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रिधम किंग - ओ.पी. नैय्यर ,
कडी़ - १ -
कल उनकी पुण्य तिथी थी, २८ जनवरी को. अभी अभी दो साल ही तो हुए उन्हे हमसे बिछडे़.
फ़िल्मी संगीत की सुरीली दुनिया में कई संगीतकार हुए, जिन्होने अपनी अपनी प्रतिभा के बल पर हम संगीत प्रेमीयों को दिये नायाब खज़ानों की शक्ल में अलग अलग रागों में, emotions और संवेदना लिये हुए ढाई तीन मिनीट के गीत. जिनमें आप पाते है उस गाने का थीम या बेसिक खयाल, उसकी फ़िल्म में पूर्वपीठिका या वर्तमान स्वरूप, ज़ज़बात, मूड्स,मुख्त़सर से भावपूर्ण बोल जो गीतकार या शायर के जीनीयस मन की गहराई से निकले हैं, नवरसों को अपनी गिरफ़्त में लिये स्वरावली, गायक या गायिका का मेलोडी से भरपूर सुरीला अंदाज़, और सबसे महत्वपूर्ण उस संगीतकार के अपने SIGNATURE!!!
निसंदेह इतने सारे संगीतकारों में अपना अपना एक जुदा स्वर संयोजन होता है, जो अच्छे सुनकार बखूबी पहचान लेते है.ऐसी संगीतकारो की फ़ेरहिस्त में ओंकार प्रसाद नैय्यर का नाम शीर्ष पर है.
आपने सुना ही होगा उनकी रचनाओं में एक स्थाई भाव है हर गीत की रिदम. शास्त्रीय संगीत की कोई तालीम नही होने के बावजूद, उनकी पकड़ चलत वाले रिदम के गानों पर कितनी थी ये बताना नही पडेगा.इसीलिये उन्हे फ़िल्म इंडस्ट्री में रिदम किंग कहा जाता है.
पंजाब की नदियों के धारों सी अठखेलियां करती हुई ढो़लक की खींचती खींचती थाप,
(सुभानल्ला हसीं चेहरा, लेके पहला पहला प्यार, आईये मेहरबान,वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूं...)
या तांगे में बैठ कर घोडों की टापों की लयकारी ,
(पिया पिया पिया मोरा जिया पुकारे, मांग के साथ तुम्हारा, ज़रा हौले हौले चलो मेरे साजना..)
या पाश्चात्य बीट्स से तली हुई हौले हौले आंच पर सीकी हुई ताल
(जाईये आप कहां जायेंगे,बंदा परवर थाम लो जिगर, मैं प्यार का राही हूं,ए दिल है मुश्किल जीना यहां....)
आपको नैय्यर साहब के हर गीत में मिल जायेगी. साथ में सारंगी की मींड भरी फ़ुहार, या क्लेरोनेट और म्य़ुट ट्रम्पेट की जुगलबंदी या सितार और फ़्ल्युट की बिजलियां एक जगह हो जायें तो नैय्यर की जादूगरी का कमाल आकार ले्ता था और हिस्ट्री बन जाती थी.(दीवाना हुआ बादल..)
क्या आपको सुनकर आश्चर्य नही होगा, कि सुबह की ओस की बूंदों के स्वर लिये गीत - आपके हसीन रूख पर में जहां पाश्चात्य संयोजन के लिये पियानो का उपयोग किया गया है, इंटरल्युड और अंतरे के संगम पर पृष्ठभूमि में कहीं पीछे आपको सारंगी का हलका हलका कंटिन्युटी नोट मिलता है, जो कमाल का है!!! ( ज़रा कान लगा कर सुनिये )
फ़्ल्युट का स्थाई स्वर तो है ही!!!
रफ़ी साह्ब के हसीन गलें से निकले इस नायाब मधुर गीत में आपको हर जगह बला की कशिश और शोखियां मिलेंगी और शबाब की बिजलीयों का अंडर करंट स्वरों की सुकून भरी तरन्नुम में आप यूं नहायेंगे जैसे कि सुबह सुबह किसी कुनकुने झरने से स्नान कर के आ रहे हों...
आज इस कडी़ में मैं एक अजीब सा संयोग बताना चाहूंगा जो दो साल पहले १६ जनवरी को उनकी जन्मतिथी पर घटा था.
मैं उस दिन मुंबई में था काम के सिलसिले में, और साथ ही मेरे बडे़ भाई साहब सुरेंद्र भैया के लडके अंकित को हिंदुजा अस्पताल में भरती किया गया था ब्रेन सर्जरी के लिये.सर्जरी के दूसरे दिन सुबह मैं और मेरे भैय्या अस्पताल के बाहर के किसी अच्छे रेस्टोरेंट में नाश्ता करने गये.
साथ ही के टेबल पर दो ६० के लगभग की उम्र के व्यक्ति बैठे थे और चर्चा का विषय था - ऒ पी नैय्यर . उन्होने बातों ही बातों में बताया कि उस दिन नैय्यर साहब का जन्म दिन था और वे बाद में उनसे मिलने उनके घर जा रहे थे.(वे हर साल जाते थे).
मैंने उत्सुकतावश कहा कि मैं भी जाना चाहूंगा, अगर उन्हे ऐतराज़ ना हो. उन्होने हर्ष से स्वीकार किया और हम निकले उनके नये ठिकाने थाना में , जहां वे विरार के बाद रहने आये थे.
दिल की धड़कनों को जब्त करते हुए जब हम उस घर की सीढी़ से उपर चढने लगा तो फ़िज़ा में संगीत की स्वर अणु बिखरे होने सा आभास मुझे होने लगा. ( य़े मेरा दिवानापन है, या मुहब्बत का सुरूर, कोई ना पहचाने तो है ये उसकी नज़रों का कसूर)
मैं रास्ते भर में लोकल में और फ़िर रिक्शा में उनके गीतों को गुनगुनाता आ रहा था, और नैय्यरमय हो गया था तब तक.
लेकिन खुदा को ये मंज़ूर नहीं था कि मेरा उनसे मिलने का सपना सच हो.वहां, जिनके घर में सबटेनेंट बन कर वो रह रहे थे उस युवा महिला में हमसे कहा कि वे अब किसीसे भी नहीं मिलते, और खासकर उनके जन्म दिन पर. इसलिये वे तारापोर के आदिवासी इलाके में सुबह से ही निकल गये है, जहां वे एक होमियोपेथी का क्लिनीक सा चलाते थे.
बडे ही मायूसी से उनके दर से हम निकल पडे़. जाते जाते उनके कमरे की खुली खिडकी में से उस रूम को देखा- कहीं कोई संगीत का साज़ या फ़िल्मी दुनिया से जुडी कोई यादगार ट्रोफ़ी या चित्र नदारद थे, सिर्फ़ टेबल पर पडी थी उनकी एक टोपी - जैसे के ज्वेल थीफ़ में देव आनंद नें पहनी थी.
उस टोपी को खामोशी भरा सलाम करते मैं सीढी उतर गया - ये गाते गाते -
चैन से हमको कभी, आपने जीने ना दिया...
ज़हर भी चाहा अगर पीना तो पीनी ना दिया....
बस दो हफ़्तों बाद अचानक ये खबर से सामना हुआ-
प्रख्यात संगीतकार ओ.का निधन............