Sunday, January 18, 2009

मेरी कहानी भूलने वाले, तेरा जहां आबाद रहे.., नौशाद और रफ़ी - अद्वितीय जुगलबंदी


कड़ी नं. २
नौशाद और रफ़ी

नौशाद और रफ़ी जी के अद्वितीय जुगलबंदी का जलवा जो मेला फ़िल्म के गीत से दुनिया के नोटीस में आया वह दुलारी फ़िल्म के गाने - सुहानी रात ढ़ल गई , ना जाने तुम कब आओगे? के बाद और परवान चढा़ और मोहम्मद रफ़ी का नाम हर फ़िल्मी गीत सुनने वाले की ज़ुबान पर चढ़ गया.

मैंने पिछली कडी़ में लिखा था कि जब सहगल के साथ रफ़ी जी नें गाया तो हर गायक की तरह रफ़ी जी पर भी उनकी गायन शैली का प्रभाव पडा़. या यूं कहें, उस समय का गाने का तौर तरीका या स्टाईल ही सहगल की शैली पर आधारित था.मगर रफ़ी साहब के गले का मूल Timbre या स्वर स्वरूप मीठास लिये साफ़ सुथरा था.उन्हे सहगल के धीर गंभीर खरज की आवाज़ जैसा बनाने के लिये बडा़ प्रयत्न करना पडता था. ये नौशाद ही थे जिनने रफ़ी की रेंज और तार सप्तक में(याने ऊपर के ऒक्टेव में)पूरी एनर्जी लेवल से गा पाने की क्षमता का आकलन किया और उसका उपयोग एक अलग शैली विकसित कर हम जैसे संगीत प्रेमीयों पर अहसान किया. बाद में इसी तरह लता जी नें भी नूरजहां या सुरैया की शैली से बाहर निकल कर स्वयं की साफ़ और मीठास भरी गायक शैली की पहचान बनाई. मैं यहां ये नहीं कहना चाहूंगा कि सहगल या नूरजहां की शैली में कोई खराबी या गलती नहीं थी, मगर फ़िल्मों की पेस या चाल की तरह गानों में भी लय, स्पीड बढी़, और उस नये वातावरण में रफ़ी की आवाज़ नें उस गॆप को बखूबी भरा.


इस बात पर नौशाद जी नें ये संस्मरण बताया था , कि रफ़ी जी भी खरज या लोवर ऒक्टेव में ही गीत गाते थे तो फ़िल्म दीदार के गानों की रिकोडिन्ग के दिनों में नौशाद नें रफ़ी से जब ये कहा की तुम्हारा आवाज़ खरज में यूं म्लान लगता है, जैसे की गला दबा रखा है. ज़रा खुल के गाओ, और गांभीर्य का पुट जरा हलका करो, ताकि जवां और अपरिपक्व नायक के नये चरित्र का प्रोजेक्शन हो सके.

रफ़ीजी को बात जंच गई.मगर उन्होनें नौशाद साहब से ही कहा कि आप ही कोई ऐसी धुन बनायें तो मैं उसे गाने की कोशिश कर सकूंगा.

तो उस कालजयी गाने की धुन नें जन्म लिया -

मेरी कहानी भूलने वाले, तेरा जहां आबाद रहे..

जब ये धुन नौशाद नें रफ़ी को सुनाई, तो पहली बार तो वे सुन कर एकदम अवाक ही रह गये, क्योंकि उससे पहले दिल्लगी, अनमोल घडी़ , मेला आदि फ़िल्मों की धुनों से ये तर्ज़ एकदम अफ़लातून ही थी.फ़िर भी रफ़ी ने ये चेलेंज सर आंखों पर लेकर रात दिन मेहनत की. कई बार नौशाद जी को फ़िर पूछा कि यहां समझ नही आ रहा है, कृपया फ़िर से बतायें. उस नई शैली के गीत को इस तरह कई बार मांजा गया, क्योंकि उस समय नौशाद नें वहां वहां थोडा़ मुरकी में या स्वरों के उतार चढाव में बदलाव किया जिससे रफ़ी जी के गले की तरलता की , लचीलेपन के अनोखे गुण से गीत के माधुर्य में मेलोडी़ में अद्भुत रसोत्पादन हो सके.साथ साथ वे रफ़ी जी के आत्मविश्वास को भी बढा़वा देते रहे.

आखिर एक दिन आया और रफ़ी जी नें कहा मैं तैयार हूं और आनन फ़ानन में दो तीन ट्रायल में ही गाना रेकोर्ड़ कर डाला!!
संयोग से इस फ़िल्म के नायक युसुफ़ दिलीप कुमार , निर्देशक नितिन बोस भी इस ध्वनिमुद्रण के समय एच एम वी के फ़्लोरा फ़ाउंटन के स्टुडियो में हाज़िर थे. जब रफ़ी रिकोर्डिंग खत्म कर रूम से बाहर आये तो दोनों नें रफ़ी जी को कस के गले लगा लिया, और कहने लगे कि ये गाना हिट होने से कोई भी नहीं रोक सकेगा.

उन दिनों गाना फ़िल्म के लिये ध्वनि मुद्रित तो होता ही था जो फ़िल्म के ओरिजिनल साउंड़ ट्रेक के हिसाब से बनाया जाता था, जिसमें तीन स्टॆन्झा होते थे .मगर साथ में 78 rpm की डिस्क जिसे हम रिकोर्ड कहते थे,के लिये भी अलग ट्रॆक रिकोर्ड होता था, क्योंकि सीमित जगह की वजह से अमूमन दो ही स्टॆंन्झा उसमें आ पाते थे. इसीलिये आप को मालूम ही होगा कि रेडियो पर या अधिक जगह पर वही संस्करण बाज़ार में सुना जाता था. बाद में जब लॊंन्ग प्लेयिंग रिकोर्ड का उद्भव हुआ तो वहां हम लोगों के लिये ओरिजिनल साउंड़ ट्रेक उपलब्ध होनें लगा.

तो उस समय उर्जावान गानें की आपाधापी में रिकोर्डिस्ट जी एन जोशी बोले, कि अभी समय है, अगर रफ़ी जी थक नहीं गये हों तो दूसरा वर्शन भी आज ही कर लें? रफ़ी जी नें तपाक से हां भर ली, और दूसरा वर्शन भी आनन फ़ानन में मुद्रित हो गया. तो जोशी जी जिन्होने इससे पहले कई गायकों को रिकोर्ड किया था ,नौशाद साहब से बोले- नौशादसहाब, ये नौजवान गायक तो निराला ही है, कोहिनूर से भी ज़्यादा चमक पैदा करेगा, इंडस्ट्री में खूब कामयाबी हासिल करेगा. नौशाद बोले- इंशाल्लाह !!!

चलो , सुनते है- मेरी कहानी ..



आपने सुना और देखा- स्थाई में रफ़ी जी खरज में पंचम तक और अंतरे में तार सप्तक में भी पंचम तक चले जाते है !! क्या बात है, किस अजब , गज़ब रेंज का मुजहिरा किया है जनाब . मगर ये भी मानना पडेगा कि अभिनय के सम्राट दिलीप कुमार इस गाने के उत्तुंग स्वरों को अभिनय के साथ मिलान नहीं कर पाये...(क्या आप सहमत है?)

(चलो आगे बढें या तीसरी कडी ? नही मेरे फ़र्मा रवा..आगे चलिये!)

और फ़िर क्या था, ऐसे खुली आवाज़ वाले गानों का चलन बढने लगा और उस शैली का विकास हुआ जिसमें खुले स्वर के साथ True Notes का उपयोग कलात्मक मुरकियों और संवेदनशील भावना से भीगे स्वरों का अभिर्भाव हिंदी फ़िल्मों के हुआ , जो अब तक चलता आ रहा है. (बाद में किशोर कुमार नें True notes के साथ साथ False notes की सुरमई संमिश्रण की शैली विकसित की जिसका वृहद रूप आज के गायकों की गायन शैली में दिखता है- इसका जिक्र बाद में जब हम किशोर और रफ़ी के स्वरों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे, अगले किसी पोस्ट में)

रफ़ी जी नौशाद साहब नें की हौसला अफ़ज़ाई को कभी भूल नही पाये, और उनके स्वभाव में भी ये बर्ताव रच बस गया, जो बाद में कई स्थान पर हमें देखने को मिला. नौ्शाद साहब हमेशा उनके गॊड फ़ादर रहे.जब रफ़ी जी की बिटिया की शादी का न्योता देनें रफ़ी नौशाद जी के यहां पहुंचे तो कहा आपको आना है, निकाह का इंतेज़ाम और पार्टी ताजमहल होटल पर रखी है, तो नौशाद जी नें उन्हे कहा - कि अपनी बिटिया नें अपना बचपन अपने घर में गुज़ारा है, जहां लाखों यादें और भावनांयें उस वास्तु के साथ बाबस्ता हैं , तो मेरा सुझाव है कि आप शादी तो अपने घर से ही करिये, भले ही वह छोटी जगह है.वही हुआ , शादी उनके घर में (रफ़ी विला) ही हुई.

बकौल नौशाद के - एक साल बाद, जब रफ़ी नाम का ये सूरज अर्श पर स्थापित हो गया था, तो बैजु बावरा फ़िल्म के एक गानें के बारे में एक विशेष प्रभावित करने वाला संस्मरण सुनिये.

इस फ़िल्म में छोटा बैजु और उसके पिताजी रास्ते पर से साचो तेरो नाम नाम गाते गाते तानसेन की हवेली के सामने से जाने का प्रसंग था.इस गीत के लिये बैजु बावरा के पिता की आवाज़ के लिये मैने रफ़ी का चयन किया, और बैजु की बालक आवाज़ के लिये एक गुणी और तैयार बच्चे का चयन किया, जिसका इस तरह का प्ले बॆक देने का पहला ही अवसर था.ज़ाहिर है, वह रफ़ी जी के सामने कभी बिचकने या डरने लगा तो कभी घबराकर अटकने लगा. तो रफ़ी जी नें उस प्रतिभावान बालक को प्रेम से पुचकार कर गले से लयाया और उसका आत्मविश्वास जागृत किया.ये भी कहा कि बेटा घबराने की कोई बात नहीं है, तुम जब तक बोलोगे या संतुष्ट होगे , हम लोग गाते रहेंगे. बडी मेहनत के बाद वह गीत तैय्यार हुआ और बेहद अच्छा बना.

पता है वह बालक कौन था- आज का प्रसिद्ध गायक, और संगीतकर हृदयनाथ मंगेशकर...!!!


जानकारी - साभार स्वयं नौशाद..
रफ़ी जी पर कडी़ और आगे भी- सी रामचन्द्र, महेंद्र कपूर , चित्रगुप्त , ओ पी नय्यर , जिन्हे हम इस जनवरी में याद कर रहे हैं जन्म दिन या बरसी पर, उनके साथ रफ़ी के गीतों को और उनके साथ यादों की जुगाली करेंगे - हम लोग...

8 comments:

Harshad Jangla said...

दिलीपभाई
मान गए साहब ! बड़ी और कड़ी महेनत करके आप यह सिलसिला जुटाते हैं | आपकी लेखन शैली काफ़ी मंजी हुई है | बहुत रसप्रद माहिती मिल रही है आपके ब्लॉग पर | बैजू बावरा का गीत मन तडपत बनाने बाले तीनो लोग जो हिंदू नही थे | मुगले आज़म का गीत मोहे पनघट पे के लिए भी यह सत्य है | ये दोनों गीत आज कालजयी होकर हमारे दिलो दिमाग पर छाये हुए हैं | नौशाद साब, रफी साब और युसूफ साब के गाने का तो कोई जवाब नहीं |
बहुत धन्यवाद |

-हर्षद जांगला
एटलांटा युएसए

Anonymous said...
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दिलीप कवठेकर said...
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Alpana Verma said...

आप ने इतनी सारी बातें रफी और नौशाद जीके बारे में बताईं --आप का आभार.
हृदयनाथ मंगेशकर जी के बारे में भी जाना.यह सच है की higher octave में duets लता और रफी ही
गा सकते थे ऐसा सुनते रहे हैं.बहुत अच्छा और जानकारी भरा लेख है.पहली बार देख रही हूँ इन विडियो के लिए भी धन्यवाद.

Smart Indian said...

दिलीप,
गज़ब की जानकारी लाये हो. संगीत के साथ अपना रिश्ता तो "काला अक्षर भैंस बराबर..." सरीखा है मगर फ़िर भी यह सब जानकर बहुत अच्छा लगा. रफी व किशोर के तुलनात्मक अध्ययन की कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
आभार!

सतपाल ख़याल said...

bahut acha lekh hai.lata-rafii ye to farishte hain..insaan nahi..

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अद्भुत........!!अद्भुत........!!अद्भुत........!!अद्भुत........!अद्भुत........!!अद्भुत........!!अद्भुत........!!अद्भुत........!

Anonymous said...

visited your musical blog for the very first time.what an apt but still colourful piece you have written on rafijee.when you write jee after rafi it shows what a great fan you are of this legendry singer.

blogger with writing skill and blogger with musical writing makes all the difference sir.

b.mehta,dewas

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