Monday, January 12, 2009

पं. कुमार गंधर्व- एक सुर गंधर्व, शास्त्रीय संगीत के हिमालय


सुर गंधर्व- पं. कुमार गंधर्व,

कुमार गंधर्व भारतीय शास्त्रीय संगीत के सुरपटल पर एक शीर्ष चमकता शुक्र तारा.

अभी आज ही उनकी पुण्य तिथी थी.( १२ जनवरी १९९२)

सभी जानते ही हैं , कि मेरे शहर को ये फ़क्र हासिल है कि भारत रत्न लता मंगेशकर की ये जन्मस्थली है, और उस्ताद आमिर खां,उस्ताद रजब अली खां ,चित्रकार एफ़ एम हुस्सैन और बेंद्रे , मूर्तिकार फ़डके आदि महान हस्तीयों कि कर्म भूमी भी रही है. वैसे ही कुमार गंधर्व जी का उत्तुंग व्यक्तित्व भी इसी मालव अंचल में अपने परवान चढा,जो अपने आपमें एक स्कूल है.(वे मेरे शहर इंदौर से ३५ किमी पर बसे एक कस्बानुमा शहर देवास के निवासी थे).


मैं स्वयं को इतना का़बिल नहीं समझता कि कुमार जैसी संगीत की बड़ी हस्ती के बारे में या उनके प्रयोगात्मक संगीतयात्रा के बारे में कुछ भी कह सकूं. यूं तो बचपन से ही उनके गायकी से रुबरू होनें का मौका मिलता रहा था, संगीतसभाओं में और व्यक्तिगत रूप से भी.

मगर कभी भी उनके करीब जाकर उनसे सिर ऊठा कर बात करने या कुछ भी पूछने का साहस कभी नही उठा पाया, क्योंकि उनके लोकगीतों के प्रयोगों और गले की जादुगरी को समझने की कूवत आज तक नहीं आ पायी है मुझमें.भविष्य में
कभी इस काबिल हुआ तो ज़रूर हाज़िरे खिदमत हूंगा.

मैं तो बस उनके साथ के बिताये कुछ मधुर क्षणों की यादें जो अभी तक बाबस्ता है मन के किसी साफ़ सुथरे कोनें में ,जो आपके साथ शेयर करनें की गुस्ताखि़ कर रहा हूं.

सबसे पहले जब मैं उन्हे मिला तो मुझ बावले को पता ही नहीं था कि वे कितनी महान हस्ती थी. मेरी सुर बहन कल्पना के स्वयंसिद्ध गायक संगीतकार श्री मामा साहब मुजुमदार के यहां मैं उनसे मिला. पुराने करीबी मित्र होने के कारण कुमार जी भी अक्सर वहां आते रहते थे, और वे दोनों रागों और बंदिशों पर घण्टों चर्चा में डूबे रहते थे.मेरे पिताजी से भी उनके काफ़ी घनिष्ट मित्र संबंध थे, और मामा साहब ने, मेरे बारे में भी सहज कह दिया कि मैं भी गाता हूं.

कुमार जी तपाक से पूछ बैठे - कौन कौन राग पूरे कर लिये हैं.उन्हे लगा कि मैं मामा साह्ब का गण्डा बंध शिष्य हूं.मैं बडे़ ही खिन्न मुद्रा में बोल उठा कि मैं शास्त्रीय संगीत नहीं गाता,मगर फ़िल्मी गाने गाता हूं.तो उस स्वर महर्षी नें मेरे पीठ पर हाथ रख कर कहा, कि वे मेरे पिताजी से बात करेंगे कि मुझे भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा सिखायें.

बाद में कई सालों बाद उनके निधन से कुछ दो तीन साल पहले हम फिर आमने सामने हो गये.देर रात किसी शादी के रिसेप्शन से लौटते हुए मैं पार्किंग से अपनी कार निकाल कर निकल ही रहा था तो कुमारजी भी उसी शादी के समारोह से निकल कर सड़क पर कुछ खोजते हुए मिले.

वास्तव में वे किसी मित्र या पहचान वाले की कार में देवास से आये थे, और लौटते हुए उन्हे याद ही नही रहा कि वह कौन सी कार थी, जिससे उन्हे ड्राईव्हर छोड़ गया था.

खैर बडी़ परेशानी और खोज बीन के बाद भी वह कार नहीं मिली तो मैनें सकुचाते हुए उनसे मेरे कार में चलने की विनती की, क्योंकि ये अलभ्य लाभ मेरे भाग्य में देवों द्वारा ही तो प्रदान किया गया था. वे भी प्राथमिक संकोच के बाद मान गये, और फ़िर क्या था,मै उन्हे लेकर देवास निकल पडा.

जैसे ही वे जब मेरी मारुती में बैठे, मुझे तो होश नहीं था कि मेरे गाडी़ में टेप रिकॊर्डर में लता जी फ़िल्मी गानों की केसेट लगी थी. बम्बई आगरा रोड पर आते ही मुझे होश आया और मैने माफ़ी मांगते हुए टेप बंद करने का जतन करने लगा.लेकिन तुरंत ही कुमारजी नें मुझे रोक दिया और कहा- कोई बात नही, लता गा रही है.कितना अच्छा गा रही है, तो सुनते है, अतः चलने दो.

फ़िर क्या था, मैं तो गद गद हो गया.लगा टू लेन की जगह सड़क एट लेन हो गयी है. मारुती की जगह मैं किसी एयर कंडिशंड रोल्सराईस में बठा हुआ हूं. शबे मालवा की रात में, चौदहवी के चांद के किरणों की फ़ैली हुई आभा की दूधिया रोशनी में चुप से खोये से कुमार गंधर्व जी, और लता जैसी स्वर किन्नरी की आवाज़ में वह गीत- नैना बरसे रिमझिम - मदन मोहन की जादुई बन्दिश के संमोहन में गूंथा हुआ... और मेरी आंखों के कोने में उमड पड़ रहीं बूंदों का सैलाब, जिसे खुली खिड़की से आते हुए सर्र सर्र हवा से सुखानें का जतन कर रहा मैं... ..

स्वर्ग यहीं है, यहीं है, यहीं है....

सुहाने सपनों के पार, धडकते दिल की इल्तेजा लिये हुए ये बेशकिमती क्षण मेरे यादों की खिडकी पर अब भी दस्तक दें रहे है.उनके निवास स्थान भानुकुल पर छोडते हुए उन्होनें कहा कि संगीत फ़िल्मी हो या लोक धुन हो या कबीर वाणी, या आर्ट का कोई भी फ़ॊर्म हो, जो उस भगवान से मिला दे, वही ग्राह्य है. लता का गाना सुनते हैं तो यूं लगता है, जैसे गंगोत्री पर बैठ कर गंगा आचमन कर रहे हों.

श्रेष्ठ व्यक्ति का श्रेष्ठत्व इसी सरलता में प्रतिध्वनित होता है.

साथ ही में एक और जुडी़ हुई याद फिर शेयर करूंगा.

बरसों बाद अभी अभी तीन चार साल पहले की बात.स्व. मामा साह्ब मुजुमदार की वार्षिक पुण्य तिथी पर बहन कल्पना हर साल के तरह शास्त्रीय संगीत का ये आयोजन किया था, जिसमें देश के एक बडे़ कलाकार को प्रस्तुति के लिये बुलाया गया था ( नाम नहीं बता पाऊंगा). कार्यक्रम के बाद मेरे मित्र और कल्पना के पति श्री उमेश नें आग्रह किया कि उन्हे होटल छोड आऊं क्योंकि उन्हे व्यवस्था समेटनी थी.समय वही आधी रात.

तो मैं , वे प्रसिद्ध कलाकार, जब गाडी में बैठे तो उनके साथ उनका स्थानीय तबलची और एक नवयुवक भी बैठा, जिसे समारोह में लोग बहुत आदर दे रहे थे. पता चला कि वह कुमार जी का पौत्र है. सहज ही मैंने भी उसे आदर पूर्वक कार में बिठाया, जो उनके साथ ही होटल जाना चाह रहा था.

फ़िर वही बात हुई. संयोग से लताजी की केसेट लगी हुई थी.

मगर पता है क्या हुआ? कुमार जी के उस पौत्र नें बडी ही अशालीनता से मुझे लगभग ऒर्डर ही दे दिया- भाई ये क्या लगा रखा है. बंद करो ये बकवास. मैं चौंक कर कुछ सोच पाता ,साथ बैठे उस बडे कलाकार नें जो अच्छे कार्यक्रम के बाद तारी हुए आलम की मस्ती में ही था ( किसी और मस्ती में नही)- उसका समर्थन करते हुए बडी बे अदबी से मुझे कहा, ये क्या फ़िल्मी संगीत लगा रखा है. बंद करो.

मैं आपको बता दूं, मैं जब एक सिपाही की भूमिका में रहता हूं तो एक अनुशासन के दायरे में लेफ़्ट राईट करता हुआ हुक्म बजा लाता हूं. मगर जब कोई मेरे देश पर ,मेरे आराध्यदेवता पर यूं मानसिक हमला करे तो मेरा सिपाही विद्रोह कर देता है.

मैंनें अचानक ब्रेक लगा कर गाडी रोकी, और उन दोनों संगीत भक्तों (?) से शालीनता के फ़ेंसिंग पर बैठ कर कहा- मैं कोई ड्राईव्हर नहीं हूं. लता मंगेशकर के गानें तो बजेंगे ही.आप हमारे मेहमान है.आपको नहीं सुनना है तो मैं आपको किसी और गाडी़ में बिठा देता हूं.

अब उन दोनों की जो अवस्था हुई उसे हमारे मालवा में कहते हैं- तबियत हरी हो गई!!!

खैर छोड़ तो मैं आया ही, मगर मुझे वो यादों के बक्से में रखी हुई रात के बात याद आयी, बडे वटवृक्ष की भांति ’पर्सोना’रखने वाले कुमारजी का लता जी के प्रति निर्मल और अंहकार रहित आदर याद आया, और फिर याद आया ऐसे कलाकारों का बर्ताव, जो बांस की तरह ऊंचे या लंबे तो भले ही हो गये हों , मगर छांव देने की पात्रता नहीं अर्जित कर पाये.



ठीक कहा है किसी ने..

कोहनी तक उगे हुए लोग, बरगद की ऊंचाई नापने चले हैं.

चलो अब ये गीत सुन लेते हैं.रफ़ी जी पर चल रहे शृंखला को इसी हफ़्ते फ़िर अपने एट लेन वाली सडक पर, सुरों की रोल्स राईस में... वादा...

नैना बरसे रिम झिम रिम झिम..

12 comments:

Alpana Verma said...

Dilip ji ,

Pandit kumar gandharv ji ke baare min itni jaankari aap ne di --aap ka abhaar aur ek behda sundar aur mera priy geet --madan mohan ji ka sangeetbaddh hai--aap ne dikhaya-us ke liye dhnywaad.

indore shahar ki wadiyon mein hi sangeet hai--aisa lagta hai--

aap ko agar ruupmati ki kahani ki kitaab padhni ho to yah link hai--
yahan complete book padh sakteyhain--http://www.archive.org/stream/ladyofthelotus035493mbp
-Teri aankhon ke siwa-geet july mein record kiya tha--us samay koi 10 classes south indian vocals ki li thin jin sey farq aaya ho..riyaz jaruri hai jo ho nahin pata--
thanks for encouraging me--Alpana

दिलीप कवठेकर said...
This comment has been removed by the author.
दिलीप कवठेकर said...

एक बात और है, जो कल लिखना रह गयी थी. ये वह बात है, जो मेरे भावुक स्मृति में स्वर्णाक्षरों में अंकित है.

प्रस्तुत गीत - नैना बरसे गीत मेरे स्वर्गवासी आई ( मां) को बेहद पसंद था. चूंकि , वे स्वयं तो नहीं गाती थी, वे अक्सर मेरे पिताजी से ये गीत गवाया करती थी, इसीलिये , ये गीत सुन सुन कर ही मैं बडा़ हुआ.

बाद में उनके अंतिम दिनों में मैने भी ये गीत उन्हे अक्सर सुनाया था, जो अब स्मृतियों में ही शेष बचा है.

राज भाटिय़ा said...

दिलीप जी बहुत सुंदर लगी आप की यह चर्चा, हमे तो इतना ग्याण नही संगीत का बस सुन लेते है यही शायद काफ़ी है हम जेसे साधारण लोगो के लिये, मेरा साया फ़िल का गीत नायना बरसे... बहुत सुंदर लगा, मेरे पास पुराने गीतो का बहुत बडा खजाना है, जिन मे लता जी के भी काफ़ी हिट गीत है.
धन्यवाद

Anonymous said...

हाय जान ले ली यार तुमने इस पोश्ट में.क्या शानदार लताड़ा तुमने उस अति-विस्वासी को.वाह मजे आ गए.

यार दीलीप भाई (इतनी अनोपचारिक स्बोधन के लिये माफ़ करे)तुम तो छुपे रूस्तम हो,फ़िल्म,शास्त्रीय और गीत गजल पर क्या लाजवाब पकड हे तुम्हारी भाई.क्या खेल कर रहे हो. कल्पना (मामा साहब की बेटी यानी झोकरकर न )को भी कभी लाओ न तुम्हारे ब्लाग पर .तुम्हारी बहन लगती ये जान कर तो अपार सूख हुआ . जिस तरह से वे गा रही हे दिल चाहता हे जल्दी से आप उन्हें दिल से पर सुनवाओ.आज मकर सक्रात है ..सोचरहा था कि आज आपकी गुड जेसी मिठी आवाज में दिलिप के सुर से ब्लाग शुरु हो जात तो मजे आ जाते.ये काम भी कर ही डालो.तुम्हारे अनुशासन के बारे मे तुमने जो बात कही तो लगा कि शायद दुनिया में थोडी बहुत सीस्टिम जो बची हुई है वह तूम्हारे कारन ही तो नहीं.जिन साहब को तुमने मुह तोड जवाब दीया उसके लिये ये शेर याद आगया
बडे बेआबरऊ होकर तेरे कुछे से हम नीकले(खेर तुम्हे तो क्या बताना तुम तो language के ब्ड़े धुरधर हो. मेरी जानकारि में गाने,लीखने का तुम्हारे जेस rare combination आज music scene पर नज्र नही आ रहा...compliments for such a surilee post by dil se.
sunil karandikar

Dev said...

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

"अर्श" said...

दिलीप जी आप मेरे ब्लॉग पे बहोत अच्छा लगा आपका मेरे ब्लॉग पे बहोत स्वागत है ,जी हाँ साहब मैं संगीत से तो ताल्लुकात तो रखता हूँ और ये छोटी बहार वाली ग़ज़ल में काफी संभावनाएं है मगर मैं अभी गा नही सकता कारण के रिकार्डिंग की पुरी सामर्थ्यता नही है मेरे पास ...

एक बार फ़िर से आपको ढेरो बधाई और स्वागत है मेरे ब्लॉग पे ... आपका स्नेह परस्पर बना रहे यही उम्मीद करता हूँ...
आपका
अर्श

Anonymous said...

well said sir,
you have been a great musicologist(any formal degree also ?)wilth amazing writing skill.delighted and honoured to be at the dil se.
read earlier blogs.you must keep the promise of starting blog of your own voice,as demanded in many comments.

satya verma

Vinay said...

गंधर्व जी से रूबरू कराने का शुक्रिया

---
भारत का गौरव तिंरगा आपके ब्लॉग पर ज़रूर लगायें, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति दिलीप जी.... वाह..

Smart Indian said...

पंडित कुमार गन्धर्व की तो बात ही दैवी है. उनके साथ आपका अनुभव सुनकर तो पुराना बोध वचन "विद्या विनयम ददाति" याद आया. हाँ दूसरे कलाकार की बात पर एक प्रसिद्द ग़ज़ल/भजन गायक और हमारे एक परिचित के बीच लगभग समान स्थिति में हुआ वार्तालाप याद आ गया. कभी अपने ब्लॉग पर शेयर करूंगा.

Atul Sharma said...

आपकी तथ्‍यपरक और रोचक रचनाओं के लिए धन्‍यवाद। बहुत ही कम जगहों पर कुमार गंधर्व जैसे महान गायकों के बारे में पढने के लिए मिलता है ।

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