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वो जब याद आये बहोत याद आये,
ग़में ज़िंदगी के अंधेरे में हमने,
चरागे़ मोहोब्बत , जलाये बुझाये...
मोहम्मद रफ़ी..A Legend !!!
एक बेहतरीन गायक, सच्चा कलाकार,मगर उससे भी बेहतर एक कोमल हृदय का मालिक, दिलदार, और सच्चा इन्सान..
आज अगर वे जीवित होते तो पता नहीं क्या होता, मगर वे हमारे दिलों पर ज़रूर राज़ कर रहे होते. वैसे भी आज यही स्थिती है, बस दुख ये है कि वे हमारे साथ नहीं.
इसीलिये, आज के इस पावन दिवस पर हम उस ईश्वर , अल्लाहताला को ज़रूर धन्यवाद देंगे, जिसने, सन १९२४ में इस दुनिया में ये देवदूत भेजा, जिसने अपनी सुरीली ,सुमधुर और मन के अंतरंग को छू जाने वाली आवाज़ से इतने सालों से हम सुनकारों के दिलों में दिली सुकून जगाया.
क्या ठीक कहा है..
दर्दे दिल, दर्दे जिग़र, दिल में जगाया आपने......
रफ़ी जी की जन्म कुंडली
रफ़ी जी की जन्म कुंडली अभी कल ही पुणें में मुझे मिली, तो आपके लिये यहां दे रहा हूं. जिनका भी ज्योतिष का अभ्यास हो उन्हे शायद ये बडी़ सौगात होगी.अगर कोई इसका विश्लेषण कर सके और मुझे दे सके तो यहां पोस्ट कर सकूंगा.
जन्म दिवस - २४ दिसेंबर १९२४
समय - सुबह ३.३० बजे
स्थान - कोटला सुल्तानसिंह , अमृतसर, पंजाब.
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रफ़ी जी पर लिख पाना और उनकी उत्तुंग करिश्माई व्यक्तित्व को शब्दों में ढा़ल पाना मेरे जैसे मर्त्य मानव के बस में नहीं.मगर इस चश्मे बद्दूर आवाज़ के साथ इतने साल जागा, सोया, गुनगुनाया,स्टेज पर गाया, खुद अनुभव किया. उनकी चिर युवा आवाज़ के स्वर सामर्थ्य की,मिठास की ,गोलाई की बेइन्तेहां नापी नही जा सकने वाली गुणवत्ता और गहराई को दूर से ही देख सकने की अपनी मजबूरी की यथार्थता सभी याद आ गयी. एव्हरेस्ट की चोटी मैनें जब नेपाल में चल रहे प्रोजेक्ट में देखी थी तो इच्छा तो हुई की उस चोटी को फ़तेह करूं. मगर कोशिश भी करूं तो संभव नहीं था. वैसे ही रफ़ी जी के गीत को गाते हुए मेहसूस हुआ. वे भारतीय फ़िल्म संगीत जगत के एव्हरेस्ट थे.
ये वह आवाज़ थी जो हमें अपनी खुद की आवाज़ लगती है.
तभी तो खुद रफ़ी जी नें क्या सही कहा है..
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे,
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे..
उन नज़ारों की याद आयेगी
जब खयालों में मुझको लाओगे...
उनकी आवाज़ को तो Timbre या ध्वनिरूप ही यूं था कि हर नायक के चरित्र को गहराई तक अद्ययन कर पूरी तन्मयता से
अपनी आवाज़ में ढाल लेते थे. दिलीप कुमार और शम्मी कपूर की एक दूसरे से मीलों दूर व्यक्तित्व को बखूबी निभाया. जॊनी वाकर और देव आनंद दो अलग अलग ध्रुवों को एक गले में आत्मसात किया वे थे रफ़ी जी.इसीको तो हम परकाया प्रवेश की सिद्धी कह सकते हैं.
याद किजिये देव साहब के लिये दिल का भंवर करे पुकार और बाद में राजेश खन्ना के लिये गुन गुना रहे हैं भंवरे..अमिताभ के लिये ही कहां जॊन जानी जनार्दन और कहां तेरी बिंदिया रे...
जहां शम्मी कपूर के लिये मस्ती भरी उंचे सुरों में गाया हुआ आसमान से आया फ़रिश्ता गाया या आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा ,तो तब भी expressive और musical रहे और एहसान तेरा होगा मुझ पर या मेरी मुहब्बत जवां रहेगी में भी अहेसासात की सीमा पार कर गये.
दिलरुबा दिल पे तू, ये सितम किये जा में या अकेले अकेले कहां जा रहे हो मेम उनका फ़ुसफ़ुसाना ,मांग के साथ तुम्हारा में दिलीप कुमार के लिये गीत के अंत में टांगेवाले का चिल्लाना, काम की बात बता दी अरे कामेडी गाना गाके में जॊनी वाकर के ढंग से हंसना, ’लाल लाल गाल ” में रॊक एन रोल के लिये तूफ़ानी चिल्लाना वह भी सुर में, योडलिंग का गाना आग्रा रोड का सब याद आ रहा है.
एक बार हुवा यूं कि किसी फ़िल्म में राजेंद्र कुमार को लिया जाना था और फ़िल्म के चार गीत भी रेकॊर्ड कर लिये गये थे.मगर उन दिनों ज्युबिली कुमार के पास इतना काम था, और किसी फ़िल्म की शूटिंग के लिये परदेस से आने में उनको ज़रा विलंब हुआ. इसलिये इस फ़िल्म के मिर्माता नें इतना रुकना उचित नहीं समझा और राजेंद्र कुमार की जगह जॊय मुखर्जी को नायक के लिये साईन कर लिया.
हर नायक की छबि, व्यक्तित्व और ढंग को उतरने वाले रफ़ी साहब को जब ये पता चला तो वे उस निर्माता के पास गये और कहा, कि चूंकि जॊय मुखर्जी को लिया है, सभी गीतों को फ़िर से रेकॊर्ड करना चाहिये.जॊय मुखर्जी की स्टाईल शम्मी कपूर से मिलती जुलती थी .संयोग से निर्माता और संगीतकार को ये बात बहुत ही उचित लगी और इसलिये उन सभी गीतों की फ़िर से रिकॊर्डिन्ग की गयी, और उन गीतों नें और फ़िल्म नें सिल्वर ज्युबिली मनाई.
जब इस का मेहनताना रफ़ी जी को निर्माता देने लगे तो उन्होने मना कर दिया. पता है उन्होने क्या कहा?
गाना मेरा पेशा है. मगर मेरे लिये पैसा नहीं पेशा अधिक महत्वपूर्ण है.
चलिये आज इतना ही सही. आज बाकी शाम उनके गीत सुनने में गुज़ारने की तमन्ना है, अगर आप इज़ाज़त दें तो.
अगले दो तीन पोस्ट में भी रफ़ी जी रहेंगे ये वादा. जो दिल में ही नहीं समा पा रहे है, वे तीन चार पोस्ट्स में क्या समायेंगे. फ़िर भी भावुक मन है.भक्तिभाव है, तो इस विराट स्वरूप के अंतर्दर्शन कर के मैं आप दोनों धन्य हों तो क्या हर्ज़ है?
हुई शाम उनका खयाल आ गया...