Friday, July 31, 2009

मूसीकी़ की हसीन दुनिया में चमकता हुआ आफ़ताब - मोहम्मद रफ़ी



शमा - ए - रफ़ी के परवानों .......

आखिर फ़िर वही मनहूस ३१ जुलाई आ ही गयी.

फ़िर वही मकाम आया है आज, जिससे गुज़रना हमारे दिलों पर फ़िर खंजर चलने से कम नहीं.आज ही के दिन हमारे मूसीकी़ की हसीन दुनिया में चमकता हुआ आफ़ताब गुल हो गया और छा गयी ऐसी तारीकी, कि आज तक हम उस उजाले के तसव्वूर में खुदी को भुलाये , खुद को भुलाये बस जीये जा रहे हैं.

बचपन से हमने जब भी होश सम्हाला, अपने को इस सुरमई शाहानः आवाज़ की मोहोब्बत की गिरफ़्त में पाया, जिसे मेलोडी या सुरीलेपन का पर्याय कहा जाता रहा है.हम मश्कूर हैं इस सुरों के पैगंबर के, जिसनें हमारे जवानी को , एहसासात की गहराई को , प्यार की भावनाओं को परवान चढाया, और हमें इस लायक बनाया कि हम उस खुदा के साथ साथ उसके अज़ीम शाहकार की भी इज़्ज़त और इबादत कर सके.

तब से आज तक वह नूरानी आवाज़ की परस्तिश सिर्फ़ मैं ही नहीं , आप सभी सुरों के दुनिया के बाशिंदे भी कर रहें है.काश होता ये कि मालिक हम सभी तुच्छ लोगों की ज़िंदगी में से कुछ दिनों को भी उनकी उम्र में जोड देते तो आज हम उस फ़रीश्ते की आवाज़ से मरहूम ना होते, और रोज़ रोज़ उनकी मधुर स्वर लहरीयों की छांव तले उस कुदरती मो’अजिज़ः को सुनते और बौराते फ़िरते.अभी वैसे भी मूसीकी़ के इस जहां में फ़ाकाकशी के अय्याम चल रहे है, और ऐसे में रफ़ी साहब की यादों में और उनके गाये हुए कालातीत गानों के सहारे ही मस्त हुए जा रहे हैं, अवलिया की तरह झूमें जा रहे हैं.

आपको पिछले साल रफ़ी साहब की पोस्ट पर बताया ही था कि मैने अपने गायन के शौक का आगाज़ किया था उम्र के सातवें साल में उस बेहतरीन गीत से जिसे नौशाद जी नें फ़िल्म कोहिनूर के लिये राग हमीर में निबद्ध किया था, और रफ़ी साहब में अपनी पुरनूर आवाज़ में चार चांद लगा दिये थे -

मधुबन में राधिका नाचे रे....

कृपया यहां पढें


(http://dilipkawathekar.blogspot.com/2008/08/blog-post_14.html)

उस दिन से रफ़ी जी के गानों का जुनून दिल में तारी हो रहा है.दिल दिन ब दिन हर गीत की गहराई में गोते खा कर नये नये आयाम खोज कर ला रहा है, हीरे मोती के खज़ाने निकाल रहा है. जैसे गीता को जितनी भी बार पढो उनती बार नये अर्थ निकल कर आते है, रफ़ी जी के गाये हर गीत को बार बार सुनने पर हर बार नया आनंद प्राप्त होता है.

आज सुबह साडे़ छः बजे जब विविध भारती पर भूले बिसरे गीत में एक गीत सुना तो लगा जैसे रफ़ी साहब के लिये आज कुदरत भी सुबह सुबह तैय्यार हो कर सलाम करने आ गयी है.

नाचे मन मोरा मगन तिकता धीगी धीगी.....

मैं रोज़ जहां सुबह घूमने जाता हूं (अमोघ का स्कूल - डेली कॊलेज , इंदौर...) ,उसके रास्ते में ये गीत सुना.और संयोग ये कि हल्की हल्की बूंदा बांदी हो चुकी थी, और फ़िज़ा में वही एम्बियेंस घुल रहा था .उस माहौल को मैने कॆमेरे में कैद कर लिया, जहां बदरा गिर आये थे भीगी भीगी रुत में . मोर भी अपनी प्रियतमा के लिये नहीं आज खास तौर पर स्वयं रफ़ी जी के लिये ही अपने मोरपंखों को फ़ैलाये नृत्य कर रहा था.

आईये , आप भी उस भीगे मौसम में भीगे मन से सराबोर होने आ जायें ,रफ़ी साहब की पुरकशिश आवाज़ में ये गीत भी सुनें और सुकून हासिल करें.

अगर इसे देखनें में असुविधा हो रही हो तो नीचे प्लेयर में देखें..



यकीन मानिये, इस फ़िल्म में कोई स्टॊक सीन नहीं है, बस आज प्रकृती नें भी रफ़ी जी के लिये अपना इज़हारे अकीदत पेश किया है.मानो रफ़ी जी के ही लिये ये पूरा महौल खास आज के लिये निर्मित किया गया हो.

आज से हम हर तीसरे दिन मुहम्मद रफ़ी जैसी शक्सि़यत पर कुछ ना कुछ लिखेंगे.कुछ दिल से दिल की बात करेंगे, और अपने अपने दिलों को सुरों के इस राह पर ले जायेंगे, जिसका रहनुमा भी रफ़ी जी हैं और मंज़िल भी रफ़ीजी . कि़यामत आती हो तो आने दो.

आईये, हम सभी श़ख्सी़ तौर पर उस पाक रूह की तस्कीन के लिये मिल कर दुआ करें, क्योंकि अब हमारे हाथ में दुआ करने के अलावा और कुछ भी नहीं जो उस श़क्स़ को नज़र कर सकें....

तेरे गीतों में बाकी़ अब तलक वो सोज़ है, लेकिन..
वो पहले फ़ूल बरसाते थे, अब दामन भिगोते हैं.......


(जावेद नसीम)

Saturday, July 25, 2009

कॊमेडी के बडे नवाब - मेहमूद

Mehmood is Dead….

आज से पांच साल पहले एक दिन सुबह हमेशा की तरह ऒफ़िस में मेल चेक करने रेडफ़मेल खोला ही था तो एक केप्शन नें ध्यान खींचा.. और दिल एकदम से बैठ गया.

मेहमूद … 

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ये नाम मेरे लिये मात्र कोंमेडीयन या फ़िल्मी एक्टर नहीं था, मगर एक पूरा व्यक्तित्व , जीवन जीने का संपूर्ण  फलसफ़ा था. ना मालूम बचपन में कब से, महमूद मेरे दिल के कोनें में एक किरायेदार की तरह रहने लग गया थ, और हर दिन हर महिने किराये के बतौर मेरे मन की खुली खिडकीयों से झांक कर मुझे खुशीयोंकी सौगात दे जाता.

बस दो ही कलाकार थे जो मेरे रोल मोडेल की तरह मेरे केरेक्टर में घुस गये थे, एक शम्मी कपूर और दूसरे मेहमूद. (य़ादहै –धडकने लगता है मेरा   दिल –फ़िल्म दिल तेरा दिवाना )

उनकी हर फ़िल्म देखना मेरे लिये एक इबादत होती थी, एक कर्मकांड. जब वे अकेले या शोभा खोटे/मुमताज़ के साथ किसी कोमेडी सीन में या रोमांटिक सीन में आते थे तो सेंस ऒफ़ ह्युमर , टाईमिंग और पंचेस की अदायगी को बडी ही बारीकी से ध्यान देता था मैं, और अनजाने में आत्मसात कर लेता. बाद में किसी भी कोमेडी नाटक या एकांकी में जब मैं किसी कॊमॆडी चरित्र को निभाता था तब,अनायास ही, बिना इरादातन, मेहमूद भाईजान मेरे  नाटक के चरित्र में काया प्रवेश कर देते थे और मुझे आसानी से भाव दिलवा जाते थे.

ये नहीं कि मैं उनकी शॊर्टकमिंग्स या कमीयों से अवगत नहीं था, या उनके द्विअर्थी संवादों और कभी कभी फ़ूहड हास्य की कलाबाज़ीयों से इत्तेफ़ाक रखता था. हास्य को वे कभी हास्यास्पद श्रेणी तक खींच जाते थे.मगर , एक प्रेमी की तरह मुझे उनमें अच्छाईयां ही दिखती थी.

औलाद , प्यार किये जा, पडोसन, गुमनाम, साधु और शैतान , वारिस, ज़िंदगी आदि बाद की फ़िल्मों तक वह कोमेडी के बेताज बादशाह थे . क्या ही संयोग था कि उनने सबसे पहले बतौर विलन से अपनी उपथिती दर्ज़ कराई, १९५३ की फ़िल्म सी आई डी में जो मैने मेटीनी में बार बार देखी थी. बाद में प्यासा में भी विलन थे. काफ़ी दिनों बाद शायद मेरे अपने में फ़िर से विलन बने थे.

मुझे याद है, कि मैंने स्कूल में सिर्फ़ उनके ही गाने याद किये- गोरी तोरी बांकी हाय हाय हाय,  और दुनिया बनाने वाले सुन ले मेरी कहानी , जो कभी भी हमारे केमिस्ट्री के सर को बोरीयत होती थी तो मुझे पकड के क्लास के सामने खडा करवा के गवाते थे.

फ़िर चला दौर मजाहिया भूमिकाओं का छोटे नवाब,दिल तेरा दिवाना, ससुराल, बेटी बेटे , ज़िंदगी भूत बंगला,जोहर मेहमूद इन गोआ ,आदि, जिसमें उन्होने नायक या सहनायक के महत्व पूर्ण रोल किये.…
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बाद में उनके ऊपर फ़िल्माया गया एक गीत मैंने इतनी बार इतनी बार गाया इन ३० सालों में कि शायद २००० बार से अधिक. हर प्रोग्राम में, फ़ंक्शन में या पार्टी में मुझसे यही गवाने की ज़िद लगी रहती थी, जो मैं अपने मित्र योगेंद्र सिंग कीमती के साथ गाता था, बाकायदा एक्टिंग के साथ!!!

वे वो दिन थे  जब पुरुष ड्युएट्स को अक्सर गाया नहीं जाता था  , मगर हमने हमारी एमेच्योर्स संगीत समूह –मेच्युअर एमेच्यर्स में ये गाना बहुत  गाया,जिसमें हम जैसे इन्जिनीयर्स, डोक्टर्स, ज्वेलर्स, और ऎडवर्टाईज़मेंट क्षेत्र के लडके और लडकीयां थीं और बडे ठसकेसे   बिना पारिश्रमिक लिये  कार्यक्रम किया करते थे.(ताउ,अब तो  याद आया?)

एक चतुर नार , करके सिंगार….


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ये चित्र प्रारंभिक दिनोंका  है. 

(ये गीत गा गा कर इतना बोर हो गया था कि मैने ये कसम ही ले ली है, कि अब कभी नही गाऊंगा. और तो और, मन्ना डॆ पर दिये कार्यक्रम में भी लोगोंके आग्रह के बावजूद मैने ये गीत नहीं गाया. 

हां, ये ज़रूर है, कि मैने फ़िल्म प्यार किये जा का वह गीत उस गंभीर गीत संध्या में गाया था जिसमॆं अधिकतर गाने  शास्त्रीय रंग के थे. क्योंकि जब उसके एक साल पहले मैं मन्ना दा से उदयपुर में मिला था तो उन्होने भी इस गीत की पसंदगी को कबूल किया था.

मगर आज मैं वह गीत सुनवाता हूं या दिखवाता हूं जो इसी कार्यक्रम में मैने गाया था, जो मना दा नें मेहमूद के लिये फ़िल्म भूत बंगला के लिये गाया था:

आओ ट्विस्ट करे….


मेरे सामने एक युवा लडके और लड़की ने मन्ना डे जी से पूछा था कि क्या आपने सिर्फ़ क्लासिकल गीत ही गाये हैं, आज तक, क्या कोई डांस नंबर? तो मन्ना दा नें हंसकर कहा , बहुत गाये हैं, और चलो आज शाम के प्रोग्राम में भी ले लेते हैं. और यही गीत  गाया था उन्होने.

यहां का़बिले गौ़र है, कि मेहमूद स्वयं कोमेडियन के अलावा एक अच्छे भावप्रवीण अदाकार थे ही और साथ में एक आला दर्जे के डांसर भी थे.

प्यार किये जा से याद आया उस फ़िल्म का वह मशहूर कोमेडी सीन, जिसमें मेहमूद ओमप्रकाश को भूतों वाले कहानी सुनाते है, और ओम प्रकाश की घिग्घी बंध जाती है.

आप देखिये, कि क्या कोमेडी की टाईमिंग है, और पूरे सवा चार मिनीट के ब्लोक में सिर्फ़ तीन ही कट्स या सीन है. ओमप्रकाश के चेहरे के बदलते भाव और मेहमूद के संवादों की अदायगी मॆं कहीं भी बेताला या बेसुरा नही हुआ है यह सीन, एक सुरीले और ठेके वाले गाने की तरह!! मेहमूद के अदाकारी में मुद्राऒ कीअऔर ओमप्रकाश के चेहरे पर बदलते भावों की जुगलबंदी का कितना बढिय सिंक्रोनाईज़ेशन है, जो बहुत कम कोमेडी सीन में दिखाई देता है. इसलिये यह कालातीत सीन शायद फ़िल्मी इतिहास में ऒल टाईम बेस्ट कॊमेडी सीन है, मेरी समझ से.


आज मेहमूद को श्रद्धांजली देने के लिये भरे दिल से उदास होकर आंसू बहाऊं या यही सीन देख देख कर गम हल्का करूं , आप ही बतायॆं……
परसो गीता  दत्त पर एक और पोस्ट लिखनें का मन बना ही लिया था ,मगर समय अभाव के कारण टल गया. गुरुदत्तजी  के साथ के कूछ अंतरंग क्षणों को  भी याद करते.मगर वह अब फ़िर कभी …

और अगर समय हो  तो ये  भी देखते जाईये ….

Tuesday, July 21, 2009

मेरा सुंदर सपना बीत गया… गीता दत्त के जीवन का यथार्थ

 

गीता दत्त , या गीता रॊय…

 

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एक अधूरी सी कविता , या बीच में रुक गयी फ़िल्म , जो अपने मंज़िल तक नहीं पहुंच पायी.

क्या क्या बेहतरीन गीत गायें थे ..

 

दर्द भरे भाव, संवेदना भरे स्वर को अपनी मखमली मदहोश करने वाली आवाज़ के ज़रिये.

गीता दत्त रॉय, पहले प्रेमिका, बाद में पत्नी.सुख और दुःख की साथी और प्रणेता ..

अशांत, अधूरे कलाकार गुरुदत्त की हमसफ़र..

 

क्या क्या नहीं कहा जा चुका है, गीता दत्त के बारे में.

उनका एक गीत तो कालातीत है, अमर है. उस गीत नें इतिहास रच डाला.

अपने भाव भरे बोल , कलेजे को चीर देने वाली धुन, विश्व स्तरीय निर्देशन और चित्रांकन, सिनेमेटोग्राफी की टेक्स्ट बुक में दर्ज़

 

वक्त नें किया क्या हसीं सितम, तुम रहे ना तुम , हम रहे ना हम….

 

गुरुदत्त पर संगीत को समर्पित शीर्ष ब्लोग हिन्दयुग्म के आवाज़ पर नश्र किये गये इस पोस्ट को अगर पढें ….

(गुरुदत्त इस क्लाईमेक्स की सीन में कुछ अलग नाटकीयता और रील लाईफ़ और रियल लाईफ का विरोधाभास प्रकाश व्यवस्था की माध्यम से व्यक्त करना चाहते थे. ब्लेक एंड व्हाईट रंगों से नायक और नायिका की मन की मोनोटोनी ,रिक्तता , यश और वैभव की क्षणभंगुरता के अहसास को बड़े जुदा अंदाज़ में फिल्माना चाहते थे…Contd…)

इस गीत के बारे में विस्तार से …

गुरुदत्त- एक शांत अधूरा कलाकार  !   --- वक्त नें किया ,क्या हसीं सितम... देखें और पढें..

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http://podcast.hindyugm.com/2008/10/remembering-gurudutt-genius-film-maker.html

स्वयं लताजी नें भी इस खरगोशी आवाज़ के बारें , और उस गीता दत्त के मन के एहसासात के बारे में एक हमसफ़र के तौर पर जो भी महसूस किया वह यहां बखूबी सुना जा सकता है.उनकी खुद की रूहानी आवाज़ में…

 



एक और नयी बात पता चली. एक बहुत ही शानदार साईट उपलब्ध है गीता जी के चाहने वालों के लिये, जहां इस गुणी कलाकार के जीवन के हर अनछुए पहलु से रू ब रू कराया गया है.गीतों की फ़ेरहिस्त, जीवनी, सुहाने चित्र और जो  दिल को सुकून दे ऐसे गाने…

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आज गीता जी का एक और नया गीत सुनने को मिला. गीत के बोल हैं -

एक बात सुनाती हूं, किसी से ना कहना…


इस गीत की खासियत ये है, कि इसे पाकिस्तान के मशहूर लिजेंडरी संगीतकार बाबा जी. ए चिश्ती ने स्वरबद्ध किया है ,जिन्हे पाकिस्तानी फ़िल्मी संगीत जगत के जनक माना जाता है. सन १९५६ की एक फ़िल्म के लिये इसे रिकोर्ड किया गया था पाकिस्तानी फ़िल्म  मिस ५६ के लिये, मगर बाद में इसी गीत को अंततः पाकिस्तानी गायिका नाहीद नयज़ी नें गाया.


(शायद पहले ये फ़िल्म यहां बनने वाली थी. लारा लप्पा गर्ल मीना शोरी के पति रूप के शोरी इसे यहां बनाने वाले थे. मगर बाद में ये तय हुआ कि इसे पाकिस्तान में बनाया जायेगा. इसीलिये फ़िर इन्ही गानों को वहां फ़िर से गवाया गया) . वैसे कुल मिला कर चार गाने गाये गये थे इस फ़िल्म के लिये हिंदुस्तानी कलाकारों ने, जिसमें एक गीता जी नें और गाया था -

ऐरे गै़रे नत्थु खैरे, घबरा गये…,और दो ड्युएट – जिन्हे बाद में सुरों के शहंशाह जनाब मेहंदी हसन जी नें गाया.(ये ७८ rpm पर उपलब्ध है)

 

तो सुनिये यह गीत….



 



मैं तो जब भी गीताजी के गाये गानों की लिस्ट पढता हूं, उनके सबसे पहले प्रसिद्ध हुए गाने में उनके जीवन का फलसफा पाता हूं…..जो फ़िल्म दो भाई के लिये सचिन देव बर्मन दा के लिये सन १९४६ में गाया था;

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मेरा सुंदर सपना बीत गया,

मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी, बदर्द ज़माना जीत गया, मेरा सुंदर सपना बीत गया….





क्या उनके भविष्य के प्रेम कहानी के खत्म होने का, जीवन के  संगीत के जाने  का यह पूर्वाभास था?…

(चित्र साभार – गीतादत्त डॊट कॊम)

Wednesday, July 15, 2009

सुरों के शहेंशाह मदन मोहन- पुण्यतिथी…

    सुरों के शहेंशाह मदन मोहन की आज ३४ वी पुण्यतिथी है. अपने सुरीले और मन मोहने वाली धुनों के खज़ाने लिये यह शहेंशाह हमसे मात्र अपने ५१ वे वर्ष में रुखसत हो गया.

मगर कई संगीतकारों की तुलना में कम फ़िल्मों को संगीत देने वाले इस स्वर महर्षि नें फ़िल्मी गीतों की दुनिया में अपनी एक नई जगह बनाई , जो यादों की अमिट छाप छोड गयी है हमारे जहेन में.  
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मदन मोहन के लिये आज बहुत कुछ लिखा जा चुका है. हम तो सिर्फ़ उन्हे याद करें किसी ऐसे गीत से जो मेरे मन में बचपन से बसा हुआ है:

नैना बरसे रिमझिम…

यह गीत मेरी मां को बेहद पसंद था , और चूंकि वह अच्छा गा नही सकती थी, वे मेरे पिताजी से हमेशा इस गीत को गाने का अनुरोध किया करती थी.

आप और हम जिन गीतों को ओढते हैं , मन के अंतरंग मे बिछाते हैं उन गीतों के लिये इन गुणी संगीतकारों नें कितने परिश्रम किये होते हैं,ये हमें कभी पता नही चलता. सुना है, कि इस गीत की धुन को बनाते समय मदन जी के भाई की अकाल मृत्यु हो गयी थी, और उस जहनी हालात में उनके दिल की गहराई से पीडा और दर्द की इंतेहां के रूप में इस गाने की धुन उपजी.


वैसे इस गीत में मदनजी नें रहस्यमयी धुन जो बनाई है, उसके साथ पूरा न्याय किया है लताजी के मधुर , कोमल स्वरोनें. उनके बिना इस गीत की कल्पना भी नही की जा सकती.

संत ग्यानेश्वर जी नें भगवान के स्मरण के संदर्भ में क्या खूब कहा है -जिस तरह से मोगरे के फ़ूल कभी भी पेड से पक कर नहीं टपकते, उन्हे तोडना पडता है. तोडते हुए ये गुच्छों के रूप में हमारे हाथ में खिले हुए रहते है, और अपनी सुगंध से हमारे तन और मन को महकाते है.

उसी प्रकार मदन मोहन जी की रचनायें हमारे रूह तक को मेहका रही हैं.

   


इन दिनों बारिशों का मौसम है, बाहर भी फ़ुहारें , भीगे भीगे मन के भीतर भी.

अब पता नहीं  आपके हमारे नसीब में ये बात हो ना हो? मन नही मान रहा है. इसे भी सुन लिजिये…



    बूंदों से बना हुआ छोटा सा समंदर,
लहरों से भीगी हुई छोटी सी बस्ती,
चलो ढूंढे़ बारिश में बचपन की यादें,
हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती…….

(Anonymous)
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