Sunday, March 15, 2009

गुरु दत्त , एक अशांत अधूरा कलाकार !

 


महान फिल्मकार गुरुदत्त की पुण्यतिथी पर एक विशेष प्रस्तुति प्रसिद्ध संगीत को समर्पित हिन्दयुग्म के ब्लोग आवाज़ में पिछले अक्टूबर में मैने एक लेख लिखा था . हमारे काफ़ी संगीत प्रेमी मित्रों से वह छूट गया था, अतः वे कब से आग्रह कर रहे हैं कि वह पोस्ट ’ दिलीप के दिल से ’ पर भी जारी की जाय. उनसे अनुमती लेकर यहां वह पोस्ट जस की तस पेश कर रहा हूं .


कुछ दिनों पहले मैंने एक सूक्ति कहीं पढ़ी थी -
To make simple thing complicated is commonplace.
But ,to make complicated things awesomely simple is Creativity.


गुरुदत्त की अज़ीम शख्सियत पर ये विचार शत प्रतिशत खरे उतरते है. वे महान कलाकार थे , Creative Genre के प्रायः लुप्तप्राय प्रजाति, जिनके सृजनात्मक और कलात्मक फिल्मों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा.

४४ साल पहले १० अक्टुबर सन १९६४ को, उन्होंने अपने इस कलाजीवन से तौबा कर ली. रात के १ बजे के आसपास उनसे विदा लेने वाले आख़िरी शख्स थे अबरार अल्वी. उनके निधन से हमें उन कालजयी फिल्मों से मरहूम रहना पडा, जो उनके Signature Fims कही जाती है.

वसंथ कुमार शिवशंकर पदुकोने के नाम से इस दुनिया में आँख खोलने वाले इस महान कलाकार नें एक से बढ़कर एक ऐसी फिल्मों से हमारा त,अर्रूफ़ करवाया जो विश्वस्तरीय Masterpiece थीं. गुरुदत्त नें गीत संगीत की चासनी में डूबी, यथार्थ से एकदम नज़दीक खट्टी मीठी कहानियों की पर बनी फ़िल्मों से, उन जीवंत सीधे सच्चे संवेदनशील चरित्रों से हमें मिलवाया,जिनसे हम आम ज़िन्दगी में रू-ब-रू होते है. परिणाम स्वरूप हम मंत्रमुग्ध हो, उनके बनाए फिल्मी मायाजाल में डूबते उबरते रहे.


गुरुदत्त अपने आपमें एक संपूर्ण कलाकार बनने की पूरी पात्रता रखते थे. वे विश्व स्तरीय फ़िल्म निर्माता और निर्देशक थे. साथ ही में उनकी साहित्यिक रूचि और संगीत की समझ की झलक हमें उनके सभी फिल्मों में दिखती ही है. वे एक अच्छे नर्तक भी थे, क्योंकि उन्होंने अपने फिल्मी जीवन का आगाज़ किया था प्रभात फिल्म्स में एक कोरिओग्राफर की हैसियत से. अभिनय कभी उनकी पहली पसंद नही रही, मगर उनके सरल, संवेदनशील और नैसर्गिक अभिनय का लोहा सभी मानते थे .(उन्होने प्यासा के लिये पहले दिलीप कुमार का चयन किया था).वे एक रचनात्मक लेखक भी थे, और उन्होंने पहले पहले Illustrated Weekly of India में कहानियां भी लिखी थी.


संक्षेप में , वे एक संपूर्ण कलाकार होने की राह पर चले ज़रूर थे. मगर, उनके व्यक्तित्व में एक अधूरापन रहा हर समय, एक अशांतता रही हर पल, जिसने उन्हें एक अशांत, अधूरे कलाकार और एक भावुक प्रेमी के रूप में, दुनिया नें जाना, पहचाना.

देव साहब जो उनके प्रभात फिल्म कन्पनी से साथी थे, जिन्होंने नवकेतन के बैनर तले अपनी फिल्म 'बाजी' के निर्देशन का भार गुरुदत्त पर डाला था, नें अभी अभी कहीं यह माना था की गुरुदत्त ही उनके सच्चे मित्र थे. जितने भावुक इंसान वे थे, उसकी वजह से हमें इतनी आला दर्जे की फिल्मों की सौगात मिली, मगर उनकी मौत का भी कारण वही भावुकता ही बनी .


उनकी व्यक्तिगत जीवन पर हम अगर नज़र डालें तो हम रू-बी-रू होंगे एक त्रिकोण से जिसके अहाते में गुरुदत्त की भावनात्मक ज़िंदगी परवान चढी.


ये त्रिकोण के बिन्दु थे गीता दत्त , वहीदा रहमान और लेखक अबरार अल्वी , जिन्होंने गुरुदत्त के जीवन में महत्वपूर्ण भुमिका निभाई.
गीता दत्त रॉय, पहले प्रेमिका, बाद में पत्नी.सुख और दुःख की साथी और प्रणेता ..


वहीदा रहमान जिसके बगैर गुरुदत्त का वजूद अधूरा है, जैसे नर्गिस के बिना राज कपूर का. जो उनके Creative Menifestation का ज़रिया, या केन्द्र बिन्दु बनीं.


और फ़िर अबरार अल्वी, उतने ही प्रतिभाशाली मगर गुमनाम से लेखक, जिन्होंने गुरुदत्त के "आरपार" से लेकर "बहारें फ़िर भी आयेंगी" तक की लगभग हर फ़िल्म्स में कहानी, या पटकथा का योगदान दिया.

आज भी विश्व सिनेमा का इतिहास अधूरा है गुरुदत्त के ज़िक्र के बगैर. पूरे जहाँ में लगभग हर फ़िल्म्स संस्थान में ,जहाँ सिनेमा के तकनीकी पहलू सिखाये जाते है, गुरुदत्त की तीन क्लासिक फिल्मों को टेक्स्ट बुक का दर्जा हासिल होता है. वे है " प्यासा ", " कागज़ के फ़ूल ", और "साहिब , बीबी और गुलाम ".
इनके बारे में विस्तार से फ़िर कभी..


गुरुदत्त नें अपने फिल्मी कैरियर में कई नए तकनीकी प्रयोग भी किए.
जैसे, फ़िल्म बाज़ी में दो नए प्रयोग किए-


1, १०० एमएम के लेंस का क्लोज़ अप के लिए इस्तेमाल पहली बार किया - करीब १४ बार. इससे पहले कैमरा इतने पास कभी नही आया, कि उस दिनों कलाकारों को बड़ी असहजता के अनुभव से गुज़रना पडा. तब से उस स्टाईल का नाम ही गुरुदत्त शॉट पड़ गया है.


२. किसी भी फ़िल्म्स में पहली बार गानों का उपयोग कहानी कोई आगे बढ़ाने के लिए किया गया.


वैसे ही फ़िल्म ' काग़ज़ के फूल ' हिन्दुस्तान में सिनेमा स्कोप में बनी पहली फ़िल्म थी. दरअसल , इस फ़िल्म के लिए गुरुदत्त कुछ अनोखा ,कुछ हटके करना चाहते थे , जो आज तक भारतीय फ़िल्म के इतिहास में कभी नही हुआ.


संयोग से तभी एक हालीवुड की फ़िल्म कंपनी 20th Century Fox नें उन दिनों भारत में किसी सिनेमास्कोप में बनने वाली फ़िल्म की शूटिंग ख़त्म की थी और उसके स्पेशल लेंस बंबई में उनके ऑफिस में छूट गए थे. जब गुरुदत्त को इसका पता चला तो वे अपने सिनेमाटोग्राफर वी के मूर्ति को लेकर तुंरत वहाँ गए, लेंस लेकर कुछ प्रयोग किये , रशेस देखे और फ़िर फ़िल्म के लिए इस फार्मेट का उपयोग किया.
चलिए अब हम इस फ़िल्म के एक गाने का ज़िक्र भी कर लेते है -


वक्त नें किया क्या हसीं सितम .. तुम रहे ना तुम , हम रहे ना हम...


गीता दत्त की हसीं आवाज़ में गाये, और फ़िल्म में स्टूडियो के पृष्ठभूमि में फिल्माए गए इस गीत में भी एक ऐसा प्रयोग किया गया, जो बाद में विश्वविख्यात हुआ अपने बेहतरीन लाइटिंग की खूबसूरत संयोजन की वजह से.


आप ख़ुद ही देख कर लुत्फ़ उठाएं .


गुरुदत्त इस क्लाईमेक्स की सीन में कुछ अलग नाटकीयता और रील लाईफ़ और रियल लाईफ का विरोधाभास प्रकाश व्यवस्था की माध्यम से व्यक्त करना चाहते थे. ब्लेक एंड व्हाईट रंगों से नायक और नायिका की मन की मोनोटोनी ,रिक्तता , यश और वैभव की क्षणभंगुरता के अहसास को बड़े जुदा अंदाज़ में फिल्माना चाहते थे.


जिस दिन उन्होंने नटराज स्टूडियो में शूटिंग शुरू की, तो उनके फोटोग्राफर वी के मूर्ति नें उन्हें वेंटिलेटर से छन कर आती धूप की एक तेज़ किरण दिखाई, तो गुरुदत्त बेहद रोमांचित हो उठे और उनने इस इफेक्ट को वापरने का मन बना लिया. वे मूर्ति को बोले,' मैं शूटिंग के लिए भी सन लाईट ही वापरना चाहता हूँ क्योंकि वह प्रभाव की मै कल्पना कर रहा हूँ वह बड़ी आर्क लाईट से अथवा कैमरे की अपर्चर को सेट करके नहीं आयेगा. '

तो फ़िर दो बड़े बड़े आईने स्टूडियो के बाहर रखे गये, जिनको बडी़ मेहनत से सेट करके वह प्रसिद्ध सीन शूट किया गया जिसमें गुरु दत्त और वहीदा के बीच में वह तेज रोशनी का बीम आता है. साथ में चेहरे के क्लोज़ अप में अनोखे फेंटम इफेक्ट से उत्पन्न हुए एम्बियेन्स से हम दर्शक ठगे से रह जाते है एवं उस काल में, उस वातावरण निर्मिती से उत्पन्न करुणा के एहसास में विलीन हो जाते है, एकाकार हो जाते है.
और बचता है .., गुरुदत्त के प्रति एक दार्शनिक सोच...,मात्र एक विचार , एक स्वर...


वक्त नें किया क्या हसीं सितम...



अगली कडी में पहले किये गये वादे के अनुसार, एक पोस्ट तैय्यार कर रहा हूं, जिस में गुरुदत्त, रफ़ी जी, हेमंत दा, एस डी बरमन , और एक अज़ीम शायर पर एक संस्मरण.. अगले हफ़्ते...

26 comments:

Alpana Verma said...

गुरुदत्त जी के बारे में यह बहुत ही अच्छा लेख है.
इस में कई जानकारियां [यहाँ तक की उनका असली नाम] ..जानकारियां एक दम नयी लगीं.
पहले की फिल्मों में निर्देशक अपनी कल्पना को रूप देने liye , विभिन्न अनूठे प्रयोग करते थे जो आज इतिहास में अंकित हो गए हैं.उनके द्वारा प्रकाश की बीम का जो असर उस ख़ास दृश्य में दिखा है वह सच में उनकी फिल्म कागज के फूल 'का एक जानदार हिस्सा है.'वक़्त ने किया'गीता दत्त जी की दर्द भरी आवाज़ में यह गीत आज भी ताजा लगता है.धन्यवाद.

ghughutibasuti said...

बहुत अच्छा व जानकारी देने वाला लेख पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Dilip bhai,
Excellent write up on Late shri Guru Dutt jee , high lighting his famour trade mark song " Waqt ne kiya, kya haseen Sitam " which still remains unforgettable , after so many years of its conceptualization.
Will await your next post.
& You have a melodious voice -
Liked your song with Alpana jee
How I wish, you would sing Bhabhi ki Chudiyan Song sung by Mukesh jee
" Dar bhee tha, theen diwarein bhee, Maa tumse Ghar, Ghar , kehlaya " some day --
warm rgds,
Lavanya

Harshad Jangla said...

Dilipbhai
Guru Dutt can be considered one of the best film makers of Indian film industry.
You have covered and highlighted the best possible aspects of his career.Very interesting article.
Thank you.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Smart Indian said...

गुरुदत्त अपने समय से कहीं आगे थे. अफ़सोस कि उनके जैसे कलाकार ने असमय ही दुनिया छोड़ दी. आपकी अगली कड़ी का इंतज़ार है.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही नायाब जानकारी दी आपने गुरुदत्त पर. शायद महान लोगों की जिंदगी भी छोटी होती है तभी तो गुरुदता कम उम्र मे ही चले गये. बहुत लाजवाब लिखा है आपने.

शुभकामनाएं.

अनिल कान्त said...

gurudatt se kalakar baar baar paida nahi hota ........mere priy kalalakaron mein se ek hain

दिलीप कवठेकर said...

आप सभी संगीत अनुरागीयों को धन्यवाद.

लावण्याजी के गीत को प्रस्तुत करने का पूरा प्रयत्न करूंगा. उसका ट्रेक मिलना चाहिये (शायद अल्पना जी मदत कर सकती है)

रंजू भाटिया said...

गुरुदत जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी आपने ..उनकी बनायी फिल्म आज भी दिल को छू लेती हैं ..वक़्त ने किया गाना बहुत पसंद है मुझे भी ..शुक्रिया

Puja Upadhyay said...
This comment has been removed by the author.
Puja Upadhyay said...

गुरुदत्त के बारे में बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है, उनकी फिल्में वाकई बेहतरीन होती हैं...आज उनके कुछ जरूरी शॉट्स के पीछे के चिंतन के बारे में जान कर अच्छा लगा. उनकी फिल्में हर फिल्म कोर्स का अभिन्न हिस्सा होती हैं, हमने भी साहब बीवी और गुलाम, प्यासा, कागज के फूल अपने कॉलेज में देखी थी, और उनके कमाल के डायरेक्शन से अभिभूत हो गए थे. पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.

pallavi trivedi said...

gurudutt ji ke baare mein bahut achchi jaankari di hai aapne.....dhanyvaad.

Anonymous said...

गुरू दत्‍त पर बहुत अच्‍छी पोस्‍ट लिखी है आपने। मैं आज ही प्‍यासा की सीडी देखने के लिए लाया हूं। आमतौर पर मैं आजकल कोई मूवी चार बार में देखता हूं। यानी टुकड़ों में लेकिन आपकी पोस्‍ट पढ़कर आज ही देखनी पड़ेगी।

नीरज गोस्वामी said...

गुरुदत्त जी के बारे में आपका ये लेख कमाल का है...वो मेरे प्रिय निर्माता निर्देशक रहे हैं...आज भी वक्त मिलने पर उनकी फिल्में देखता हूँ...अफ़सोस इतना काबिल इंसान इतनी छोटी उम्र में ही चल बसा..."प्यासा" उनकी ही क्या भारत में बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है...उसका गीत "जाने क्या तूने कही..." में वहीदा जी का मुड़ कर देखने का अंदाज़ कौन भुला सकता है...गानों के फिल्मीकरण में जो सिद्धता गुरुदत्त जी को हासिल हुई वो अन्य कहीं देखनी दुर्लभ है...
आपका आज अल्पना जी के साथ गया अनाडी फिल्म का गीत सुना और आपकी आवाज़ का दीवाना हो गया...आपके कंठ में सरस्वती बिराजती है...बहुत बहुत आनद आया...मुकेश जैसे दुबारा जी गए हों...
नीरज

Anonymous said...

क्या जान लोगे दीलीप भाई.
होली के चटकदार सीझन में
गुरूदत की याद दिला कर बडा झुलुल कर दीया आपने.क्या रवानि हे आपके लीखने में.संगीत,एक्टींग,डायरेक्सन और अभीनय,कुछ भी नहीं छोडा आपने लीखने से.फ़ीर हम जादा तारिफ़ करने लगते हे तो आप हमारे कमेंत डीलीट कर देते हो . अरे फ़ील्म संगीत पर लीखने वाले तथाकथित बड़े नाम इधर आते नही क्या. एक दो तो आपके जीगरी दोस्त भी है.क्या कर रहे हे हे वे.क्या कंट्यूनीटि ओफ़ थोट हे आपके लीखने में.आखों में आसू ला दीये आपने गूरूजी को याद करके. कभी कभी सोचता हू कि कब मेरे व्यस्तता खतम हो और कब एक पूरे दिन की बैठक आप के साथ हो.क्या आप लाइव शो नहीं कर रहे इन दीनो. इन्दौर में तो न जाने केसे केसे कलाकार पोग्राम दे रहे हे.आप क्यो नहीं उतरते मेदान में.आपकी तबियत देखते हुए मैदाने ज़ंग नहीं कहा मैने.आप जैसे रूह जंग के लिये नहीं ब्रिज बनने आते हो.आपने इस पोस्त में गुरूदत्त के लीये स्वय गाकर ट्रीब्यूट देनी थी. क्या आप वह गाते है लगता है नही है जी मेरा उजडे दयार में (शायद गालीब का हे)जियो मेरे लाल तो नहीं कह सकता,जियो मेरे भायी जरूर कहुगा.
srk

Manish Kumar said...

कुछ महिनों पहले अबरार अलवी का एक विस्तृत संस्मरण पढ़ा था जिसमें गुरुदत्त, वहीदा और गीता के तनावपूर्ण रिश्तों का बेहतरीन खाका खींचा गया था।
इस आलेख में आपने बड़ी अच्छी तरह उनके काम करने के नए तरीकों और नई तकनीक का प्रयोग करने की उत्सुकता और विलक्षण कल्पनाशीलता को बखूबी उभारा है।

Anonymous said...

सर,
पिछले कमेंट पर तो आप बिफर और बिखर गये थे.सो बड़ी हिम्मत कर के ये कमेट लिख रहा हूँ.
गुरूदत्त पर आपका लेख शोध कहा जाए तो बेहतर होगा. बस एक कमी रह गई आपने गुरूदत्त के इस हुनर पर नहीं लिखा कि वे कमाल कर के गानो को पिक्चराइज करते थे. लगता है गुरूदत्त जी आपके आरादय रहे हे. कवटेकर सरनेम से लगता है आप महारास्ट्र के हैं लेकिन हीन्दी उर्दू पर तो आपकी पकड है वह कमाल की है.आपके पर्रीचय को पढकर लगता है आप सिर्फ़ एक इसान नही कल्चरल आयकान हैं.बधाई इस विशेश लेख के लिये.
सुशील ताम्रकार

दिलीप कवठेकर said...

श्री सुशील ताम्रकार जी,

आपका यहां फ़िर से आकर टिप्पणी करना , एक सकारात्मक कदम है, और ये संगीत की ही जीत है.

आप से सविनय निवेदन है, कि आप यूं ही पधारें, क्योंकि ये ब्लोग हम सभी संगीत अनुरागीयों का एक सन्मिलित विचार ही तो है, जो मेरे माध्यम से सांकेतिक अभिव्यक्ति पा रहा है.

रही बात मेरे बिफ़रने की, आप अगर फ़िर से पढें तो आप पायेंगे कि मुझसे कोई धृष्टता नही हुई थी ऐसा मुझे लगता है.फ़िर भी सुरों के आरोह अवरोह में जो स्नेह और आत्मियता का स्पंदन है, वह मेरे और आपके दिल में एक साथ ही धडकता है, ये तथ्य यहां स्वयम सिद्ध है.

वैसे प्रस्तुत लेख गुरुदत्त जी के गाने के पिक्चराईज़ेशन के कमाल के बारे में ही लिखा है, जिसमें उनकी तकनीकी और कलात्मक प्रतिभा का संपूर्ण विवरण है.

खुश आमदीद!!

दिलीप कवठेकर said...

प्रिय सुनील जी,

आपकी प्रेम भरी पाती में आपने जो दिल की बात का इज़हार किया है, उसका तहे दिल से शुक्रिया.

टिप्पणी डिलीट करने वाला मैं कौन होता हूं? मगर जैसा कि आपने सही लिखा है, कुछ मेरे जिग्री मित्र है, वे वाकई मेरे जिगर के करीब है, दिल के एक हिस्से है, इसिलिये उनका आदर करता हूं, जैसा कि वे मेरा करते है.

कल आप के बारे में भी यही बात लागू होगी , ये आप कबूल करें.संगीत की शक्ति अपरंपार है, दुश्मन भी दोस्त बन जाते है, आप तो सखा है. आपकी निजी तौर पर मिलने की राह देख रहा हूं.

Anonymous said...

yesterday only heard anil bajpeyi of mumbai in rang e mahphil presentation (sunahari yaden) at the university auditorium.the occasion was Indore bank's 90th foundation day. aniljee sang rafi numbers superebly,We 3-4 friends thought you will also perform as the the presentation was given by local artists but disappointed. the programme was anchored by all time great voice of Indore mr.b.n.bose.the show lasted for 2 hrs...we really missed you,is there any plan for your live show in near future ? we would like to attend.long back I heard your singing mukesh in gandhi hall which was orgsnied by some mr.patel in biradari programme.(its almost 7-8 years now)does that organisation still continues ?again missed you...please to read your blog on musical subject...great writing skills sir ?compliments.

bhoraskar,rajendranagar(indore)

Anonymous said...

[for duet song posted on Alpana's blog]
Dear Dilip Ji

Excellent singing...when you sing a classic, analysis is immaterial..all you should get is KUDOS for brave attempt and outstanding execution..Alpana ji is past master of classics...heard you for the first time and I am thankful to her for it....keep up the good work...best regards

Dr Sridhar Saxena

Science Bloggers Association said...

गुरूदत्‍त का परिचय जानकर प्रसन्‍नता हुई।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

mastkalandr said...

दिलीप भाई.., आज आपके ब्लोग्स देखेते ही मुझे आपके वो शब्द याद आ गए जो आपने टिपण्णी में लिखे थे,मैंने भी आपके ब्लोग्स तक पहुचने में काफी देर कर दी,खेर देर ही सही., दिल में जो भाव उठ रहे है उनको बयां करना मुस्किल है .आप् मेरी भावना समझ सकते है ..,बहुत सुन्दर और लुभावने है आपके ब्लोग्स ..,मेरी शुभकामनाए स्वीकार कीजिए..
गुरुदत साहब को देख कर वहीँ थम गया में और मेरा दिल और दिमाग अब सब यादें ताज़ा हों गई प्यासा ,कागज के फूल और फिर एक हादसा ..., देखि ज़माने कि यारी बिछडे सभी बारी बारी .., उस प्यारी आत्मा को हमारा सलाम ..,अब उनकी एक अंतिम बात याद आ रही है जो वे सब से कहना चाहते थे ..,एक हाथ से देती है दुनियां ,सौ हाथों से ले लेती है.., ये खेल है कब से जारी बिछडे सभी बारी बारी .. मक्
The way to love anything is to realise that it may be lost,
View life as a continuous learning experience

दीपक गर्ग said...

गुरु दत्त जी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी
ब्लॉग पे देने का शुक्रिया .

मनोरमा said...

बहुत उम्दा आलेख, हाल ही में वी के मूर्ति से गुरूदत्त के बारे में विस्तृत चर्चा हुई थी, आपके आलेख ने उन्हें आैर करीब ला दिया।

aman said...

gurudutt was phenomenal actor.he is legend.thanks for this blog man.its so nice.

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