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एक व्यक्तिगत अनुभव.
८५ वर्ष के हुए, और चिरयौवन सेहत के धनी आज भी उतनी ही एनर्जी और उमंग के साथ फ़िल्में बनाने में लगे हुए है.
मेरा देव आनंद के साथ एक अजीब संबंध है.
हमारा परिवार एक संयुक्त परिवार था, और जब से समझने लगा ,तब से घर में देव आनंद के Fans भरे हुए थे. मेरे ताऊजी के मेरे दोनो बडे भिया लोग सुबह से देर रात तक देव आनंद के बारे में ही बाते करते थे, यहां तक बडी चाची भी .जब कॊलेज गया तो मेरा सबसे अज़ीज़ मित्र हुआ अरुण जो पागलपन और उन्माद की हद तक देव जी को चाहता था.
बचपन में जब हमारे शहर इन्दौर में प्रेम पुजारी की शूटिंग हुई तब उनसे मिला था. An epitome of youth !!
फ़िर एक बार कुछ सालों पहले मैं और मेरा मित्र अरुण बंबई गये तो आज के ही दिन हम देव साहब के घर पहुंच गये, Just took Chance.उन्ही दिनों , उनकी कोई फ़िल्म भी रिलीज़ हुई थी .आश्चर्य हुआ यह जान कर की देव साहब घर पर ही थे और कुछ मेहमान आये हुए थे.ज़ाहिर है ,दरबान ने कहा-साहब नही मिलेंगे.
मैं Lions Club International का सदस्य हूं. ऐसे ही सोचा और कह डाला -हम लायन्स क्लब से है. बस , कुछ देर बाद पूछ कर आया और खुल जा सिमसिम --
पता चला कि कोई पार्टी वार्टी नही थी देव साहब अपनी नयी फ़िल्म टाईम्स स्क्वायर के लिये कुछ अमेरिकन film crew से फ़िल्म के बारे में ही विचार विमर्श कर रहे थे.वह भी जन्म दिन के दिन!!
तो यह मेरे लिये एक सबक था जो आज तक ज़हन में बाबस्ता है - कडा परिश्रम और मेहनत का ही फ़ल है कामयाबी.WORK IS WORSHIP...
कुछ देर के लिये उनसे माफ़ी मांगते हुए देव साहब मुझ से मुखातिब हुए और फ़िर चला आधे घंटे का एक निजी बातचीत या Informal Interview कह लें,जिसमें हुई देव सहाब की १९४६ से लेकर अब तक की फ़िल्मों पर चर्चा . फ़िल्म निर्माण, अभिनय ,संगीत की हर विधा पर उनका प्रभुत्व देख समझ मै हैरान था .
मुझे यह फ़क्र हासिल हुआ था की कहीं मैने उनकी १९५० के पहले की फ़िल्म ’ खेल’ देखी थी (घिसी पिटी, मॆटिनी में).उन्हे याद था.यही नही , उन्होने और मेहरबान होकर दूसरे दिन भी मेहबूब स्टुडियो में उनकी एक और फ़िल्म की शूटिंग पर आमंत्रित किया.वहां भी गये, और तब से आज तक उन यादों को दिल की गहराई में इस्तरी कर , घडी कर सहेज कर रखा है.
उनके साथ हुई बातचीत के ब्योरे का यहां महत्व नही, महत्वपूर्ण है उनके जैसे मेहनती और दिलकश युवा इंसान से मिलना.
(चित्र नेट से साभार )
देव आनन्द की फ़िल्मी संगीत यात्रा में जिन गायकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उनमें मुख्य है - मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार. वैसे उनके कुछ गीत तलत मेहमूद नें , हेमन्त कुमार नें और मन्ना डे ने भी गाये थे. जिसके बारे में एक अलग पोस्ट लिखूंगा.कुछ मजबूरियां है सेहत के मुताल्लिक, तो आप सहृदय हो मुआफ़ करेंगे.
चलिये आज उनके यह गीत सुनते है, जिन्हे मूलतः रफ़ी जी और किशोर दा नें गाया था.....(An Amature's karaoke )आज जब रेकॊर्डिंग की इतनी कमाल की तकनीकें मौजूद हैं ,जैसे कट पेस्ट, पिच करेक्शन , या टेम्पो करेक्शन आदि, तो यह कई साल पहले का प्रयास है. यकीन मानिये, आज सभी सुविधायें मौजूद है, मगर वह यादें और उसकी जुगाली कहां से लाऊंगा?
इसीलिये इन गीतों को सुनाना यहां ज़रूरी नही समझता. मगर क्या करें . दिल है के मानता नहीं...
अगर उचित समझें तो आगे बढें ,आप से नम्र निवेदन..
खोया खोया चांद, खुला आसमां, आंखों में सारी रात जायेगी...
फूलों के रंग से , दिल की कलम से...