Wednesday, March 10, 2010
औरत नें जनम दिया मर्दों को.. साहिर की चुभती हुई रचना..
साहिर
कडी १
दो दिनों पहले ८ मार्च को अज़ीम शायर साहिर लुध्यानवी का जन्म दिन था. वह भी विश्व महिला दिवस के दिन!! क्या ये एक महज़ संयोग माना जाये या इसके पीछे विधाता का कोई डिज़ाईन है, कोई बडा़ मंतव्य है?
शायद हां. आप साहिर के अश’आर सुनें ,पढे़, तो उसमें आपको नारी के लिये एक जुनून की हद के पार जाती हुई संवेदनायें मिलेंगी. अहसासात के इस गहराते मंज़र की बानगी आपको उनके कई फ़िल्मी गीतों में मिलेगी, जिसमें कमोबेश किसी औरत की दिल की हकी़कतबयानी की गयी हो.
औरत नें जनम दिया मर्दों को एक ऐसा ही गीत है.
ज़िंदगी के इस नंगी सच्चाई को कितनी पीडा़ और ज़ल्लत के साथ उतारा है शब्दों में, और साथ में कमज़र्फ़ मर्दों की मानसिकता SICKNESS की सीमा तक बयां कर जाती है.साहिर वैसे तो मुला’इम और गुलाबी रूमानी गज़लें और गीत भी लिखतें है, मगर इस गीत में उन्होने जो दिल खराश और खारदार लफ़्ज़ों को पिरोया है वह किसी भी हाजी दिलसोज़ इंसां को पिघलाने का माद्दा रखतें हैं.साफ़गोई और तीखे चुभन लिये इन कठोर शब्दों से आप में से किसी के जिगर को अगर चाक नहीं किया हो तो मुलाहिज़ा फ़रमायें...
साहिर नें सब कुछ लिख दिया है फ़िल्म साधना के इस गीत में, मैं बहुत ही अदना मुलाज़िम हूं आप जैसे इल्मदानों और कदरदानों का. इसे विस्तार करना मेरे बस की बात नहीं....हां , एन दत्ता नें भी अपने नफ़ीज़ तर्ज़ से इस गाने के साथ इंसाफ़ किया है.(याद है इसी फ़िल्म की कव्वाली - आज क्यूं हम से पर्दा है?)
यूं नहीं कि साहिर के इस अजा’ईबखाने में इस तरह के और असलाह हथियार नहीं है.
याद किजिये फ़िल्म प्यासा का वह कालजयी गीत ...
ये कूचे , ये नीलाम घर दिलकशीं के,
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के,
कहां है कहां है मुहाफ़िज़ खुदी के,
जिन्हे नाज़ है हिंद पर वो कहां है?
बडी पोस्ट नहीं चाहता इसलिये अगले तीन दिनों में वादा कि इस बार इस गीत को लिखने की साहिर की मानसिकता,गुरुदत्त का जुनून और ,प्यासा फ़िल्म में चित्रिकरण की पार्श्वभूमि, सभी विस्तार से लिखूंगा....
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13 comments:
सही कहा आपने साहिर की शायरी के इस पहलू के बारे में अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।
नमस्ते दिलीप भाई ,
क्या खूब गीत याद किया है आपने ...
साहिर सा'ब का ये गीत, वाकई नारी संवेदना और स्त्री के प्रति सहानुभूति का ज़िंदा सबक ही है
नारी दिवस आयेंगें और चले जायेंगें ..पर साहीर जैसे शायर अब कहाँ ?
आगे भी इंतज़ार रहेगा ...हम अवश्य पढेंगें ..आप लिखिए ...
, नारी दिवस पर हर महिला के सम्मान के प्रति मेरी सद्भावना व स्नेह,
- लावण्या
साहिर जी के जन्मदिवस पर आप ने उन्हें याद किया.
वे तो अपने गीतों से हमारे बीच अमर हैं ही.
'औरत ने जन्म दिया '... यह दुर्लभ सा गीत भी ढूंढ निकाला.
'साफ़गोई और तीखे चुभन लिये'उनके स्त्री सम्बंधित गीतों के पीछे एक कारण उनके अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभव भी बताये जाते हैं.
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.
बहुत ही दुर्लभ गीत खोजा आपने. बहुत समय होगया था सुने. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
प्यासा के इस गीत को सेंसर से पास करने के लिए आफी कट लाइन से गुजरना पड़ा था .....ओर इसकी पञ्च लाइन नेहरु को जैसे अपने ऊपर चुभती लगती थी ...."जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ है ".....ओर इस सोंग को शुरू होने से पहले नाचने वाली के बच्चे का रोना ....रुकना .. .उसकी बेबसी ....सब कुछ हिला देना वाला था जो इस गीत को ओर अमर कर गया ...साहिर साहिर थे .......मर्दों ने बाज़ार दिया .वक़्त से कही आगे का गीत था .जो आज भी सच कहतालगता है
जबरदस्त गीत के माध्यम से याद दिलाई साहिर साहब की उनके जन्म दिवस पर..अगली कड़ियों का इन्तजार.
is geet kaa jwaab nahin haen kisi kae paas ek sach jo hamehsa sach rahaa haen
प्यासा के इस गीत का कोई जोड़ नहीं ..बहुत शुक्रिया उनके जन्म दिवस पर इसे याद दिलाने का
क्या खूब याद दिलाया आपने...इस बेहतरीन गीत की कोई मिसाल नहीं.पता नहीं अब वैसे समर्पित
शायर क्यूँ नहीं होते...सचमुच गीत संगीत का सुनहरा दौर था वो...timeless song है ये ...साहिर के जन्मदिन पर उन्हें इस गीत के माध्यम से याद करने का बहुत बहुत आभार....अगली कड़ियों की प्रतीक्षा है.
इस भूले बिसरे से गीत को याद दिलाने के लिए शुक्रिया.
साहिर साहब को सलाम । इस पार आपसे विस्तार से सुनना चाहेंगे । लिखिये ।
13th March
Today is the last day, of those promised three days, for the next post.
Eagerly awaiting the next one.
Frankly, as a matter of pure personal preference, I would rate "Aaj Kyon Humse Parda Hai" as a far more befitting tribute to women, than yr choice of song.
"Tulasi iss sansar me, bhanti bhanti ke log".
Kaljayi geet..saaz,aawaz aur alfaaz kaa sangam..barson se ek kasak de jata hai..
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