Mehmood is Dead…. आज से पांच साल पहले एक दिन सुबह हमेशा की तरह ऒफ़िस में मेल चेक करने रेडफ़मेल खोला ही था तो एक केप्शन नें ध्यान खींचा.. और दिल एकदम से बैठ गया. मेहमूद … ये नाम मेरे लिये मात्र कोंमेडीयन या फ़िल्मी एक्टर नहीं था, मगर एक पूरा व्यक्तित्व , जीवन जीने का संपूर्ण फलसफ़ा था. ना मालूम बचपन में कब से, महमूद मेरे दिल के कोनें में एक किरायेदार की तरह रहने लग गया थ, और हर दिन हर महिने किराये के बतौर मेरे मन की खुली खिडकीयों से झांक कर मुझे खुशीयोंकी सौगात दे जाता. बस दो ही कलाकार थे जो मेरे रोल मोडेल की तरह मेरे केरेक्टर में घुस गये थे, एक शम्मी कपूर और दूसरे मेहमूद. (य़ादहै –धडकने लगता है मेरा दिल –फ़िल्म दिल तेरा दिवाना ) उनकी हर फ़िल्म देखना मेरे लिये एक इबादत होती थी, एक कर्मकांड. जब वे अकेले या शोभा खोटे/मुमताज़ के साथ किसी कोमेडी सीन में या रोमांटिक सीन में आते थे तो सेंस ऒफ़ ह्युमर , टाईमिंग और पंचेस की अदायगी को बडी ही बारीकी से ध्यान देता था मैं, और अनजाने में आत्मसात कर लेता. बाद में किसी भी कोमेडी नाटक या एकांकी में जब मैं किसी कॊमॆडी चरित्र को निभाता था तब,अनायास ही, बिना इरादातन, मेहमूद भाईजान मेरे नाटक के चरित्र में काया प्रवेश कर देते थे और मुझे आसानी से भाव दिलवा जाते थे. ये नहीं कि मैं उनकी शॊर्टकमिंग्स या कमीयों से अवगत नहीं था, या उनके द्विअर्थी संवादों और कभी कभी फ़ूहड हास्य की कलाबाज़ीयों से इत्तेफ़ाक रखता था. हास्य को वे कभी हास्यास्पद श्रेणी तक खींच जाते थे.मगर , एक प्रेमी की तरह मुझे उनमें अच्छाईयां ही दिखती थी. औलाद , प्यार किये जा, पडोसन, गुमनाम, साधु और शैतान , वारिस, ज़िंदगी आदि बाद की फ़िल्मों तक वह कोमेडी के बेताज बादशाह थे . क्या ही संयोग था कि उनने सबसे पहले बतौर विलन से अपनी उपथिती दर्ज़ कराई, १९५३ की फ़िल्म सी आई डी में जो मैने मेटीनी में बार बार देखी थी. बाद में प्यासा में भी विलन थे. काफ़ी दिनों बाद शायद मेरे अपने में फ़िर से विलन बने थे. मुझे याद है, कि मैंने स्कूल में सिर्फ़ उनके ही गाने याद किये- गोरी तोरी बांकी हाय हाय हाय, और दुनिया बनाने वाले सुन ले मेरी कहानी , जो कभी भी हमारे केमिस्ट्री के सर को बोरीयत होती थी तो मुझे पकड के क्लास के सामने खडा करवा के गवाते थे. फ़िर चला दौर मजाहिया भूमिकाओं का छोटे नवाब,दिल तेरा दिवाना, ससुराल, बेटी बेटे , ज़िंदगी भूत बंगला,जोहर मेहमूद इन गोआ ,आदि, जिसमें उन्होने नायक या सहनायक के महत्व पूर्ण रोल किये.… बाद में उनके ऊपर फ़िल्माया गया एक गीत मैंने इतनी बार इतनी बार गाया इन ३० सालों में कि शायद २००० बार से अधिक. हर प्रोग्राम में, फ़ंक्शन में या पार्टी में मुझसे यही गवाने की ज़िद लगी रहती थी, जो मैं अपने मित्र योगेंद्र सिंग कीमती के साथ गाता था, बाकायदा एक्टिंग के साथ!!! वे वो दिन थे जब पुरुष ड्युएट्स को अक्सर गाया नहीं जाता था , मगर हमने हमारी एमेच्योर्स संगीत समूह –मेच्युअर एमेच्यर्स में ये गाना बहुत गाया,जिसमें हम जैसे इन्जिनीयर्स, डोक्टर्स, ज्वेलर्स, और ऎडवर्टाईज़मेंट क्षेत्र के लडके और लडकीयां थीं और बडे ठसकेसे बिना पारिश्रमिक लिये कार्यक्रम किया करते थे.(ताउ,अब तो याद आया?) एक चतुर नार , करके सिंगार…. ये चित्र प्रारंभिक दिनोंका है. (ये गीत गा गा कर इतना बोर हो गया था कि मैने ये कसम ही ले ली है, कि अब कभी नही गाऊंगा. और तो और, मन्ना डॆ पर दिये कार्यक्रम में भी लोगोंके आग्रह के बावजूद मैने ये गीत नहीं गाया. हां, ये ज़रूर है, कि मैने फ़िल्म प्यार किये जा का वह गीत उस गंभीर गीत संध्या में गाया था जिसमॆं अधिकतर गाने शास्त्रीय रंग के थे. क्योंकि जब उसके एक साल पहले मैं मन्ना दा से उदयपुर में मिला था तो उन्होने भी इस गीत की पसंदगी को कबूल किया था. मगर आज मैं वह गीत सुनवाता हूं या दिखवाता हूं जो इसी कार्यक्रम में मैने गाया था, जो मना दा नें मेहमूद के लिये फ़िल्म भूत बंगला के लिये गाया था: आओ ट्विस्ट करे…. मेरे सामने एक युवा लडके और लड़की ने मन्ना डे जी से पूछा था कि क्या आपने सिर्फ़ क्लासिकल गीत ही गाये हैं, आज तक, क्या कोई डांस नंबर? तो मन्ना दा नें हंसकर कहा , बहुत गाये हैं, और चलो आज शाम के प्रोग्राम में भी ले लेते हैं. और यही गीत गाया था उन्होने. यहां का़बिले गौ़र है, कि मेहमूद स्वयं कोमेडियन के अलावा एक अच्छे भावप्रवीण अदाकार थे ही और साथ में एक आला दर्जे के डांसर भी थे. प्यार किये जा से याद आया उस फ़िल्म का वह मशहूर कोमेडी सीन, जिसमें मेहमूद ओमप्रकाश को भूतों वाले कहानी सुनाते है, और ओम प्रकाश की घिग्घी बंध जाती है. आप देखिये, कि क्या कोमेडी की टाईमिंग है, और पूरे सवा चार मिनीट के ब्लोक में सिर्फ़ तीन ही कट्स या सीन है. ओमप्रकाश के चेहरे के बदलते भाव और मेहमूद के संवादों की अदायगी मॆं कहीं भी बेताला या बेसुरा नही हुआ है यह सीन, एक सुरीले और ठेके वाले गाने की तरह!! मेहमूद के अदाकारी में मुद्राऒ कीअऔर ओमप्रकाश के चेहरे पर बदलते भावों की जुगलबंदी का कितना बढिय सिंक्रोनाईज़ेशन है, जो बहुत कम कोमेडी सीन में दिखाई देता है. इसलिये यह कालातीत सीन शायद फ़िल्मी इतिहास में ऒल टाईम बेस्ट कॊमेडी सीन है, मेरी समझ से. आज मेहमूद को श्रद्धांजली देने के लिये भरे दिल से उदास होकर आंसू बहाऊं या यही सीन देख देख कर गम हल्का करूं , आप ही बतायॆं…… |
13 comments:
वाह दिलीप साहब, हम भी मेहमूद जी के बहुत बड़े फैन है, बचपन से
लेकिन मेहमूद जी की पहली फिल्म सीआईडी नहीं थी, दो बीघा जमीन थी, सीआईडी से पहले मेहमूद जागृति में भी आये थे
महमूद एक जिंदादिल आैर जीवट वाले इंसान भी थे...इसका पता उनके सांस की तकलीफ के दिनों से मिलता है जब आक्सीजन के सिलेंडर को वो अपना बेटा बताया करते थे लेकिन उनकी ज़िंदादिली में किसी तरह की कमी नहीं आई थी...
महमूद के बारे में जानकारी देते हुए सुंदर आलेख लिखा .. सचमुच महमूद महमूद हैं .. उनकी बात ही निराली है !!
हां कवठेकर जी आज आपने बहुत ही पुराने और बीते हुये दिनों की याद दिला दी. प्यार किये जा..फ़िल्म के सैकिंड रन के दस साल के डिस्ट्रिब्युशन राईट्स हमारे पास ही थे. इस जैसी फ़िल्म मैने देखी नही. यह फ़िल्म तो हर दृष्टि से लाजवाब रही. कमाई के हिसाब से भी.:)
बहुत भाव प्रधान पोस्ट है आपकी. शुभकामनाएं.
रमराम.
mahmood sahab ka to koi jawab ho hi nahi sakta
महमूद से बड़ा और बढिया कामेडियन भारत में और कोई नहीं हुआ
भाईजान को जो इज़्ज़त मिलनी चाहिये थी वो नही मिली उनकी कुँवारा बाप देखने के बाद कौन कह सकता था कि उनमे अभिनय क्षमता की कमी है
दिलीप भाई ,
गीता दत्त जी की तस्वीर बहुत सुन्दर लगाई है आपने और महमूद जैसा हंसानेवाला और कोइ कलाकार हुआ ही नहीं !
बेहतर लिंक्स और पोस्ट के लिए आभार --
- लावण्या
DILEEP JI NAMASKAR,
IS COMEDY KE BAADSHAAH KE BAARE ME KUCHH KAHANE SE PAHALE SURAJ KO DEEPAK DIKHANA HOGAA.. IS MAHAAN HASTI KE BAARE ME KUCHH TO JAANTA THA MAGAR BAHOT KUCHH AAPKE IS POST KE JARIYE JAANA... BAHOT BAHOT AABHAAR IS BEHATARIN POST KE LIYE...
ARSH
मेहमूद नाम था हास्य का,कला का,ज़िंदादिली का,सफ़लता की गारंटी का।उनका कोई मुक़ाबला नही था।पर्दे पर उनकी एण्ट्री थियेटर को तालियों से हिला देती थी।आभार आपका उनकी याद ताज़ा करने का।
बहुत अच्छी जानकारी महमूद जी के बारे में आप ने इस पोस्ट में दी.
आपने अपने मंच के अनुभव भी बांटे.
शुक्रिया.
महमूद जी बहुत ही बेहतरीन हास्य अभिनेता ही नहीं कुशल और बेजोड़ अभिनेता थे..कुंवारा बाप में उनका अभिनय देख कर कौन इस बात को नहीं मानेगा.
वैसे भी किसी को रुलाना बहुत आसान होता है लेकिन हँसाना मुश्किल....जो भी कलाकार दर्शकों को मुस्कराहटें दे सकता है मैं उसे सब से बड़ा अभिनेता मानती हूँ.
इस लिए हास्य कलाकारों का फिल्म जगत में अपना एक स्थान है .
साइड बार में प्लेयर काम नहीं कर रहा..गाना सुनाई नहीं देता और यादगार की वर्तनी भी सही कर लिजीयेगा.:)
प्लेयर का पूरा कोड एक बार फिर से लगाईये..और चेक करीए.
आभार
महमूद साहब और ओमप्रकाश जी का वो भूत वाला सीन मेरा ऑल टाइम फेवरिट रहा है... आज भी कभी देखता हूँ तो बरबस ही हंसी छूट जाती है.
महमूद की बात ही निराली थी...आपने पुराने दिनों की याद दिला दी....
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