हसरत जयपुरी
परसों थी सत्रह तारीख.17 सप्टेम्बर.
करीब नौ साल पहले १७ तारीख सन १९९९ को प्रसिद्ध उर्दू शायर/कवि जनाब हसरत जयपुरी इन्तेकाल फ़रमा गये, और हिंदी फ़िल्मों के गीत संगीत के इतिहास में अपना नाम सुनहरे हर्फ़ों में दर्ज़ करा गये.
उनके गीतों और जीवनी पर कुछ लिखने की तमन्ना थी , और हफ़्ते भर पहले से तैयारी भी चल रही थी.
मगर अचानक किसी कारणों से फ़िर लेट हो गये. इस बार एक दुर्घटना में पीठ और बायें हाथ पर पट्टा चढ गया.इसलिये क्षमा. अगर संभव हुआ तो कल ज़रूर कोशिश करूंगा, अगर इज़ाज़त मिली तो.
अल्लाताला ने उन्हे ज़न्नत तो ज़रूर बक्षी होगी, वे भी तो मुरीद होंगे उनके गीतों के...
हम भी उन्हे और उनके सभी गानों को याद कर अपनी श्रद्धांजली ज़रूर दें.
Friday, September 19, 2008
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5 comments:
दिलीपभाई
यह अचानक पीठ और हाथ पर पट्टा कैसे आ गया? आप जल्दी ही अच्छे हो जायें ऐसी परमात्मा को प्रार्थना करते है |
अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
THanks for remebering the great poet hasrat jaipuri
please be spare a little time to visit my blog again
फिर कहूँगा वही बात....
हमने एक लाजवाब गायक को यूँही ख़र्च कर दिया
समय इजाज़त दे तो कूद पड़िये मैदान में.
हमें सिर्फ़ गायक दिलीप से मुहब्बत है.
तब ही होता है वह सबसे बेहतर,नेक,साफ़ दिल और एक प्यारा इंसान....वरना गाना तो सभी गाते हैं...
हसरत जयपुरी हमेशा जीवित रहेंगे। उनके शब्द हमेशा हसरत जयपुरी को बुलंदियों पर बिठाए रखेंगे।
श्रद्धांजलि।
शुक्रिया मेरे स्वास्थ्य की प्रार्थना के लिये,हर्शद भाई.
यहां यह बात स्वयं सिद्ध है की सात समुंदर पार भी यह ब्लोग जगत और संगीत हमें एक दूसरे से जोडता है, और एक परिवार बनाता है.वसुधैव कुटुम्बकम् ...
अब थोडा ठीक हूं , आज से फ़िर शुरु..
संजय भाई,
आपकी यहां उपस्थिती सुहाती है, सुखाती है.
बात भली कही. मैने मानस के अमोघ शब्द पर लिखा ही है, आ अब लौट चलें..
और -- तुम अगर साथ देने का वादा करो,
मैं युंहीं मस्त नगमें सुनाता रहूं.. वादा.
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