आज तक आप मेरे साथ यहां तक आये, संगीत के सुरों के शीतल बयार में हमने अपनी दिल की प्यास बुझायी उन सदाबहार हिंदी फ़िल्मी गीतों से. साथ ही आप हमखयाल हुए उन गीतों से जुडे हुए सृजनकार स्वर ऋषियों की जीवनी से, मेथडोलोजी और अलग अलग विधाओंके पहलुओं से. हम रू ब रू हुए कई गायक और गायिका कलाकारों से , जिनके अथक परिश्रम से हम पा पाये ऐसे नायाब गीत जिन्हे हमने अपने सुरीले जीवन का एक हिस्सा बना रखा है.
जीवन की आपाधापी में, विशेषकर इन दिनों जब मैं अपने इजिप्ट के प्रोजेक्ट के सिलसिले में काफ़ी बाहर हूं, और आप सभी की मुझसे जो अपेक्षायें है, (यदि हैं),जो मैं पूरा नहीं कर पा रहा हूं. वैसे अपने इस प्रोजेक्ट के केस में सृजन की पराकाष्ठा को छू रहा हूं, फ़िर भी इन गीतों का सहारा मिल ही जाता है, कभी बीच में ड्राईंग बनाते बनाते हुए कुछ सुरीला सुन लिया, और दिली सूकून हासिल कर लिया.
मगर अब ये ब्लोग जगत भी दिली सूकून देने लग गया है. मन भागता रहता है पोस्ट करने को. मगर हालात होती है उस बल्लेबाज़ की तरह जो आऊट ओफ़ फ़ोर्म रहता है. कुछ भी लिख पाना समयाभाव की वजह से और वो भी लिखने पढने लायक,बडी़ ही टेडी़ खीर है.Hats Off to all those fellow Bloggers who manage this Herculean Task!! Indeed !!!
तो जैसा कि आपको पिछली बार लिखा था , मैं आज से वह शृंखला शुरु करने की अनुमती लेना चाहता हूं जिसमें मैं बीच बीच में अपने प्रोग्राम की विडियो या ऒडियो क्लिपिंग दिखाऊंगा. कार्यक्रम का नाम था दिल का हाल सुने दिल वाला - जिसमें मन्ना डे के गीतों को पेश किया गया था.
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अमूमन सभी कार्यक्रमों की एंकरींग का ज़िम्मा वहन करते थे हमारे प्रदेश के प्रख्यात संस्कृतिकर्मी मेरे अनुज मित्र श्री संजय पटेल , जो अपनी वरेण्य वाणी के सन्मोहन से सभी श्रोताओं के दिलों को एक सूत्र में पिरोने का महत कार्य बखूबी किया करते थे, (अब भी करते है). हर गीत से पहले उसकी पृष्ठभूमी को , उसकी तकनीकी बारिकीयों को यूं पेश करते थे कि श्रोता उस गीत के रंग में खुद ब खुद रंग जाता था कि कलाकार का काम आसान हो जाता था.
साथ ही साथ ,उनके स्पष्ट ,धीर गंभीर आवाज़ का जादू श्रोताओं के साथ खुद कार्यक्रम पेश करने वाले कलाकारों पर भी खूब तारी होता था, और उनके हौसला अफ़ज़ाई की वजह से कलाकार अपने हुनर को कमाल की हद तक जाकर पर्फ़ेक्शनिस्ट की तरह पेश करता था.और क्या चाहिये एक सफ़ल और मुकम्मल प्रोग्राम के लिये.कई सालों से हम दोनों स्टेज पर एक साथ अपने अपने हुनर की सुरभी बिखेरते आ रहे है, और इंशा अल्लाह , आगे भी करते रहेंगे.
इस कार्यक्रम में सभी गीत गाने का सौभाग्य मुझे मिला था और मेरा साथ युगल गीतॊम के लिये दिया था सुश्री शीला वर्मा, और सुश्री प्रियाणी वाणी.
कार्यक्रम का प्रारंभ किया एक भक्ति गीत से -
तू प्यार का सागर है...
जो फ़िल्म सीमा के लिये शैलेंद्र जी ने सरल भावपूर्ण शब्दों मे लिखा है, और संगीत बद्ध किया है शंकर जयकिशन जी नें.
सुनिये और आनंद लिजिये...