Wednesday, November 10, 2010

हम जब होंगे साठ साल के., और तुम पचपन की.... कहां है दोनो?




सबसे पहले आप सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें,

आज सुबह एक मित्र के बडे भाई का फोन आया, कि क्यों तुम्हारी दैनिक भास्कर में पहचान है?

मैंने पूछा काहे के लिये...

तो गुस्से में बोले कि अख़बार में लिखा है, ६० साल के वृद्ध का एक्सिडेन्ट...क्या साठ साल में कोई वृद्ध हो जाता है भला?

वैसे , बात उन्होने ठीक ही कही है. वे कहीं से भी साठ के नही लगते. अपने परिचितों को भी याद किया जो साठ के आसपास होंगे, तो वृद्ध जैसी कोई छबि नही बनती? खैर अखबार के ये क्या जानेंगे , मगर मैं भी ये सोच कर सिहर उठा कि आज से कुछ सालों बाद मुझे भी लोग वृद्ध कहेंगे ?

पत्नी नें कहा कि आजकल स्वास्थ्य की अवेयरनेस काफ़ी बढ गयी है, और ज़्यादहतर लोग फ़िट ही हैं आजकल...

संय़ोग से अभी रात को फ़िल्म कल, आज और कल देख रहा था, तो सामने अचानक ये गाना आ गया..

हम जब होंगे साठ साल के, और तुम होंगी पचपन की,
बोलो प्रीत निभाओगी ना, तब भी अपने बचपन की......

गाने में भी यही कुछ था... बुढापे में साठ साल में लकडी के सहारे चलना, आवाज़ का कंपकपाना, आंख का धूंधला हो जाना..,. आदि.

फ़िर ये भी सोचा कि एक तसवीर ये भी है, कि चालीस पचास में ही मधुमेह, रक्त चाप, हृदयरोग , आदि से हमारी पीढी रू ब रू हो रही है, और संख्या में इज़ाफ़ा होरहा है,जब कि पुराने चावल देसी घी की बघार में फ़ूले जा रहे हैं.

खैर, अब बात यह भी है, कि आज से तीस चालीस साल पहले गाये गये इस गाने की जोडी नें रील लाईफ़ के बाहर रीयल लाईफ़ में भी शादी कर ली थी, और आज रणधीर कपूर और बबिता कपूर लगभग साठ और पचपन के ही होंगे.


तो आज क्या सीन है बॊस?



पता नही कौन कहां है,मगर इतना ज़रूर है, की करीश्मा और करीना के माता पिता की यह जोडी अब साथ साथ नही है!!

है ना अजब प्रेम की गजब कहानी......




4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कल की उसी पर छोड़ दो,
बस आज जीने दो,

Alpana Verma said...

गाने में भी यही कुछ था..बुढापे में साठ साल में लकडी के सहारे चलना, आवाज़ का कंपकपाना, आंख का धूंधला हो जाना..,. आदि.
हाँ सही कहा ऐसा ही दिखाते थे पहले कोई बूढ़ा दिखाना होता था तो.
आज कल तो सीरियल में भी 'पोते/ पर पोते 'वाले पात्र ऐसे बूढ़े नहीं दिखाए जाते..
बदलते वक्त के साथ बदलता है समाज का चेहरा..!
एक विज्ञापन दिखा था शायद चवनप्राश का था ऐसे ही सवाल करता है वह विज्ञापन 'साठ साल के बूढ़े या साठ साल के जवान '...
-रही बात आने वाले कल की सोचना तो ....आज में जीना ही आज के समय की मांग है..

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई इस विषय पर मेरी पोस्‍ट जरूर पढें। हम तो स्‍वीट सिक्‍सटीज कहते हैं। हा हा हा हा

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर गीत की याद दिलायी आपने, भागती उम्र के बहाने से। समय बडा बलवान!

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