Sunday, May 23, 2010
अद्बुत , अद्भुत और अद्भुत ... मुकुल शिवपुत्र - कुमार जी गंधर्व के पुत्र.
अभी कल ही दोपहर को इंदौर पहूंचा. पिछले दिनों काम के सिलसिले में इजिप्ट में था, कैरो और सुएज़ में जहां की मानव निर्मित बडी नहर प्रसिद्ध है.
इन दो दिनों में बहुत कुछ हुआ.परसों रास्ते में अबु धाबी में दो तीन घंटे रुकना था, क्योंकि डायरेक्ट फ़्लाईट नहीं थी. तो सोचा अल्पनाजी से बात कर ली जाये. फोन नं था तो बात कर ली.
यूं तो अब तक उनके सुनहरे , हर फ़न में माहिर बहु आयामी व्यक्तित्व से परिचय हुआ था उनकी कविताओं से, उनके मधुर गायन से, उनके पहेलियों के व्यापक ग्यान से... और इस बार रूबरू बात करने का मौका मिला. अच्छा लगा.उन्होने भी पहली बार किसी भी ब्लोगर से बात की.(हमने लगभग चार पांच दोगाने (ड्युएट्स) एक साथ गाये हैं, पर नेट पर अलग अलग रिकोर्ड कर ये काम किया था.
एक बात लिखना चाहूंगा.. बहुत कम ही ऐसा होता है, हम सभी सिर्फ़ नेट पर मिले हैं, मगर लगता है, कि सभी के दिल मिल जाते हैं और वसुधैव कुटुम्बकम की तर्ज़ पर हम सभी एक परिवार के सदस्य हो जाते हैं. अल्पनाजी से सिर्फ़ मेल से खतो खिताबत हो जाती थी, मार उस रात को ११ बजे उनसे बात करने के बाद, एक बहन की तरह उन्होने मुझसे पूछ लिया कि खाना खाया क्या. मन भीग गया. धन्यवाद अल्पना जी.
इन्दौर आया तो पता चला कि महान गायक , सुरसाधक, लोकगीतों के प्रयोगधर्मी श्री कुमार जी गंधर्व की याद में उसी शाम को शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम होने वाला था, और गायक थे स्वयं कुमारजी के बडे सुपुत्र श्री मुकुल शिवपुत्र जो अपने दम पर खुद एक बेहद ही उम्दा ,ऊंचे पाये के कसे हुए गायक हैं.शायद आपमें से काफ़ी लोग उनके बारे में जानते भी होंगे.
मुकुल शिवपुत्र एक यायावरी, फ़कीरी , फ़क्कड तबियत के मालिक हैं, और पिछले कई सालों से गुमनामी की ज़िंदगी बसर कर रहे हैं. कभी बीच बीच में खबर मिलती थी कि किसी मंदिर में कई दिनों से बिना खाये पिये बैठे हुए पाये गये.कई संगीत प्रेमियों नें उनकी मदत करने की भी कोशिश की, मगर उनका मिजाज़ नहीं बदला है.
इसलिये जब ये पता चला कि २० सालों बाद इन्दौर में उनका कार्यक्रम हो रहा है, तो मैं बडा रोमांचित हुआ कि वाकई आज सुरों की मेहफ़िल सजेगी.पुरानी यादें भी कुछ ताज़ा हो आयी जब कई सालों पहले उनसे कुमारजी के घर में, या मामासाह्ब मुज़ुमदार जी के घर मुलाकात हुआ करती थी.तब भी सनकी तो थे ही वे.
शाम को ताऊ का फ़ोन आया. कहने लगे क्या आप जाओगे कार्यक्रम में, क्योंकि आज ही रतजगा करके आये हो. मैं उन्हे बधाईयां देने की सोच ही र्हा था.फ़िर उन्होने कहा कि किसी वजह से वे जा नहीं पायेंगे, मगर क्या मैं उस कार्यक्रम की रिकोर्डिंग कर सकता हूं? मैंने कहा कि मैं भला ताऊ के आदेश का पालन नहीं करने की हिमाकत कर सकता हूं? फ़िर उन्होने साथ ही ये भी जोड दिया कि अल्पना जी को भी पता चला है और उन्होने भी अनुरोध किया है.
बस और क्या था. नेकी और पूछ पूछ ..अद्भुत , एक ही शब्द है. वहां पीछे बैठे एक श्रोता नें टिप्पणी की.. मुकुल साक्षात भगवान हैं, और क्या कहूं..यहां संगीत ईश्वर से एकाकार हो गया.
मुकुलजी को सर माथे पर बिठाया श्रोताओं ने जो इस बात से सिद्ध हुआ कि इंदौर में कल ४४ डिग्री का तापमान था, और सनक के लिये मशहूर मुकुलजी नें हॊल के पंखे बंद करवा दिये!पसीने में तर बतर प्रशंसकों ने इस सुर साधक को बडी तन्मयता और भावनाओं के सैलाब में डूब कर सुना!
तो सुनिये इतने बडे कार्यक्रम की एक बानगी स्वरूप छोटी क्लिपींग साथ में दे रहा हूं. डूब जाईये उस मस्ती में, उन रूहानी स्वरगंगा की मधुर लहरीयों में.
आप और मुकुल शिवपुत्र...
राग नट बिहाग में प्रस्तुत है मध्यलय तीन ताल में निबद्ध रचना झन झन झन झन पायल बाजे .. जो कुमारजी के घराने की विशेषता लिये हुए है..(और कोई गीत याद आया?)
Saturday, May 1, 2010
सुर देवता मन्ना दा को जन्मदिन पर आदरांजली...
कडी १
ये बात तो पक्की है, कि इतने दिनों गायब होने के बाद जब फ़िर से आपके संम्मुख आया हूं तो मुआफ़ी तो मांगना ज़रूरी है.
कितनी बार आपसे वादे किये, अपने आप से कसमें खायी,ब्लोग जगत के मेरे सुरीले परिवार से प्यार और वफ़ा का वास्ता भी दिया, मगर फ़िर वही ढाक के तीन पात.
चलिये मान लेते हैं कि -
कसमें वादें प्यार वफ़ा सब,बातें हैं बातों का क्या?
कोई किसी का नहीं ये झूटे , नाते हैं नातों का क्या?....
मगर क्या करें, दिल है के मानता नहीं, और आज मन्ना दा के जन्म दिन के पावन पर्व पर फ़िर हाज़िर हूं.
मन्ना दा तो हम सभी के , आपके, मेरे हर दिल अज़ीज़ गायक है ही, मेरे लिये तो वे मेरे सुर देवता भी हैं, आराध्य भी हैं.बचपन से जब समझ आयी तो अपने आपको रफ़ी साहब और मन्ना दा का मुरीद पाया. हीरो जो मन में बसे थे वे थे शम्मी कपूर और मेहमूद, तो ये मुहब्बत तो होनी ही थी.
मगर जब जब भी गानों के चयन की बात होती थी तो मन्ना दा के गीतों को गाने मे बडा चेलेंज लगता था.
रफ़ी साहब और मन्ना दा एक ही पाये के गुणी गायक हैं. स्वर में माधुर्य, गोलाई, मींड, लोच, हरकतें और सुरों पर गज़ब की पकड!! और स्वरों की रेंज तो बस लाजवाब, अतुलनीय.
रफ़ी साहब को तो अल्लाहताला नें हम से छीन ही लिया है, लेकिन उसी खुदा पाक का लाख लाख शुक्र है कि उसनें मन्ना दा को भरी पूरी ज़िंदगी बक्षी है, और आज ईश्वर की कृपा से वे ९०-९१ साल की उम्र में भी संगीत की सेवा कर रहे हैं.
(अभी सुना था कि उन्होनें पिछली शनिवार को लखनऊ में कार्यक्रम दिया था- सलाम !!)
मैं खुशनसीब हूं कि मालिक के फ़दल से मुझे हिंदुस्तान के कई नामचीन संगीतकार और गायक से मुलाकात का अवसर मिला. लेकिन मन्ना दा से रूबरू मिलने का एक छोटा मार मुख्तसर सा मौका मिला था करीब बीस बाईस साल पहले, जब वे इंदौर पधारे थे प्रतिष्ठित लता मंगेशकर पुरस्कार को प्राप्त करनें. मगर जल्दबाज़ी मे कुछ गुफ़्तगू नहीं हो पायी. पांच छः साल पहले उदयपुर में ज़रूर मिला था, कार्यक्रम के बेक स्टेज पर , मगर कार्यक्रम की उधेडबुन में ज़्यादह बात नहीं कर पाया. हां , दो साल पहले, १ मई को, मेरे किसी मित्र किशन का कलकत्ता से फोन आया, कि क्या मन्ना दा से बात करना चाहोगे?उसके पास उन्का फ़ोन नं आया था.
मैंने कहा नेकी और पूछ पूछ? तुरंतो मैने उसके दिये हुए फ़ोन नं पर बात की . संयोग से मन्ना दा ने स्वयं फोन उठाया.
मैं इतना बल्ले बल्ले हुआ जा रहा था, कि विशेष कुछ बातें हो नहीं पायी, बस दादा बोलते रहे, और मैं सुनता रहा, कि अब भी वो कैसे गा रहें है, और किस तरह से आज की फ़िल्मी दुनिया का संगीत उनको रास नहीं आता.
मैं शर्मा शर्मी में बोल नहीं पाया था कि मैं उनके गानों को गाता हूं, और वे समझे कि मैं कोई कार्यक्रम करने वाली संस्था से जुडा हूं, और उनका प्रोग्राम करवाना चाहता हूं.
फ़िर मुझे उनसे कहना पडा कि मैं उनका ज़बरदस्त फ़ॆन हूं, और उनके गानें गाता हूं, तो वो हंस पडे. कहने लगे कि तुम ज़रूर रफ़ी साहब के गाने गाते रहे होगे, और साथ साथ में मेरे भी गाने भी गाते होगे.उनका कहना था जो वाकई में सही भी है, कि हम अमूमन देखते हैं, कि कोई रफ़ी साह्ब को गा रहा है, कोई मुकेशजी, हेमंत दा, तलत मेहमूद जी को. मगर Exclusively मन्ना दा को गाने वाला नहीं मिला.
मैने कहा कि वैसे तो मैं सभी गायकों को गाता हूं, और amateur या शौकिया गायक हूं तो ज़रा नाराज़ ही हो गये. फ़िर भी उनसे कहा कि पिछले दिनों मैने उनके गानों पर आधारित एक कार्यक्रम दिया था (Exclusive Manna Dey only), तो बोले, ऐसा तो कभी सुना नहीं कि सिर्फ़ उनके थीम पर कोई कार्यक्रम हुआ हो .
तो मैंने सोचा कि अपने उस कार्यक्रम की सी डी उनको भिजवा दूं, तो उनसे पता लिया, और विनम्र प्रार्थना की कि समय मिला तो वे सुनें. तो वे बडे बच्चे जैसे भाव से बोले, कि भाई मेरे पास प्लेयर नहीं है.(शायद सही ही नही होगा कलकत्ता के घर में , क्योंकि वे तो ज़्यादहतर बंगलोर में ही रहते हैं, या फ़िर मुझसे बचने के लिये कहा हो!)
बरह हाल मैने तो सीडी अपने मित्र किशन के साथ भेज दी थी . अब सुना या नहीं ये उन्हे ही या फ़िर भगवान को ही पता.
मित्रों , उस कार्यक्रम का टाईटल था दिल का हाल सुने दिलवाला और उसमें से कुछ गानें , मैने यहां आपको सुनवाये थे और दिखवाये भी थे---
तू प्यार का सागर है,
सुर ना सजे,
तेरे नैना तलाश करें,
किसने चिलमन से मारा,
तू है मेरा प्रेम देवता...
तो आज मुझे इज़ाज़त दें कि आज उसी कार्यक्रम में से आपको दो गाने और सुनवाऊं, जिससे मन्ना दा के विलक्षण रेंज और विपरीत मूडस को बखूबी निभाने की अद्भुत प्रतिभा परिलक्षित होगी. साथ में आप लुत्फ़ उठायें कार्यक्रम के सूत्रधार संजय भाई (पटेल) के लाजवाब और श्रेष्ठ निवेदन का, जिससे एक perfect ambience बन जाता है, और श्रोता उस सुर के समंदर में डूबता उतरता जाता है.इसिलिए, गाने से पहले उनका निवेदन भी आपके समक्ष है.
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या-
नैराश्य और वैराग्य की पृष्टभूमि में गाया यह गीत, एक ठहरे हुए पानी से भरे पोखर के किनारे हमें ले जाता है, और हम जीवन की इस सच्चाई से रूबरू होते हैं.
साथ में और सुनिये एक दोगाना, जिसमें मेरा साथ प्रियाणी वाणी नें दिया है, जो दो साल पहले की Star Voice Of India की finalist थी.
प्रस्तुत कार्यक्रम में मैने मन्ना दा के विभिन्न मूड्स और पहलू के गीत सुनाये, जिसमें रोमांटिक,हास्य,क्लासिकल और दर्द भरे गीत तो थे ही, मगर ये गीत भी लिया, कई सुनकार श्रोताओं के विरोध के बावजूद, क्योंकि, उदयपुर में मन्ना दा नें खुद कहा था कि मैं हर तरह के गानें गा सकता हूं और ये गीत उन्हे बहुत ही पसंद है!
ये दो गाना है ---
ओ मेरी मैना, तू मान ले मेरा कहना,
जिसे महमूद और मुमताज़ पर फ़िल्माया गया था.आप स्वयम देखें, कि ये वही मन्ना दा का गीत है, जिन्होने कसमें वादे प्यार वफ़ा सब और पूछो ना कैसे मैने जैसे लाजवाब गीत गाये.और इस डांस गीत में वह रवानी, थ्रो, और मस्ती भरा आलम किस खूबी से आया है मन्ना दा नें.
वैसे इस सब में मेरा तो कोई कमाल नहीं है, कमाल है मन्ना दा के लिये मेरी भक्ति का है.
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दिल का हाल सुने दिल वाला,
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