कडी़ - २
जब हम ओ पी नैय्यर के गानें सुनते हैं तो ये बात तो निर्विवाद सत्य है ही कि उनकी संगीत शैली, धुनों का Dynamics,सुरों के कोर्ड्स की विविधता, लय की मस्तानी चाल आदि अन्य संगीतकारों से एकदम हट के थी.साथ ही , हिंदुस्तानी तथा पाश्चात्य वाद्यों के माकूल उपयोग की विविधता भी आम चलन से अलग थी.
जैसे कि क्लेरिनेट के दो अलग अलग नोट्स या मोटी पतली आवाज़ का बांसुरी के साथ प्रयोग, सारंगी और सितार का फ़डकता पीस देकर मादकता की हद तक ले जाने का प्रयास, वातावरण की निर्मिती के लिये संतूर का आलाप के साथ ब्लेंडिंग, ढोलक और वन टू वन टू रिधम का अनूठा संगम, स्थाई/अंतरे और इंटरल्युड का गजब का मिक्सिंग, अपने आप में दीवाना बनाने के लिये काफ़ी था.
मगर साथ ही, उनकी शास्त्रीय रागदारी पर नियंत्रण भी हमें कई गीतों में नज़र आता है. हालांकि ऐसे गाने कम ही थे, और वे खुद ये बात कबूल करते थे कि उनकी शास्त्रीय संगीत की कोई विधिवत तालीम नहीं हुई थी.बावजूद इसके, उनकी गीतों में कहींभी कोई कमी नही रह जाती थी.
इसीलिये जब कल्पना फ़िल्म के लिये एक महत्वपूर्ण गाने का इंतेखा़ब किया गया तो कई जानकारों की भौंहें उठ गई थी कि देखें क्या गुल खिलाते है नय्यर साहब.त्रावणकोर बहनों के भरत नाट्यम की शानदार शास्त्रीय नृत्य शैली को दर्शाने के लिये इस गीत की ज़रूरत मेहसूस की गई -
तू है मेरा प्रेम देवता....
बिलाशक, रफ़ी जी तो नैय्यर साहब की पहली चाइस थे ही, क्योंकि आप देखेंगे कि फ़िल्म दो उस्ताद में राज कपूर के लिये भी वे मुकेश जी की जगह रफ़ी जी की आवाज़ के लिये अड़ गये थे (एरिरा राका राका का बाका,तू लडकी मैं लडका..).
तो साथ में दूसरे स्वर के लिये निसंदेह मन्ना दा का चयन तो होना ही था.तो फ़िर बनी वह कालजयी संगीत कृति इसको बनाने के लिये नैय्यर साहब नें भी बहुत मेहनत की.
बताते हैं कि रफ़ी साहब जब भी किसी गाने की रिकॊर्ड़ करने स्टुडियो पहूंचते थे तो तो अक्सर वे अपने पास एक इत्र के कुप्पी रखते थे और वहां मौजूद सभी व्यक्तियोंको खुशबू से तर बतर कर देते थे, गोया उनके मदहोश कर देने वाली आवाज़ से कोई कमी रह जाती हो.मगर उस दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.शायद इस गाने की गंभीरता को भी दोनों गायक बखूबी समझ रहे थे, तो इसीलिये काफ़ी रियाज़ के और तालीम के बाद ये गाना रिकॊर्ड किया गया.रिकोर्डिंग से पहले रफ़ी साहब साज़िंदों को कितना सन्मान देते थे वह इस बात से पता लगता था फ़ाईनल टेक से पहले वे स्वयं वाद्यवृंद समूह के पास जा कर सभी को बडी़ विनम्रता से कहते थे कि ज़रा सम्हाल लेना !!
ओ पी नय्यर की समस्या कुछ और भी थी. आवाज़ की गोलाई, रियाज़, सुरों पर पकड़ ,आदि सभी विधाओं में ये दोनो गायक कहीं भी एक दूसरे से कमतर नहीं थे. मगर उन दोनों की आवाज़ में जो अलग अलग कण था , अंदाज़े बयां या Timbre था उसके अनुरूप ही बंदिशें , ताने, या आलाप का सुर संयोजन होना ज़रूरी था, क्योंकि दोनों की पूर्ण क्षमता का और व्यक्तिगत खूबीयों का इज़हार प्रस्तुत गाने में होना लाज़मी था.
बखुदा , कितना मुश्किल , कठिण काम था जो नय्यर साहब नें आत्म विश्वास और हिम्मत से अंजाम दिया कि दोनों गायकों के सहित सभी उपस्थित जानकारों ने उनको खूब सराहा.
इस बात की कठिनता मैंने भी तब महसूस की जब पिछले दिनों जब मन्ना दा पर आधारित कार्यक्रम - दिल का हाल सुने दिल वाला - में मुझे इस गाने को पेश करने का मौका मिला. संयोग और सौभाग्य कहिये, इस कार्यक्रम में सिर्फ़ मैं ही गायक था, स्वाभाविक था कि दोनों गायकों के बोल मुझे ही गाने थे.
चलिये आज मैं एक आत्म अनूभूति या अंतरंग के अनुभव को ईमानदारी से आपके साथ बांटना चाहूंगा, जब मैंने इस गीत के लिये इन दोनो दिग्गज गायकों की गायन शैली को गहनता से समझने की कोशिश की.वैसे इन दोनों को अलग अलग गीतों के ज़रिये कई बार गाया था, मगर शास्त्रीय रंगों से तरबतर इस अनूठे मगर बेहद क्लिष्ट या कठिण इस गीत में दोनो के साथ न्याय करना मेरे जैसे की औकात के बाहर थी.
वैसे उन दिनों भारतीय फ़िल्म संगीत के आकाश पर जो सुरीले सितारे चमक रहे थे, उनकी आवाज़ में और अदायगी में फ़र्क हुआ करता था. मुकेश की नासिकोत्पन्न दर्द भरी आवाज़ से हेमंत कुमार की बेस लिये हुए हमिंग आवाज़ हो या किशोर कुमार की कडक और खनक लिये हुए आवाज़ से तलत मेहमूद की कोमल और लर्जिश भरी मखमली आवाज़ हो,एक पृथक पहचान लिये हुए ध्वनिरूप आपके मानस के सामने आ जाता है.मगर उस अनुपात में रफ़ी और मन्ना डे की आवाज़ में फ़र्क होने के बावजूद काफ़ी समानता भी थी.
इसलिये अपने सीमित स्वरविवेक से मैने ये पाया कि जहां मन्ना दा की धीर गंभीर आवाज़ में माधुर्य और स्वरों की गोलाई का और हरकतों का उनके अनोखी स्टाईल में उपयोग किया , वहां रफ़ी जी ने पाक निर्मल , जवां (Youthful) और सधी हुई मीठी सी आवाज़ में सीधे सच्चे तानों के सुर लगाये, और इस बात की बानगी दी कि गायकी की रेंज में और मेलोडी भरी अदायगी में शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत भी कितनी आसानी से गाया जा सकता है.पर्दे पर दोनों नायिकाओं में से कोई भी जीता हो,मगर इस गाने में भारतीय फ़िल्म जगत के दो महानतम गायक संपूर्ण रूप से जीत के भागीदार बनें.
तो मेरे संगीत के सुरीले सफ़र के साथियों, जैसा कि आपका आग्रह था, कि मैं इस संगीत गोष्ठी में अपनी आवाज़ में भी कुछ प्रस्तुत करूं तो आपको मसर्रत हासिल होगी.तो दिलीप के दिल के साथ अब ये दिलीप के सुरों से ये गीत सुनाता हूं.
अब इस प ध नि सा के बाद के आंठवें सुर को पेश करते हुए बिस्मिल्लाह करता हूं. इस कार्यक्रम में मेरे साथ सूत्रधार हैं, मेरे अज़ीज़ और अज़ीम फ़नकार श्री संजय पटेल जिन्होने एंकर की विधा को नये आयाम दिये.
(गाने में एक बात आप नोट करें - चूंकि इससे पहले एकदम अलग पृष्ठभूमी का और स्टाईल का गीत - आओ ट्वीस्ट करें गाया था. इसलिये, इस शास्त्रीय स्वरों से भरपूर गीत के लिये स्वरों को मन में उतारने के लिये थोडा़ समय लिया. दूसरा, इस गीत की मुश्किल बंदिश की वजह से इसे मात्र एक अंतरा गा कर समाप्त करने की योजना थी, मगर ऐन समय पर गीत के उस सत्चिदानंद स्वर समाधी का हल्का सा एह्सास होने की वजह से गीत को पूरा गाया गया.
आंठवा सुर..
अगले कडीं में - ओ पी नय्यर, रफ़ी, और गुरुदत्त ...
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10 comments:
दलीप जी बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने , बहुत ही मेहनत से, आप ने इतनी जानकारी ढुढी, ओर फ़िर उसे सुंदर शव्दो से सजाया, ओर हम तक पहुचाया,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद
तू है मेरा प्रेम देवता- आपकी आवाज में सुनकर आनन्द आ गया. साथ ही संजय भाई की ऐन्करिंग का भी हल्का सा नजारा मिल गया. सुबह सुबह इस बेहतरीन जानकारीपूर्ण आलेख के साथ यह पूरी पैकेज डील पाकर मन गदगद हो गया.
बहुत आभार एवं शुभकामनाऐं.
क्या बात है दिलीप. इस पोस्ट पर आने से ठीक पहले मैं यूंट्यूब पर यह गीत और उससे पहले "तेरे नैना..." सुनकर आनंदित हो रहा था. इतने सुंदर प्रस्तुतीकरण के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
दिलीप जी आप के गीत ने तो मन्त्र मुग्ध कर दिया!
जल्द ही इसे आप ऑडियो में भी इसी पोस्ट में रखीये ताकि कम बैंड विड्थ वाले भी
इस गीत का लुत्फ़ उठा सकें.
यू ट्यूब से डाउनलोड होने में समय भी लगता है.
आगे भी आप से ऐसे ही मधुर गीत सुनने को मिलते रहेंगे ऐसी उम्मीद है.
Aapki aawaz bhot hi pyari hai...geet sun kar mza aa gya...ek bar fir aana padega...filhal to neend aane lagi...!
Dilipbhai
Two stalwarts together!You with Sanjaybhai!
It was an enjoyable song with your sweet voice.
Please keep coming on your blog like this again and again.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
वाकई में संजय भाई नें अपनी खूबसूरत मीठी आवाज़ की जादू से और साहित्यिक,आत्मीय शब्दों की नफ़ीस बुनाई से इस कार्यक्रम में चार चांद लगा दिये.निसंशय उनकी उपस्थिती से ,बतौर एंकर ,पूरे आयोजन की ऊंचाई और वज़न बढ जाता है .
वस्तुतः , मुझे ब्लोग दुनिया से परिचय कराने का भी श्रेय उन्ही को जाता है.एक पूरी पोस्ट कभी उनको और उनके फ़न के लिये भी समर्पित करूंगा.
आप को यह गीत और गायन पसंद आया तो शततः धन्यवाद. रौनके महफ़िल यूंही बढती रहेगी इसका वायदा. इस प्रोग्राम ’ दिल का हाल सुने दिल वाला’ को क्रमवार पेश करने की भी कोशिश करूंगा, अगर संभव हुआ.
दिलीप जी, आपकी आवाज में गाना सुना, बहुत अच्छा लगा। गायन भी एक जन्मजात प्रतिभा है जो बाद में नहीं प्राप्त की जा सकती। मैं खुद कभी सुर में नहीं गा सकता इसका मुझे बहुत अफसोस रहता है। पर अपनी इस limitation के बावजूद भी मैं गानों का रसिया हूं। आपके ब्लॉग पर बहुत रोचक जानकारी होती है जिसका आंनद उठाता हूं। आप अपने ध्येय में लगे हुए हैं इसके लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं। आपकी आवाज ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे ऐसी मेरी मंगल कामना है।
अरे साहब आनंद आ गया, दिलीप भाई आज फुर्सत में आपके सारे आलेख एक साथ पढ़ डाले सब पर टिपण्णी नही कर पाऊंगा पर आपको और संजय भाई को एक मंच पर देख बहुत खुशी हुई...बहुत कमाल गाते हैं आप.....वाकई आत्मा तृप्त हुई इतना सुंदर गान सुन..... फ़ोन पर बात करूँगा
आपने अपने दूस्रे ब्लोग पर पद्मश्री की दुकानदारी के बारे में खूब लीखा.हमारा बस चले तो संगीत लेखन के लीये आपको पद्मश्री दे दे.न जाने वह समय कब आएगा की आप जैसे निविर्कार संगीत सेवी नवाझे जाएगे.
s.r.karandikar
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