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इस बार फ़िर देर हो गयी, घर में शादी जो थी.मित्रों को भी यही समय मिला था.
बस सब निपट चुका है, चार किलो वजन भी बढ गया है, और आज महाशिवरात्री के रोज़ का उपवास बडा सुकून भरा लग रहा है.
आज की सबसे बडी खबर ये है कि ओस्कर में भारतीय विषय पर बनी फ़िल्मों में स्लमडोग को ८ पुरस्कार मिले, और पिंकी की स्माईल और दूगनी हो गयी पुरस्कार के बाद. साथ ही हमारे सभी भारतीयों की भी स्माईल सौ गुना हो गयी, क्योंकि ऐसा अवसर बिरला ही आता है. अब इस बात में मीन मेख निकालने की कतई ज़रूरत नहीं कि यह फ़िल्म तो भारतीय नहीं.
चलिये साहब, आपने सुना नहीं? पुरस्कार मिलते ही रहमान नें क्या सही कहा है कि उसे जब चुनना पडा तो उसने सुख को चुना, दुख को नहीं. हम सब खुश हो जायें वाकई में, और न्यूज़ मीडिया भी खुश हो ले कि उसे दिन भर या २४ घंटे की खबर मिल गयी है.
मेरी बिटिया मानसी नें जब ये सुना तो कहा कि रहमान नें इससे भी अच्छे गाने कंपोज़ किये है, मगर इस गानें को जब मिलना था तो मिल ही गया.मेरे एक मित्र, जो मेनेजमेंट कोलेज चलाते हैं , ने कहा कि इस गीत की धुन कुछ इस तरह से बन पडी़ है, कि सकारात्मक फ़ीलींग आती है,और मेरे यहां एक परिसंवाद में ये विषय रखा गया था.
मैने सच कहूं तो ये गीत अब तक पूरा नहीं सुना था , इसलिये जब सुना तो पाया कि उत्साह के वातावरण में बुने हुए इस गीत के स्वर संयोजन में एक सीढी की तरह सुर नीचे से ऊपर जाते है, और जय हो पर ब्लास्ट करते है.
जहां तक गुलज़ार के लिखे शब्दों का सवाल है, अमूमन आजकल के गीतों के शब्दों पर तो युवा पीढी़ ध्यान ही नहीं देती.उन्हे तो गीत की धुन , उससे ज्यादा उसका रिदम से मतलब रहता है, ज़्यादाहतर. इसलिये कई युवाओं से जब पूछा तो अधिकतम सभी कन्नी काट गये. मैंने जब सुना तो पाया कि शब्द भी मधुर और डेकोरेटिव है.
मैं इसलिये यहां सिर्फ़ शब्द दे रहा हूं क्योंकि गीत तो अब अगले दो दिन और चलेगा हर चेनल पर.
जय हो,जय हो, जय हो, जय हो ,
आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,
रत्ती रत्ती सच्ची मैने जान गवाईं है,
नच नच कोयलों पे रात बिताई है,
अंखियों कि नींद मैने फूंको से उडा दी,
नीले तारे से मैने उंगली जलायी है,
आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,
चख ले , हां चख ले, ये रात शहद है..चख ले
रख ले , हां दिल है, दिल आखरी हद है,...रख ले
काला काला काजल तेरा कोइ जादू है ना
काला काला काजल तेरा कोइ जादू है ना
आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,
कब से, हां कब से तु लब पे रुकी है...कह दे
कह दे, हां कह दे अब आंख झुकी है...कह दे
ऐसी ऐसी रोशन आंखे रोशन दोनो भी है है क्या
आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,
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कार्यक्रम शुरु होने से पहले जब मैं लान में सजी गोल टेबल पर बैठने गया ही था तो एक टेबल पर शिवमणी को अकेले बैठे देख मेरी तो बांछे ही खिल गयी. मेरे जिस मित्र नें अपने यहां शादी के रिशेप्शन में शिवमणी को बुलाया था, और किसी कामन मित्र की वजह से उसने ये पेरफ़ार्मेंस देना कबूल किया था.
जाहिर है, मैं और मेरी पत्नी उससे बातें करने लगे. उसने यह बताया कि दर असल आज उसे अमेरिका में होना था रहमान के साथ ओस्कर में मगर चूंकि पहले से कमिट कर दिया था मित्र को , तो यहां आ गये.एक और बात बताई जो महत्वपूर्ण है, कि आज रात को उसे मंगलोर में शिव मंदिर में अपना कार्यक्रम देना था, जो पिछले इतने सालों से वे मुफ़्त में दे रहे है.
शिवमणी वाकई में एक प्रयोगधर्मी कलाकार है और अपने साथी रहमान की तरह ही जिनीयस है.वह बता रहा था कि किस तरह वे दोनों इलाया राजा के पास कीबोर्ड और ताल वाद्य के लिये गये थे और उन्होने अपनी पूरी संगीत साधना वहीं की. बाद में उन्होने एक बेंड भी बनाया जिसका नाम था - रूट्स, जिसमें वे जिंगल्स और बेकग्राऊंड संगीत रचा करते थे. बाद में रोजा के ऐतिहासिक प्रसिद्धी के बाद उनकी टीम नें पीछे मुड कर नहीं देखा. इसी टीम में है नवीन कुमार जिसने मुंबई , ताल और दिल से में अपनी बांसुरी से हमारे होश उडा दिये थे.बेस गिटार के पीटर्स का भी यही मानना है, कि अगर आपमें कल्पना शक्ति है, तो आप रहमान के साथ जुड सकते हैं, क्योंकि वह सुरों का जादुगर है, और नई धुन में कुछ नयापन डालता है. जहां बाकी के संगीतकार नया करने की बजाय, एक ही सांचे में धुनों को ढालते है, क्योंकि वह धुन कामयाब हुई थी, रहमान इससे डरता नहीं.
मैंने उसे कहा कि वह वाकई में जिनीयस है, तो वह बडे ही सादगी से बोला, हम सब जिनीयस होते है, फ़रक सिर्फ़ यही है कि हम अपने आप को ईवोल्व कितना बेहतर कर पाते हैं. रहमान भी इसी लिये उससे बेहतर जिनीयस है, कलाकार है, क्योंकि उसने भारतीय मेलोडी और पाश्चात्य सिम्फनी का बेहद ही खूबसूरत फ़्युज़न किया. आज गुलज़ार नें भी तो कहा ही है, कि रहमान नें गाने के प्रचलित फ़ारमेट में कभी अपने आप को नही बांधा, और इसलिये,उसकी रचना में स्थाई, इंटरल्युड, अंतरा आदि में स्ट्रक्चर की जगह झरने जैसी अठखेलियां करती हुई धुनें होती है, जो कहीं ऊपर उठती है, तो कहीं ज़मीं पर कलकल बहती है.स्वदेश फ़िल्म का आठ मिनीट का वह गीत हो जिसे तीन गायकों ने गाया, या युवा फ़िल्म का अलग रिदम का गीत, रंग दे बसंती का युवाओं पर फ़िल्माया गीत आदि आदि.
मैंने शिवमणी से ये ज़रूर कहा कि मुझे राहुल देव बर्मन में और रहमान में ये बात कामन लगती है, कि दोनो ने ही प्रयोगधर्मी होने के साथ ताल और लय पर अलग अलग काम किया है. राहुल तो स्वयं ही एक अच्छे रिदम मास्टर थे, मगर रहमान के अलग अलग रिदम के प्रयोग के पीछे ज़रूर शिवमणी ही है. वह मुस्कुराया , शरमाया, और फ़िर कह उठा- रहमान को जो चाहिये वह हासिल कर लेता है, अपने ग्रुप से. हम भी यूं ट्युन हो गये है, कि हमेशा कुछ अलग रचने के लिये लालायित रहते है.उसे अपने काम पर गर्व ज़रूर है, खुद पर नहीं, क्योंकि उसमें एक बात है जिससे उसकी क्रियेटिविटी में हमेशा इज़ाफ़ा होता रहता है, वो है - उसकी स्पिरिच्युअलिटी या आध्यात्म!! (तभी तोआज उसने सबके सामने ये कह दिया- मेरे पास मां है. )
जय हो के गीत के बनने की प्रक्रिया पर उसनें बताया, कि इसपर रहमान के पास दो तीन धुनें थी, और सभी बढिया थी.
चलो , शिवमणी नें जो पर्फ़ार्मेंस दिया उसकी रिकोर्डिंग यहां दे रहा हूं आप के लिये- आनंद उठाईये, और मस्त हो जाईये--
जय हो !!!!
साथ में उसके विडियो भी देख लें...