Monday, September 15, 2008

मुकेश और आतंकवाद !!!


मुकेश और आतंकवाद !!!

आप चौंक गये होंगे, एक अनहोनी सी बात, दूर दूर तक का कोई नाता नहीं.

मगर अभी मैं जिस हादसे से गुज़रा और उससे निकल पाया, वह भी एक बताने वाला वाकया.अपनी संगीत बिरादरी के साथ बांटने जैसी.

आप से कहा था कि आशा भोंसले के उपर कुछ लिखूंगा तो नही लिख पाया. आप भी कहते होंगे, गज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया...मेरे व्यवसाय की वजह से मुझे यकायक कूच करना पडता है.इन्जिनीयरिंग के जो प्रोजेक्ट चल रहे है, उनका तकाज़ा है.

अभी किसी काम के सिलसिले में मुझे एक बेहद अल्प प्रवास पर दोहा और अबु धाबी जाना पडा. दोहा (कतर) के एयरपोर्ट के काम की वजह से, लौटते समय अबु धाबी में विमान बदलनें के लिये उतरना पडा, तो कस्टम चेकिंग की औपचारिकता चल रही थी.

हमारा जब चेकिंग चल रहा था , तो एक अरब अफ़सर मेरे पास आकर मुझे जबरन अंदर ले जाने लगा. मैनें पूछा यह क्यों? तो पता चला कि कुछ आतंकवादीयों की तलाश हो रही थी, और शायद मेरे नाक नक्श और डील डौल की वजह से मुझे भी हिरासत में ले लिया गया.

अंदर कुछ 7-8 व्यक्ति और थे हिरासत में, और सघन पूछ्ताछ चलने लगी. सबके सामान को खोल कर जांचा जाने लगा.

मेरे पास तो क्या था, कुछ ज़रूरी व्यक्तिगत सामान, और हमेशा की तरह मेरा लॆपटॊप एवम कुछ सी डी , अपने प्रोजेक्ट की और कुछ गानों की- मुकेश और मन्ना दा.

जब कुछ नही मिला तो उन्होने अपना मोर्चा सी डी की तरफ़ खोला. कहा की बता दो, अभी भी मौका है , या तो कोई एटोमिक विषय पर कुछ गलत जानकारी हो या फ़िर पोर्नोग्राफ़ी की फ़िल्में. मैने बेझिझक कहा, कुछ नही है, ये तो गानों की सीडीयां है, मुकेश और मन्ना डे पर. संयोग से , मुकेश की एक किताब भी निकल आयी, जो मै अभी पढ रहा था. वह बोला,ये तो सभी कहते है, बाहर कुछ लिखा होता है, अंदर कुछ.

यह सब देख कर उसने अपने वरिष्ठ अफ़सर को बुलाकर यह सब दिखाया.उसके nameplate पर ओमर अब्दुल्ला नाम पढ पाया मैं . उसने बडे रूखे अंदाज़ में पूछा- What Mukesh ?

मैने समझाया- कुछ मुकेश के बारे में तारीफ़ के पुल बांधे, और किताब दिखाई. उसने सीडी चेक करने का आदेश दिया.

मेरा blood pressure बढने लगा, अगले विमान से निकलना जो था . उनसे बिनती की, मगर वे टस से मस नही हुए.

संयोग से सबसे पहले उनके हाथ में लगी कुछ साल पहले रिकॊर्ड की गई मुकेश के गीत पर मेरे आवाज़ के गानों की सीडी, और पहला गीत था - सारंगा तेरी याद में.

वह सिनीयर अफ़सर बैठ गया, बडे गौर से सुनने लगा.मैने कहा- अगली सीडी लगाऊं? उसने कहा- No, continue this.

मैं गरीब ,आशा की कुछ किरण के इंतेज़ार में रुक गया. आज संगीत की सेवा का फ़ल शायद मिल जाये यह दुआ करने लगा.

फ़िर आया गीत- ये मेरा दीवानापन है..

वह भी सुना पूरा. अब मैं आश्वस्त सा हो चला था कि मुकेश या इन मेलोडी भरे गीतों पर मेरा मर मिटना मेरा दीवानापन नही है शायद. इधर समय बीत रहा था. किसी ने कहा - आंखों की पुतली का टेस्ट भी लेना बाकी है अभी. पर ओमर अब्दुल्ला था जो बेगानी शादी मे दिवाना हुए जा रहा था.

अगले गीत - सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं को सुनने के बाद वह चौंक कर उठा,समय ज़्यादा हो गया था शायद और ज्युनियर के कान में कुछ फ़ुसफ़ुसा कर निकल गया. कुछ शब्द मेरे कानों में पडे - मुकेश .. बंदा..

मैं अगले दिव्य की प्रतिक्षा में अपने आप को मज़बूत करने लगा.मगर उस ज्युनियर अफ़सर नें बडे शालीनता से कहा- You may go now!!

मैं चौंक पडा, भगवान को बार बार शुक्रिया कहा और उस अफ़सर को भी , उस फ़रिश्ते ओमर अब्दुल्ला को भी. पूछ ही बैठा - यह क्या चमत्कार है?

तो वह बोला- He said यह मुकेश का बंदा है, यह मुज़रिम(दहशतगर्द) नही हो सकता !!!इसे छोड दो....

मैं चकित था, मेरी आंखों में अश्रु उतर आये थे, कितनी बडी बात कह गया वह बंदा, और कितने बडे उपकार किये मुकेशजी नें मुझ पर!! पलकें झपका कर मै आंसू सुखाने के असफ़ल प्रयास में लग गया.

मेरी वह सभी सीडीयां प्यार से ’जप्त’ कर लीं गयीं, और मुझे छोड दिया गया. खुदा का शुक्र था कि मेरे पास लॆपटॊप में थे वे गाने.

बाद में पता चला कि जनाब ओमर अब्दुल्ला साहबनें हैदराबाद से एल.एल.बी किया था और मुकेश के दिवानों में वे भी शुमार थे!!!

आगे कुछ भी लिखने की , कहने की गुंजाईश ही नही है. मेरे मन को आपने पढ ही लिया होगा. आप के मन में उठती बातें आप लिख सकें तो मुझ पर करम और मुकेश जी पर आपके प्रेम की बानगी..

सारंगा तेरी याद में.. मुकेश ( मूल गीत नहीं )



कहने कि ज़रूरत नहीं की विमान में बैठ कर मैं यह गाने लगा..

सुहाना सफ़र ये मौसम हसीं...


6 comments:

सागर नाहर said...

क्या बात है? मजेदार और रोचक वर्णन...
आपको जो तकलीफ हुई होगी उसका तो अंदाजा पोस्ट से लग ही गया है पर फिर भी हमें रोचक वर्णन लग रहा है। :)

वैसे आपको उन्हें सबसे पहले संगीत सम्राट तानसेन का मल्हार राग वाला गीत सुनवा देना था, वहीं ठंडे हो जाते ओमर अब्दुल्ला
:)

Anonymous said...

मुकेश अमर रहेंगे । संगीत आतंकवाद विरोधी है । गजब तजुर्बा साझा किया । आभार, भाई मेरे ।

Harshad Jangla said...

दिलीपभाई
कमाल का वर्णन किया है आपने | आप उन सिडियो को वापस लेनेके लिए कुछ करेंगे ना?
यह वर्णन आप नितिन भाई को भेजनेकी व्यवस्था करेंगे तो उनको जो हर्ष होगा वह बेमिसाल होगा |
कृपया प्रयत्न कीजियेगा |
धन्यवाद |

-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

Sajeev said...

दिलीप भाई आपका अनुभव वाकई अदभुत रहा आपका दीवानापन दुनिया का दीवानापन है, आप अकेले ही नही हैं इस कश्ती में सवार, ये संगीत कुछ ऐसा है की दुनिया पर इसका जादू है. आपकी आवाज़ भी सुनी आज बेहद अच्छी है, पर थोड़ा और खुल कर गाया करें, कृपया इसे एक मित्र के सुझाव की तरह लें

दिलीप कवठेकर said...

संजीव भाई,

आपका सुझाव सर आंखों पर.आप इस क्षेत्र में काफ़ी अनुभव रखते है.

दरसल , गानों की दो विधाओं में से, रेकॊर्डिन्ग का मेरा पहला अनुभव था. अभी भी उस पर महारत हासिल नही कर पाया. ज़्यादहतर , शौकिया ही गाया है, और स्टेज पर. वहां , खुलकर गाने का मौका थोडा ज़्यादा मिलता है.

जीवन हमेशा सीखने का नाम है. अवश्य ही इस कमी को पूरी करने का यत्न करूंगा, जब भी समय या मौका मिलेगा.

हर्शद भाई,

नितिन भाई को बताने की कोशिश करूंगा. वे अभी अभी ही अमेरिका से लौटे है.

सागर भाई, और अफ़लातून जी, आपके टिप्पणी के लिये धन्यवाद.आप सब लोगों का संमिलित प्रयास है यह की आज उनके जाने के बाद भी हम उनका अलख जगाये रख रहे है.

Smart Indian said...

अविस्मरनीय संस्मरण! मुकश का "प्रमाणिक" बन्दा होने की बधाई!

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