| | सुरों के शहेंशाह मदन मोहन की आज ३४ वी पुण्यतिथी है. अपने सुरीले और मन मोहने वाली धुनों के खज़ाने लिये यह शहेंशाह हमसे मात्र अपने ५१ वे वर्ष में रुखसत हो गया. मगर कई संगीतकारों की तुलना में कम फ़िल्मों को संगीत देने वाले इस स्वर महर्षि नें फ़िल्मी गीतों की दुनिया में अपनी एक नई जगह बनाई , जो यादों की अमिट छाप छोड गयी है हमारे जहेन में. मदन मोहन के लिये आज बहुत कुछ लिखा जा चुका है. हम तो सिर्फ़ उन्हे याद करें किसी ऐसे गीत से जो मेरे मन में बचपन से बसा हुआ है: नैना बरसे रिमझिम… यह गीत मेरी मां को बेहद पसंद था , और चूंकि वह अच्छा गा नही सकती थी, वे मेरे पिताजी से हमेशा इस गीत को गाने का अनुरोध किया करती थी. आप और हम जिन गीतों को ओढते हैं , मन के अंतरंग मे बिछाते हैं उन गीतों के लिये इन गुणी संगीतकारों नें कितने परिश्रम किये होते हैं,ये हमें कभी पता नही चलता. सुना है, कि इस गीत की धुन को बनाते समय मदन जी के भाई की अकाल मृत्यु हो गयी थी, और उस जहनी हालात में उनके दिल की गहराई से पीडा और दर्द की इंतेहां के रूप में इस गाने की धुन उपजी. वैसे इस गीत में मदनजी नें रहस्यमयी धुन जो बनाई है, उसके साथ पूरा न्याय किया है लताजी के मधुर , कोमल स्वरोनें. उनके बिना इस गीत की कल्पना भी नही की जा सकती. संत ग्यानेश्वर जी नें भगवान के स्मरण के संदर्भ में क्या खूब कहा है -जिस तरह से मोगरे के फ़ूल कभी भी पेड से पक कर नहीं टपकते, उन्हे तोडना पडता है. तोडते हुए ये गुच्छों के रूप में हमारे हाथ में खिले हुए रहते है, और अपनी सुगंध से हमारे तन और मन को महकाते है. उसी प्रकार मदन मोहन जी की रचनायें हमारे रूह तक को मेहका रही हैं.
|
14 comments:
मदन मोहन जी की पुण्य याद को नमन!!
IS MAHAAN SANGEETKAAR AUR GAYAK KO JO IS SANGEET KE DUNIYA ME NAA DUBANE WALAA EK SURAJ HAI PUNYA TITHI PE NAMAN.....
ARSH
मदन मोहन जी को याद करने के लिये आपको बहुत धन्यवाद, और उनको नमन.
गीत बहुत ही लाजवाब ढूंढे आपने. बहुत शुक्रिया.
सुर सम्राट को विनम्र श्रधांजलि...
नीरज
मदन मोहन जी की पुण्य तिथि पर उन्हे विनम्र श्रधांजलि.
ओर उन के रचे गीत सुनाने के लिये आप का धन्यवाद, दोनो ही गीत मेरी पसंद के है.
सायद आप जेसे दरदी हे
इसिलीये मदनजी
लाजवाब धुने
रच पाए
आपकी आवाझ में भी
मदनजी को सुनने का मन हे.
sk
'संत ग्यानेश्वर जी नें भगवान के स्मरण के संदर्भ में क्या खूब कहा है -जिस तरह से मोगरे के फ़ूल कभी भी पेड से पक कर नहीं टपकते, उन्हे तोडना पडता है.'
सच में बहुत ही सुन्दर बात कही है.
हम मदन जी को उनके गीतोंमें आज भी जिंदा पाते हैं.
मैं तो उनकी प्रशंसक हूँ ही..लता जी के गए दोनों गीत मुझे बहुत पसंद हैं..
नैना बरसे सच में एक रहस्यमई गीत लगता है...
बहुत ही अच्छी पोस्ट है ..मदन जी को मेरी भी भावभीनी श्रद्धांजलि.
दिलीप जी,
चलिये ब्लॉग के बहाने ही सही हम इन्दौरी किसी दिन मिल भी लेंगे।
श्री मदन मोहन जी के संगीत के बारे में कुछ भी कहने से बेहतर है कि बारिश में इन गीतों को गुनगुनाया जाये और वही करने जा रहा हूँ।
मुकेश कुमार तिवारी
९४२५०-६५११५
दिलीप जी
मदन मोहन जी को मेरा भी नमन है ..
नैना बरसे तो निहायत खुबसूरत गीत है..मुझे भी अति पसंद है
Your abut me is also very meaningful.
Thanx for visiting n appreciating my blog !!
मदन मोहन साहब की समर्पित इस प्रविष्टि की प्रशंसा जितनी की जाये कम है!
आभार
क्या तारीफ करूं ?
कुछ कहते हुए डरता हूँ ,
अगर चे कुछ कमतर हुआ
यार रूठेगा
अगर कहा ज़ुरूरत से ज्यादा ,
मगरूर हो महबूब का साथ छूटेगा ,
फिर भी इतना कहने को मज़बूर ''सुभान अल्लाह ,सुभान अल्लाह !
बहुत बढ़िया श्रद्धाजलि मदन जी को
Shukriya in sadabahar geeton se Madan Mohan ji ki yaad taaza karne ke liye.
Waakai, suron ka sahanshah.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वे आयें और जीने का falsafa सिखा गए.
बहुत शुक्रिया.
- Sulabh Poetry यादों का इंद्रजाल
Post a Comment