geeton ko gane ka aapka pryas..isi terah gate rahein gungunate rahein

Anonymous said...

भोत सई भाई.
बस कराओके का सूर उचा पड रहा हे आपको.
कही कही पे श्ब्द गडबड लग रहे है.जैसे जुल्फ बनी हे सवारी सायद सवाली होना चाहीये.उचारण भी कही कही पे गडमड हे.बाकी तो जान ले ली न आपने
sk

RAJ SINH said...

प्रिय दिलीप भायी ,

आज पह्ली बार आप्के ब्लोग पर आय और पढता सुनता ही चला गया .इस पोस्त से ले कर नरेन्द्र शर्मा जी की वाली पोस्ट तक .आज आप ने मुझे रात भर जगाये रखा . पुरानी नयी तमाम यादोन मे . खास कर गुरुदत्त जीकी पोस्त ने .
मैन भी आप जैसी रुचियोन वाला इन्सान हून . पेशे से भले इन्जीनीयर पर मन वही सब करता रहा जीवन भर , आज तक भी, जो आप ’दिल से ’ कर रहे हैन .कभी स्तेज से मन्ना डे और बर्मन दा के गीत गाता था अब सिग्रेत के चलते सिर्फ़ गुन्गुना भर लेता हून .
बहर्हाल आज सिर्फ़ गुरु दत्त जी की बात करुन्गा .सन्दर्भ के लिये बता दून कि मेरे चाचा भी फ़िल्मों से जुडे थे और गुरु दत्त जी और देव जी के व्यक्तिगत रूप से आत्मिय मित्र थे . जब दत्त जी प्रभात मे कोरिओ ग्राफ़र थे तब उन दिनो चाचाजी ने (नाम राम सिन्ह)प्रभात की ५ फ़िल्मों मे हीरो का रोल किया था .अगर आप्ने दिलिप कुमार और कामिनी कौशल की ’शहीद’ देखी हो,(प्रशिद्ध गीत...वतन की राह मे वतन के नौजवां शहीद हो )तो उस्मे चाचाजी ने विलेन का रोल (पोलिस कप्तान)का रोल किया था .

उन्की पत्नी (अपने जमाने की प्रभात की फ़िल्मों की नायिका रन्जीत कुमारी )ने सहिब बीबी और गुलाम मे मन्झ्ली बहु का रोल किया था . चाचा जी सप्रू वाला रोल कर रहे थे पर तबियत बिगड जाने के चलते छोड देना पडा .चाची और गीता जी बहुत ही गहरी दोस्त थीन .सी आयी डी से लेकर साहिब बीबी और कागज़ के फ़ूल सहित उन्की फ़िल्मों की शूतिन्ग देखने का और एक बच्चे की उम्र मे फ़िल्मों के कौतूहल जन्य उत्साह का आनन्द भी जाना .

जैसा कि सभी जानते हैन शायद ’कागज़ के फ़ूल’ गुरुदत्त जी की आप्बीती ही थी उन्की. उन्हेन ना देव जी ना ना अब्रार अल्वी ना चाचाजी ना निरन्जन (उन्के सहायक और बाद मे कौन अपना कौन पराया के निर्देशक )और ना जाने कितने आत्मीय मिल कर भी ना बचा सके . गुरु जी और गीता जी के स्नेहिल स्वभाव का कित्नी बार मैने अनुभव किया है कि मन आज्भी भर जाता है .उनका असमय उठ जाना मेरे बाल मन को भी तक्लीफ़ दे गया क्योन्कि उस चकाचौन्ध भरी ज़िन्दगी की मन मे बन रही तमन्ना का भी अवसान हो गया . बात चली तो ना जाने कितनी यादें उमड रही हैन .
शायद उन्हीं वकतों मे मन मे कहीन फ़िल्मोन के प्रति जो आकर्शन और ’दिल से ’ उथी उमन्गोन का ही प्रभाव रहा होगा कि आज नेव योर्क नगर सेवा से समय पूर्व रितायर्मेन्त लेकर खुद ही फ़िल्मों का निर्मान निर्देशन के प्रयास मे रत हून .

उस पर फ़िर चर्चा होगी लेकिन गुरु जी के न्रित्य गीत चित्रण का आज भी मैन मानता हून कि कोयी सानी नहीन .पता नहीन उतना डूब कर कोयी फ़िल्म बनाता हो .
आप्के ब्लोग पर तो अब आना लगा ही रहेगा .मन पुल्कित हुआ कि आप्मे इस कला के विविध आयामों मे इतनी गहरयी से पैन्ठ है.
इस रसास्वादन के लिये आप्को धन्यवाद.
बहुत बहुत धन्यवाद!

RAJ SINH said...

पुनस्च

मैन तलत के गीतोन का बहुत ही बडा आस्वादक हून . दुर्भग्य से उनके गीतों का मेरा पूरा सन्ग्रह यहान घर बदलते हुये खो गया .सब तो फ़िर बना लिये पर मेरी एक बहुत ही पसन्दीदा नोन फ़िल्मी गज़ल नहीन मिल पा रही है ..........

काबे से बुतकदे से कभी बद्मे जाम से
आवाज़ दे रहा हूं तुझे हर मुकाम से

अगर आप्के प्रयसोन से सम्भव हो तो आभारी रहून्गा ......खयाल रखियेगा .

Himanshu Pandey said...

चिट्ठा चर्चा से होकर आया । तलत जी का यह गीत सुनाकर आपने मन मोह लिया ।

अजित वडनेरकर said...

शुक्रिया दिलीप भाई,
बहुत सुंदर गाया आपने।
तलत साहब की मख़मली आवाज़ का जादू कभी न कभी सब पर चलना ही है। हम तो शुरू से ही उनके शैदाई है....
आभार

neelam said...

dilip ji ,
vivekaanand ke baare me bahut kuch padha tha aapke blog par ,blog ek vyakti ka aaina hota ,aaj isme aap ek geetkaar ke roop me hum logon ke saamne aaye ,behatareen prastuti ,

aapke blog par aana ek sukhad ahsaas hai ,yakeen maaniye sach bol rahe hain hum ,koi maska -vaska nahi

manu said...

वाह साहब ,,,,,,,,!!!!!!!!
मजा आया ये जानकार के आप भी हमारी तरह तलत की आवाज के दीवाने हैं...
और गाते भी कमाल हैं,,,,,
अब तो इधर आना जाना लगा रहेगा.....
बिना पार्श्व संगीत के आपकी आवाज में चल उड़ जा रे पंच्छी ने एक नयी ही ताजगी से भर दिया,,,

Sajal Ehsaas said...

bahut achhi koshihs hai e aapki...isko jaari rakhe...shubhkaamnaayein


www.pyasasajal.blogspot.com

Blog Widget by LinkWithin