सिने सन्गीत जगत के स्वर्णिम दौर की यादे ताज़ा कराने वाला यह सुहाना सफ़र हमने कल रात इन्दौर मे तय किया. ब्लेक एवम व्हाईट फ़िल्मो के सदाबहार नगमो से नवाज़ा पूणे के एक कलाकार समूह ने, जिसमे हमने करीब ढाई घन्टे तक मेलोडियस एवम सुमधूर गानो को न केवल सुना, वरन देखा भी.
कार्यक्रम की प्रस्तुति का , कलाकारों के सुरीले गायन का असर इतना हुआ की हम अभी तक डूबे हुए है.
गायक एवम गायिका गाते गाते उस दौर के परिधानो मे इतने घुल गये कि हमे लगा की हम उस ज़माने मे बैठ के प्रत्यक्ष रियल टाईम मे वह लम्हा जी रहे है.
पहला ब्लोग है, बस इतना ही.
Monday, June 23, 2008
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4 comments:
जितना कहें उस कार्यक्रम के बारे में.
मुंबई , दिल्ली,पुणे,कोलकता के कार्यक्रम एक परफ़ेक्ट प्रॉडक्ट होते हैं . निर्देशन भी एक सम्माननीय काम होता है. लोग जो देखते हैं,जिस पर ताली बजाते हैं वह दर असल निर्देशक के खाते का होता है. मराठी,बांग्ला,गुजराती आदि में निर्देशक नाम की संस्था ससम्मान सरवाइव करती है. निर्देशन भी अपने आप में एक भरा-पूरा काम होता है और सारा मजमा उसकी बात में बंधा होता है. दीगर शहर में कलाकार अपनी ग़लतियों से सीखते सीखते जुम्बिश करते रहते हैं लेकिन विज़न के अभाव में बात बन नहीं पाती....गायन,अभिनय,निवेदन ...सभी इलाक़ों में सूझबूझ निर्देशन का न होना क़ामयाबी में रोड़ा होता है.
Apka Pahla blog aur pahli post padhi--achcha laga -
first advice[bina maange de rahi hun-:)]--1)word verification discourages ppl to leave comments--please enable moderation than word verification-]
2)-register your blog with Blogvani and chitthajagat[blog agregraters so readers can know when u post anything on ur blog.
3)-i left reply to your Querry ab posting recordings on blog--
4)-just open an acct on archive.org and upload files there and player code can be put thru HTML edit on blog post...
format cahnging softwares are available on net-can take from there to change file formats..
thanks--
[i have created a video for my poem-[on my kavitayen]NEw experiment on blogs--really -had a tough time as was making it first time-collecting clips and then acc to words-feeling arranging them---please have a look on it whenever u have time--:)
All the best for blogging!
सन्जु,
य़ह बात तो विज़न पर ही तो आ कर खत्म होती है, और निर्देशक एक विज़नरी होना चाहीये, होता भी है. अब इन्दौर मे उस विज़न पर काम करने वालो की ज़रूरत है, और उससे भी ज़्यादा उस पर भरोसा करने वालो का.
इस के बारे मे विस्तार से बात भी करेन्गे.
पहले ब्लोग के पहले कमेन्ट के लिये धन्यवाद!!!
मेरे पहले ब्लोग पोस्ट के लिये कमेन्ट देने के लिये धन्यवाद.
आपके सुझाव अमल मे लाने कि कोशिश करूगा.
आअप्क ब्लोग ज़रूर देखून्गा.
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