चित्र- साभार सुश्री लावण्याजी
अभी अभी कहीं ये बहस चल रही थी कि फ़िल्मी गीतों में गीतकार का क्या योगदान होता है.
बेशक , हम जो भी गाने आज सुनते है, उनमें से अधिकांश में बोल तो सिर्फ़ सुरों को बांधने के लिये ही है. और तो और, जैसा कि स्वयं लताजी नें अभी अभी किसी इंटरव्यु में क्या सच कहा था - कि आजकल तो गाने रिदम की बेस पर ही बनते है, और सुर तो उस ताल को चाल को बांधने के लिये ही होते है.तो फ़िर शब्दों की तो बिसात ही क्या.तभी तो इन गानों को लंबी आयु नसीब नहीं होती,और इन गानों की ए़क्सपायरी डेट बहुत ही कम होती है.
मगर हम जब फ़िल्मी गीतों का वह गरिमामयी इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि चालीस पचास दशक में गाने में बोल, सुर और ताल ये सभी घटक समान तौर पर महत्वपूर्ण होते थे, जिसमें गीतों के भावपक्ष का , साहित्यिक गहराई, या अदबी वज़्न का गीत के पोप्युलर होने में संपूर्ण योगदान होता था.तभी तो उन दिनों के गाने अभी तक सुने जा रहे हैं और उनकी एक्सपायरी डेट कभी भी खत्म नहीं होती!!!
पंडित नरेंद्र शर्मा उसी कालखंड के गुणी गीतकार थे, जिन्होने विशुद्ध हिंदी शब्दों में अपने हर गीत गूंथे , जो आज तक हमारे जेहन में बाबस्ता है, स्थाई रूप से अंकित हैं.
आपको तो पता ही है, कि पचास के दशक के प्रारंभ में जो भी गानें लिखे जाते थे वे मुख्यतः अदबी उर्दु के लफ़्ज़ों से गढे जाते थे जिसमें भावनाओं और संवेदनाओं को, अहसासात को बखूबी सुरों में पिरोया जाता था, और बनते थे वे कालजयी गीत जिन्हे आज भी आप हम सुन ही रहे हैं. ( साहिर, मजरूह, कैफ़ी आज़मी, शकील आदि)साथ ही में,भोजपुरी , अवधी आदि क्षेत्रिय बोलीयों में भी कहीं कहीं गीत बनाये गये.
मगर मात्र शुद्ध साहित्यिक हिंदी शब्दों पर बनाये हुए गीतों के लिये हम याद करते है शैलेन्द्र, प्रदीप, भरत व्यास ,नीरज और पं. नरेंद्र शर्मा.
सन १९५१ में फ़िल्म अफ़सर में सचिनदा के संगीत निर्देशन में पांच गीत आपने लिखे थे-
नैन दीवाने, इक नहीं माने..
मनमोर हुआ मतवाला..
गुन गुन गुन बोले रे ..
परदेसी रे जाते जाते...
प्रीत का नाता जोड़ने वाले..
याद है वह लताजी का गाया गैर फ़िल्मी गीत- जो समर में हो गये अमर, मैं उनकी याद में..
या विविध भारती के उदघाटन पर मन्ना डे द्वारा गाया गीत, जिसे अनिल विश्वास नें संगीत्बद्ध किया था- नाच रे मयूरा...
फ़िल्म फिर भी का ये गीत जो बेहद प्रसिद्ध हुआ, और मुझे भी गाने के लिये प्रेरणा देता रहा वह है-
क्यूँ प्याला छलकता है :
क्यूँ दीपक जलता है
दोनों के मन में कहीं अनहोनी विकलता है
क्यूँ प्याला छलकता है पत्थर में फूल खिला
दिल को एक ख़्वाब मिला
क्यूँ टूट गए दोनों इसका ना जवाब मिला
दिल नींद से उठ उठ कर
क्यूँ आँखें मलता है.. हैं राख की रेखाएँ लिखती है चिंगारी
हैं कहते मौत जिसे जीने की तैयारी
जीवन फिर भी जीवनजीने को मचलता है॥
मगर पंडितजी के लिखे हुए दो गीतों का खास ज़िक्र करना चाहूंगा, जिसनें उन्हे और इन गीतों को अमर कर दिया है-
वे है ज्योति कलश छलके, और लौ लगाती गीत गाती.
लताजी स्वयं ये बात मन से कबूल करती हैं कि पंडितजी में उन्हे उनके पिता के दर्शन होते थे, तभी तो वे उन्हे पापा कह कर बुलाती थी.
सँगीत : स्व. श्री सुधीर फडके
स्वर: लता मँगेशकर
कविता: स्व.पँ.नरेन्द्र शर्मा
फिल्म: भाभी की चूडियाँ
नायिका: स्व. मीना कुमारी
सुधीर फडके द्वारा कई गीतों को मराठी में स्वरबद्ध किया गया है, मगर हिंदी में उन्होने ये एक अनमोल भेंट दी है .
तो चलें -सुरों की आमराई में बैठ कर मीनाकुमारी के जीवंत और ओस से पावन , कोमल भावाभिव्यक्ति से भरे अभिनय की लता मंगेशकर के अलौकिक , उतनी ही पावन आवाज़ में गाई गई इन संगीत रचनाओं की जुगलबंदी का आनंद आप और हम लें, और यहीं पिघल कर इस स्वर गंगा में एकरूप हो जायें.........
ज्योति कलश छलके ,ज्योति कलश छलके..
हुए गुलाबी , लाल सुनहले,रंग दल बादल के...
ज्योति कलश छलके...
घर आनंद वन उपवन उपवन,
करती ज्योति अमृत के सिंचन,
मंगल घट ढ़लके,२
ज्योति कलश छलके...
अंबर कुंकुम कण बरसाये ,
फ़ूल पखुरिया पर मुसकाये,
बिंदु तुही न जलके,२
ज्योति कलश छलके...
पाट पाट बिरवा हरियाला,
धरती का मुख हुआ उजाला,
सच सपने कल के,२
ज्योति कलश छलके...
उषा नें आंचल फ़ैलाया,
फ़ैली सुख की शीतल छाया,
नीचे आंचल के,२
ज्योति कलश छलके...
ज्योति यशोदा धरती गैय्या ,
नील गगन गोपाल कन्हैय्या ,
श्यामल छबि छलके,२
ज्योति कलश छलके...
दूसरा गीत है -
लौ लगाती गीत गाती,
दीप हूँ मैँ, प्रीत बाती
नयनोँ की कामना,
प्राणोँ की भावना.
पूजा की ज्योति बन कर,
चरणोँ मेँ मुस्कुराती
आशा की पाँखुरी,
श्वासोँ की बाँसुरी ,
थाली ह्र्दय की ले,
नित आरती सजाती
कुमकुम प्रसाद है,
प्रभू धन्यवाद है
हर घर में हर सुहागन,
मँगल रहे मनाती
देखा, छोटी बहर में क्या कमाल के बोल चुन चुन कर बिठायें है, जैसे कि किसी मिनीयेचर पेंटिन्ग में स्वर्ण और चांदी के रंगो से बारिक कलाकारी की गई हो!!
एक छोटी सी पहेली पूछ रहा हूं.
सन १९५७ ने पं. नरेन्द्र शर्मा नें एक नाम सुझाया था जो आज भी बेहद लोकप्रिय है?
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14 comments:
Very good info as always. In the same spirit, pl also think of including the likes of Suman Kalyanpur, Neeraj, Johnie Walker, Rehman (the actor)etc. Keep the creative juices flowing.
वाकई दिलीप भाई आपने दिल से लिखा है
आपके ब्लाग पर आकर दिल गुननाने लगता है
शिकायत, रोज क्यों नहीं आते जी?
और आकाशवाणी तो हमेशा हमेशा लोकप्रिय रहेगा ही,
लावण्या जी तो अक्सर उनकी महत्ता का अहसास कराती ही है .आज यहाँ पढ़कर असीम संतोष महसूस हुआ ....निसंदेह वे एक अमूल्य धरोहर ओर सह्रदय इंसान थे .
बहुत ही सुंदर, आप के यहां बहुत जानकारी मिलती है,ओर हर तरह के गीतो के बारे गीत कारो के बारे , यानि सब कुछ,
धन्यवाद
बहुत ही खूबसूरत और जानकारी भरा लेख है .
आप ने पंडित जी के बारे में जो जानकारी दी और जो दोनों नायाब गीत सुनवाए उनके लिए भी धन्यवाद.
हिन्दी में शुद्ध ,गीतों को लिखने वाले पंडित जी को हमारा शत शत नमन.
दिलीप जी,
इस प्रस्तुति के लिए बहुत आभार. "नैन दीवाने.." और "मनमोर हुआ..." से चलकर "ज्योति कलश छलके..." और "लौ लगाती..." से होते हुए "सत्यम शिवम् सुन्दरम..." तक का सफर बहुत ही संगीतमय रहा.
पंडितजी के बारे में अब तक जितना जाना है उससे मेरे ह्रदय में उनके प्रति असीम श्रद्धा आयी है.
धन्यवाद!
बहुत खूब दिलीप भाई...
अल्फाज़ का ही कमाल होता है...
एक गीत और जोड़ लीजिए...
मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी खुशी ले के आया चांद ईद का
....
एक महान गीतकार और एक महान सह्रदय व्यक्ति के बारे में इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी पाकर बहुत अच्छा लगा। आपकी लेखनी सदा चलती रहे, आपकी आवाज ऐसी ही मिठास घोलती रहे, मेरी यह मंगलकामना है।
वह था विवीध भारती.
१९५७ मे ही शुरु हुआ था ये सस्था.
प.शर्मा जैसी सख्सियतों को आप अपने ब्लोग पर जोड कर हमे तीरेथ का स्नान करवा रहे हे दीलीपजी.
ये पूण्य आपको फ़लेगा.आप जैसे क्रीएटीव और सुरिले लोगो की वजह से ही निसर्ग बचा हूआ हे.अभी इन्दोर मे पुना की विभावरी जोशी का पोग्राम हुआ था.मालूम नही आप थे की नही.ये जो दो गीत आपने लताजि के सुनाए उसमें शामिल होने थे.यदी आपकी आयोजको से पेचाण हो तो उस पोगाम के व्हीडियो को जमाने के सामने लाए.लता को केसे गाना ये विभावरी ने बताया था.बाकी तो उस पोगाम बस वीभावरी ही वीभावरी थी.जो मेल वाइस थी उस शो में उसकी जगह आपहोते तो मजा आ जाता वो बडा कमजोर गायक था.उस कार्यक्रम में कमेन्टरी की जरूरत भी नहीं थी.बस वीभावरी ही गाती रहती तो सुनने वालो पर बड़ा एहसान होता.आपकी लेखनी और वीभावरी की आवाझ का इन्तझार रहेगा.
r.krandikar
करंदीकर जी, मैं भी वहां था.मैं पिछले कार्यक्रम में भी था.विभावरी जितने सहजता से लता जी को गाती है, लगता है, इतना टेलेंट काश मुझमें होता.
उनपर एक ब्लोग ज़रूर लिखूंगा.
Dilipbhai
One more feather in your cap.
Great article about a great poet and a great human.
Our Lavanya Didi's comment is awaited.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
यात्रा पर थी इसलिये आज ही टीप्पणी कर रही हूँ
..आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने अपने भाव यहाँ रखे और मेरे पापा जी को याद किया -
दिलीप भाई,
आपने सुरीले गीतोँ की फूलोँ की माला गूँथ कर पापा जी के गीतोँ की याद फिर ताजा कर दी है..
विभावरी जोषी जी को भी सुनवाइयेगा ...
आपका ये प्रयास एक तरह से हिन्दी ब्लोग के समस्त परिवार के सँग यादोँ के सहारे, जुडना ही तो है !
सभी को मेरी शुभकामनाएँ
बहुत स्नेह सहित आपका आभार ...
- लावण्या
& such a True Tribute by these words - "No expiry date" too ..
Thank you once again ...
with warm regards,
- Lavanya
We all (the readers of your blog)must feel obliged whenever we get time to visit dil se ...reason being your blog is the place where we get most updated informations about the artists and musicians.like the news about ill health of great mehandi hassan , this i saw only at your blog.you are offering the great services to we music lovers.should we call you the cultural ambessedor of cultural fraternity....
will other visitors will support my comment.
srk
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