Sunday, August 29, 2010
जाने कहां गये वो दिन.....मुकेशजी की पुण्यतिथी
अभी विविध भारती सुन रहा हूं और एक बेहद हृदयस्पर्शी गीत नश्र हो रहा है:
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नही...
मन में कई सवालत उठ रहे हैं पिछले कई दिनों से, लगभग एक महिने से जब से इजिप्ट में प्रोजेक्ट शुरु हुआ है, तो भौतिक रूप से,मानसिक रूप से तसल्लीपूर्ण ज़िंदगी बसर हो रही है. जेहनी तौर पर मेरे अंदर का आर्किटेक्ट/इंजिनीयर और साथ ही एंटरप्रेन्युअर मालिक के रहमों करम से खुश है, मगर रूहानी स्तर पर मेरे अंदर का कलाकार एक दम घुटने वाली अवस्था से गुज़र रहा है.
दर असल पिछले करीब तीन चार सालों से स्टेज पर फ़ॊर्मल कार्यक्रम नही देने के कसक दिल में कई दिनों से चुभ रही है.हां, इधर उधर घर की या दोस्तों की शादी या मंगल कार्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ ज़रूर कराई,मगर मन अब तरस सा गया है. हर साल एक गायक, रफ़ी जी, मुकेशजी, हेमंत दा, , मन्ना दा आदि.
अब आप कहेंगे,क्यों अपने ग़म गलत कर रहे हो. तो सच कहूं,जब से ब्लोगिंग शुरु की है, कुछ सुकून भरे पल यहां बिता लेता हूं, और्र आप के सामने अपनत्व के भावना प्रबल हो जाने के कारण इतना लिखने की ज़ुर्रत कर बैठा.
अब देखिये ना. गीता दत्त जी का जन्म दिन गया पिछले महिने.मन में कुछ भाव उमडे,और उनके जीवन के कुछ यादगार लम्हों को यहां बाटना चाहा भी,मगर फ़िर समय का तकाज़ा.
और जब मेरे दिल के अज़ीज़ कलाकार रफ़ी जी की पुण्यतिथी थी,तो अपने सुएज़ केनाल पर बने अपने गेस्ट हाऊस में बैठ कर कुछ भारतीय , कुछ मिश्री साथियोंके साथ कुछ गीत गुनगुनाये भी.ब्लोग नहीं लिख सका.
फ़िर किशोरदा के जन्म दिन पर भी कैरो के एक होटल में जब गायक नें इजिप्शियन गाने के बाद मुझे देखपर आवारा हूं गाया,तो मैं भी भावाभिभूत हो गया कि ये गीत जो हम भारतीय जन मानस की रूहों तक अंदर घुस गया है,जिसने रशिया में और युरोप में भी हज़ारों दीवाने बनाये,वही गीत यहां भी अपने जलवे बिखेर रहा था.
इसलिये आज जब मैं यहां बैठा इंदौर में मुकेशजी को याद कर रहा हूं,तो इच्छा हुई तो ज़रूर थी कि कहीं कोई कार्यक्रम दिया भी जाय.मगर संभव नही हो सका, क्योंकि उसके लिये , रिहल्सल केलिये भी तो समय चाहिये. अपनी ही बनाई हुई चांदी की चारदिवारी में कैद हो गया हूं, क्योंकि मैने ही ये रास्ता चुना है.समय और गुणवता के कार्यक्रम में लगने वाले लगन और मेहनत आज संभव ही नही.
चार दिन पहले ही जगजीत सिंग जी के कार्यक्रम से लौटते हुए अनुज मित्र संजय भाई पटेल नें शिकायत करते हुए कहा कि अब एक दिन बहुत झगडा करना है.
बस,फ़िर रात को देर तलक लेप्टॊप पर मुकेश जी को सुनता रहा, आनन फ़ानन में एक उनका एक गीत मुकम्मल किया जो इजिप्ट में एक रात रिकोर्ड किया था. आशा है, मेरे दिल के इन ज़ख्मों को आप मेहसूस करेंगे, और प्रेरित करेंगे कि मैं ब्लोगिंग में फ़िर से सक्रिय होऊं.इंशा अल्लाह!!
कुछ मुकेशजी पर भी.
सात्विक चरित के मालिक मुकेशजी की सुनहरी आवाज़ में जादू था उनका मन से , रूह से पाक होना. मुझे याद है, जब मैं उनके एक गाने की रिहल्सल में मौजूद था- कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है, तो वे सुबह से ही स्टुडियो में आ गये थे, और रिहल्सल कर रहे थे.लता भी आने वाली थी, मगर उन्हे जानबूझ कर दोपहर बाद बुलाया था.मुकेशजी चाय पर चाय पीकर आपने गले की खराश को ठीक रख रहे थे, और उन्होनें तहे दिल से स्वीकार भी किया कि उनकी रेंज, गायकी , समझ, और पकड लताजी के सामने कुछ भी नहीं.
तभी जब दोपहर के बाद जब लताजी आयें, तो बस दो या तीन रिहल्सल्स के बाद लताजी टेक के लिये तैय्यार हो गयी थी.दुर्भाग्य से तब तक हम रुक नहीं पाये थे.
मगर जो भी लोग यह कहते हैं की मुकेशजी के ऊंचे पाये के गायक नही थे,तो मैं उन्हे यह अर्ज़ करना चाहूंगा ,कि वे एक सरल और आम आदमी के गायक थे, और इसलिये वे क्लिष्ट गायकी से बचते थे.अपने अनुभव से कह रहा हूं. श्रोता बिरादरी में सन २००१ में मुकेश जी पर दिये एक अनौपचारिक कार्यक्रम में मैने देखा कि जब मैने मेरा जूता है जापानी का स्थाई शुरु किया तो हॊल में उपस्थित पुरुषवर्ग, और तो और महिलावर्ग भी दबे ज़ुबान में गाना गुनगुनाने लगा. तो फ़िर मैने अंतरे पर सभी को साथ में गाने को क्या आमंत्रित किया तो मानो हॊल में सुरों का सैलाब सा आ गया,और गै़रते मेहफ़िल के मारे श्रोताओं नें खुल कर गाना शुरु किया - निकल पडे हैं खुल्ली सडक पर, अपना सीना ताने....
आज इसीलिये मुकेश जी हर उस इंसां के दिल में रूह में समा गये हैं, कि हर दर्द भरे मंज़र में हम मुकेशजी के गाये किसी गीत को गा कर उनके पथोस की इंटेसिटी को मेहसूस करके अपने अपने ग़म गलत किया कर लेते हैं.
तो आज सुनियेगा - कोई जब तुम्हारा हृदय तोड दे....
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