Monday, February 23, 2009

अल्ला रक्खा रहमान के दिल से--- जय हो....शिवमणी.


इस बार फ़िर देर हो गयी, घर में शादी जो थी.मित्रों को भी यही समय मिला था.

बस सब निपट चुका है, चार किलो वजन भी बढ गया है, और आज महाशिवरात्री के रोज़ का उपवास बडा सुकून भरा लग रहा है.

आज की सबसे बडी खबर ये है कि ओस्कर में भारतीय विषय पर बनी फ़िल्मों में स्लमडोग को ८ पुरस्कार मिले, और पिंकी की स्माईल और दूगनी हो गयी पुरस्कार के बाद. साथ ही हमारे सभी भारतीयों की भी स्माईल सौ गुना हो गयी, क्योंकि ऐसा अवसर बिरला ही आता है. अब इस बात में मीन मेख निकालने की कतई ज़रूरत नहीं कि यह फ़िल्म तो भारतीय नहीं.

चलिये साहब, आपने सुना नहीं? पुरस्कार मिलते ही रहमान नें क्या सही कहा है कि उसे जब चुनना पडा तो उसने सुख को चुना, दुख को नहीं. हम सब खुश हो जायें वाकई में, और न्यूज़ मीडिया भी खुश हो ले कि उसे दिन भर या २४ घंटे की खबर मिल गयी है.

मेरी बिटिया मानसी नें जब ये सुना तो कहा कि रहमान नें इससे भी अच्छे गाने कंपोज़ किये है, मगर इस गानें को जब मिलना था तो मिल ही गया.मेरे एक मित्र, जो मेनेजमेंट कोलेज चलाते हैं , ने कहा कि इस गीत की धुन कुछ इस तरह से बन पडी़ है, कि सकारात्मक फ़ीलींग आती है,और मेरे यहां एक परिसंवाद में ये विषय रखा गया था.

मैने सच कहूं तो ये गीत अब तक पूरा नहीं सुना था , इसलिये जब सुना तो पाया कि उत्साह के वातावरण में बुने हुए इस गीत के स्वर संयोजन में एक सीढी की तरह सुर नीचे से ऊपर जाते है, और जय हो पर ब्लास्ट करते है.

जहां तक गुलज़ार के लिखे शब्दों का सवाल है, अमूमन आजकल के गीतों के शब्दों पर तो युवा पीढी़ ध्यान ही नहीं देती.उन्हे तो गीत की धुन , उससे ज्यादा उसका रिदम से मतलब रहता है, ज़्यादाहतर. इसलिये कई युवाओं से जब पूछा तो अधिकतम सभी कन्नी काट गये. मैंने जब सुना तो पाया कि शब्द भी मधुर और डेकोरेटिव है.

मैं इसलिये यहां सिर्फ़ शब्द दे रहा हूं क्योंकि गीत तो अब अगले दो दिन और चलेगा हर चेनल पर.

जय हो,जय हो, जय हो, जय हो ,

आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,

रत्ती रत्ती सच्ची मैने जान गवाईं है,
नच नच कोयलों पे रात बिताई है,
अंखियों कि नींद मैने फूंको से उडा दी,
नीले तारे से मैने उंगली जलायी है,

आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,

चख ले , हां चख ले, ये रात शहद है..चख ले
रख ले , हां दिल है, दिल आखरी हद है,...रख ले
काला काला काजल तेरा कोइ जादू है ना
काला काला काजल तेरा कोइ जादू है ना

आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,

कब से, हां कब से तु लब पे रुकी है...कह दे
कह दे, हां कह दे अब आंख झुकी है...कह दे
ऐसी ऐसी रोशन आंखे रोशन दोनो भी है है क्या

आजा आजा जिन्द शामियाने के तले
आज जरीवाले नीले आसमान के तले,
जय हो,जय हो,२
जय हो, जय हो ,


क्या ही संयोग हुआ कि कल रहमान और उसकी टीम ओस्कर के समारोह के लिये तैय्यारी कर रहे थे, रहमान के बेंड का एक महत्वपूर्ण कलाकार शिवमणी यहां इन्दौर में था किसी निजी शादी के कार्यक्रम में, जहां उसने अपने हुनर और फ़न का ऐसा जबरदस्त मुजाहिरा किया कि सभी मौजूद श्रोता झूम उठे. चम्मच, स्टील का बर्तन, सूटकेस, बिसलेरी की खाली क्रंच की हुई बोतलें, मटका, सायकिल की घंटियां,बच्चों के खिलौने, पानी का बडा खाली टेंक... और क्या क्या सामान लेकर ताल वृंद या परकशन समूह से रस उत्पत्ती की.

कार्यक्रम शुरु होने से पहले जब मैं लान में सजी गोल टेबल पर बैठने गया ही था तो एक टेबल पर शिवमणी को अकेले बैठे देख मेरी तो बांछे ही खिल गयी. मेरे जिस मित्र नें अपने यहां शादी के रिशेप्शन में शिवमणी को बुलाया था, और किसी कामन मित्र की वजह से उसने ये पेरफ़ार्मेंस देना कबूल किया था.

जाहिर है, मैं और मेरी पत्नी उससे बातें करने लगे. उसने यह बताया कि दर असल आज उसे अमेरिका में होना था रहमान के साथ ओस्कर में मगर चूंकि पहले से कमिट कर दिया था मित्र को , तो यहां आ गये.एक और बात बताई जो महत्वपूर्ण है, कि आज रात को उसे मंगलोर में शिव मंदिर में अपना कार्यक्रम देना था, जो पिछले इतने सालों से वे मुफ़्त में दे रहे है.

शिवमणी वाकई में एक प्रयोगधर्मी कलाकार है और अपने साथी रहमान की तरह ही जिनीयस है.वह बता रहा था कि किस तरह वे दोनों इलाया राजा के पास कीबोर्ड और ताल वाद्य के लिये गये थे और उन्होने अपनी पूरी संगीत साधना वहीं की. बाद में उन्होने एक बेंड भी बनाया जिसका नाम था - रूट्स, जिसमें वे जिंगल्स और बेकग्राऊंड संगीत रचा करते थे. बाद में रोजा के ऐतिहासिक प्रसिद्धी के बाद उनकी टीम नें पीछे मुड कर नहीं देखा. इसी टीम में है नवीन कुमार जिसने मुंबई , ताल और दिल से में अपनी बांसुरी से हमारे होश उडा दिये थे.बेस गिटार के पीटर्स का भी यही मानना है, कि अगर आपमें कल्पना शक्ति है, तो आप रहमान के साथ जुड सकते हैं, क्योंकि वह सुरों का जादुगर है, और नई धुन में कुछ नयापन डालता है. जहां बाकी के संगीतकार नया करने की बजाय, एक ही सांचे में धुनों को ढालते है, क्योंकि वह धुन कामयाब हुई थी, रहमान इससे डरता नहीं.

मैंने उसे कहा कि वह वाकई में जिनीयस है, तो वह बडे ही सादगी से बोला, हम सब जिनीयस होते है, फ़रक सिर्फ़ यही है कि हम अपने आप को ईवोल्व कितना बेहतर कर पाते हैं. रहमान भी इसी लिये उससे बेहतर जिनीयस है, कलाकार है, क्योंकि उसने भारतीय मेलोडी और पाश्चात्य सिम्फनी का बेहद ही खूबसूरत फ़्युज़न किया. आज गुलज़ार नें भी तो कहा ही है, कि रहमान नें गाने के प्रचलित फ़ारमेट में कभी अपने आप को नही बांधा, और इसलिये,उसकी रचना में स्थाई, इंटरल्युड, अंतरा आदि में स्ट्रक्चर की जगह झरने जैसी अठखेलियां करती हुई धुनें होती है, जो कहीं ऊपर उठती है, तो कहीं ज़मीं पर कलकल बहती है.स्वदेश फ़िल्म का आठ मिनीट का वह गीत हो जिसे तीन गायकों ने गाया, या युवा फ़िल्म का अलग रिदम का गीत, रंग दे बसंती का युवाओं पर फ़िल्माया गीत आदि आदि.

मैंने शिवमणी से ये ज़रूर कहा कि मुझे राहुल देव बर्मन में और रहमान में ये बात कामन लगती है, कि दोनो ने ही प्रयोगधर्मी होने के साथ ताल और लय पर अलग अलग काम किया है. राहुल तो स्वयं ही एक अच्छे रिदम मास्टर थे, मगर रहमान के अलग अलग रिदम के प्रयोग के पीछे ज़रूर शिवमणी ही है. वह मुस्कुराया , शरमाया, और फ़िर कह उठा- रहमान को जो चाहिये वह हासिल कर लेता है, अपने ग्रुप से. हम भी यूं ट्युन हो गये है, कि हमेशा कुछ अलग रचने के लिये लालायित रहते है.उसे अपने काम पर गर्व ज़रूर है, खुद पर नहीं, क्योंकि उसमें एक बात है जिससे उसकी क्रियेटिविटी में हमेशा इज़ाफ़ा होता रहता है, वो है - उसकी स्पिरिच्युअलिटी या आध्यात्म!! (तभी तोआज उसने सबके सामने ये कह दिया- मेरे पास मां है. )

जय हो के गीत के बनने की प्रक्रिया पर उसनें बताया, कि इसपर रहमान के पास दो तीन धुनें थी, और सभी बढिया थी.

चलो , शिवमणी नें जो पर्फ़ार्मेंस दिया उसकी रिकोर्डिंग यहां दे रहा हूं आप के लिये- आनंद उठाईये, और मस्त हो जाईये--

जय हो !!!!



साथ में उसके विडियो भी देख लें...



26 comments:

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छी पोस्ट है और सामयिक भी.
इस अवसर पर सभी को बधाई..आज ही मैं ने भी यह गाना पूरा सुना .
गाना और धुन सब अच्छी है मगर सुखविंदर ने गाया भी बहुत ही खूबसूरती से है...शायद सुखविंदर से अच्छा ही कोई और इसे गा सकता था.
शिवमणि के इंटरव्यू पहले एक बार देखा था,तब उन के बारे में जन..और सच कहा है सकरात्मक रहेंगे तो ही खुश रहेंगे.सफल जीवन का यही मूल मन्त्र है.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब जानकारी दी आपने. बहुत धन्यवाद.

म्युजिक की रिकार्डिंग सुनकर तो आनन्द आ गया.

रामराम.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत अच्छी जानकारी दी है।बधाई स्वीकारे।

डॉ .अनुराग said...

रहमान की श्रेष्ट ता किसी पुरूस्कार की मोहताज नही है..उनके रचे गीत सुनकर शायद अब होली वुड महसूस करे .की उनके एक सदहरहण गीत जब ऐसा प्रभाव छोड़ता है तो बाकी गीत कैसे होगे.....फिलहाल डेल्ही -६ का रहना तू..सुन रहा हूँ

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शिवमणी जी की विशिष्टता को सँगीत सहीत उपस्थित करने के लिये आभार !!

आपका लिखा Indore शहर और राज घराने के साथ पुराने सँबम्ध के बारे मेँ पढा और आशा है कि आप Royal परिवार पर और King बाजीराव पर भी कुछ खास अवश्य लिखेँगेँ ..

अभी तो ए. आर. रहमान जी की पूरी टीम को हमारी बहुत सारी बधाईयाँ ..
- लावण्या

Science Bloggers Association said...

बहुत खूब। रहमान के बहाने शिवमणी के बारे में जानना भी अच्छा लगा।

Anonymous said...

aap jaise tu-tukaare se shivmani ko address kar rahe hain vah dukha pahoochata hai.mujhe nahi lagata ki aap shivmani ke saamne 1 % bhee hain.bhasa ki tameej bahut badee cheej hai.vah bola aur usane....padhna theek nahi lagata.hope you will not delete this comment and take it with great sprits and dignity.

susheel tamrakaar,mhow

दिलीप कवठेकर said...

आप का धन्यवाद.

लावण्याजी, आपका आग्रह खुशी से स्वीकार. आदरणीय ताऊजी नें भी आदेश दिया है कि राज परिवार पर अलग से लिखा जाये.

संयोग की बात है कि बाजीराव पर मेरे पिताजी महामहोपाध्याय डॊ. प्र.ना.कवठेकर जी नें अभी अभी एक संस्कृत का महाकाव्य लिखा है- बाजीराव मस्तानीयम, जिसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी सराहा जा रहा है. कालिदास की उपमालंकारों जैसी सजे इस महाकाव्य की खासीयत है, दोनों की प्रेम गाथा और तत्कालीन राजनीतिक परिप्र्येक्ष में बाजीराव का शौर्य वर्णन.साथ ही हिंदी में टीका भी है.

उसके बारे में ज़रूर कुछ बांटेंगे आपसमें.

दिलीप कवठेकर said...

सुशील ताम्रकार जी,

अपने सही लिखा है. उसके सामने मैं कुछ भी नही> १% भी ज़्यादा है.

वैसे ये भी सही है, कि उसे तू में नहीं लिखना चाहिये था. दर असल दूसरे दिन हमारी एक बहुत खास मुलाकात हुई थी साथ में मेरे आध्यात्मिक गुरुजी से, और हम एक अलग स्तर पर पहूंच गये. शायद यही कारण रहा होगा कि ऐसी गुस्ताखी हुई.

वैसे ये इंटर्व्यु एक अखबार में भी छपने दिया है, जिसमें मैने उन्होने शब्द का ही प्रयोग किया है. आप अपना ID भेजें तो उस मेल की CC आपको कर आपका आक्रोश दूर कर सकूं.अगर छप गया तो भी आप देख ही लेंगे.

Anonymous said...

sir

I appreciate your modesty but you are still writing उसके सामने...are you still at that अलग स्तर ...

in one of your comments you have indicated to lavanyajee that your father is mahamahopadhyaya...has he not given you that art of maintaining the serenity of language and respect to crative person like shivmani.and what is that aadhyatmik dharatal and guru which allows you to play notoriously with the dignity of languate.I will give you my i.d. within a day,pl.do send me the detailed interview , I would love to read it.

mind it ; there only the complain exists where we have respect for someone,so do I have for you (read all your posts in last six monts on regular basis)
susheel

दिलीप कवठेकर said...

Dear Mr Sushil,

U have a point, undeniably , unaurguably critical enough to substantiate your stand.

Certainly,I am honoured to understand that you have gone thru my efforts of putting what comes to my DIL on this blog. In that case, it is in Black & White that all along, how I have penned my respects & emotions for Artists, whom I hold in highest esteem.You also must have seen some remarks, where friends like you have acknowledged my such respects.So that establishes the character, is not it?

This is certainly not an effort for proving my selfrightousness, despite the fact that you are undoing all that my revered father and my guruji has done for me all these years,by spelling such remarks with audacity.

Despite that, I wish you to be generous enough to realise the fact that its my sanskars only and the spiritual obligation of my Guruji, that I am still looking from your end, with no malign thoughts, or Ego Clash, with no bearing or mention of your language.

Friend, life is certainly bigger than logic, and in absolute terms, I am still considering Shivamani, as उसने, as I have many a reasons to do so.I would not be happy to hurt you,even if I do not know you.So I humbly request you to dilute you anger, as the silver lining of the respect is also transparently sensed here. It is enough for me.

Come along,You are not very far from Indore.Let us sit with flowers, in the background score of Musical chimes and share our views and laugh it out!! I am OK ,you are OK.

Smart Indian said...

दिलीप जी, आपकी पोस्ट पढ़कर आनंद ही आ गया. मैं शिवमणि से मिलने पर आपके उल्लास को महसूस कर सकता हूँ. बहुत अच्छी और सामयिक पोस्ट - जैसी कि आपसे हमेशा आशा रहती है.

इतनी अच्छी पोस्ट पर भी तू-तू-मैं-मैं शुरू हो ही गयी है तो दो शब्द कहे बिना रहा न गया. गुस्ताखी माफ़!
जहां तक तू और तुम का सवाल है दोनों ही त्वं का हिन्दी स्वरुप हैं और सामान्यतः प्रयुक्त होते हैं. भगवान् के लिए तो सभी तू कहते हैं, माँ के लिए भी अक्सर ऐसा कहते सूना है. मराठीभाषी तो सामान्य रूप से तू को ही आप और तुम के लिए भी प्रयोग करते हैं. हिन्दी-भाषी जानते हैं कि "आप" वास्तव में तकल्लुफ (formality) के साथ प्रयोग होता है. वैसे भी आदर और सत्कार भावना की बात ज़्यादा है शब्दों की कम.

दुसरे, आपके और शिवमणि के बीच कितना अपनत्व रहा और आपने आपस में एक दुसरे को किस प्रकार पुकारा यह आपका व्यक्तिगत विषय है. हाँ आपने अपना अनुभव हम सब के साथ बांटा, इसके लिए धन्यवाद.

दिलीप कवठेकर said...

अनुरागजी,

आपमें वह आध्यात्म का अंश ही तो है जो आप बिना लिखे शतशः सभी समझ गये.यही बात सुबह मेरे पत्नी नें भी इन्ही शब्दों में कही थी, जो मैंने पोस्ट पर कहना उचित नहीं समझा था.

वैसे मेरे लिये ये ज़रूरी है, कि मैं अपने तईं इस चेलेंज को स्वीकार करूं कि उस व्यक्ति( उन महानुभाव ) को भी प्रसन्न कर सकूं जो मुझे सिर्फ़ सर से सम्बोधित कर रहा है(रहे है) और किसी को सिर्फ़ तू में बात करने के लिये मेरी योग्यता (१%),मेरे पिताजी और गुरु की असफ़लता को अशालीन शब्दों में लिख कर अपना परिचय दे रहा (रहे) है.

(मेरी विवशता है कि हिंदी में व्यक्ति के बाद रहा है ऐसा ही प्रयोग होता है, रहे है मैने " उन महानुभावों (?)" के लिये लिखा है, नहीं तो एक और नई टिप्पणी !!! हा हा हा!!!)(Pun unintended)

वैसे ब्लोग पर दिलवालों की ज़रूरत ज़्यादा है, दिमाग वालों की बजाय, क्योंकि संगीत ही हमें ये सिखाता है कि सुरों में ही प्रेम है, और प्रेम में ही ईश्वर है.

दिलीप कवठेकर said...
This comment has been removed by the author.
दिलीप कवठेकर said...
This comment has been removed by the author.
आत्ममुग्ध said...

दिलीप जी और अनुरागजी से सहमत हूं.

दिलीप्जी, आपका साधुवाद, जो आपने अपने संस्कारों का इतना अच्छा प्रयोग किया.बच्चों को समझाने का आपको शायद अनुभव लगता है!!

अंत में भी आपका सेंस आव हुमर , व्यंग और शालीनता का मिला जुला स्वरोप देख सलाम कर्ने को जी करता है. आप दोनो जैसे और आपके साथी ब्लाग्गर्स का संयम और मेच्युरिटी को देख कर आदर होता है. तभी तो हम जैसे लोगों से भी उम्मीद रखना चाहिये कि हम संभ्रांत होने का सबूत दें.नहीं तो यहां कौन लिखेगा? और कौन पधेगा ?अगर तू तू मै मै ही करना है तो क्या महू में आद्मीयों की कमी है?

संजय पटेल said...

श्री दिलीप जी,
इन दिनों की बोर्ड से सायास बनाई हुई दूरी के बावजूद रहमान पर आई कतिपय टिप्पणियों के बारे में लिखने को विवश हूँ.

मशवरा इतना भर है कि इन भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को सहज साक्षी भाव से देखा करें और मन की छलनी से पार कर दिया करें.कचरा रह जाएगा....साबूत माल छन जाएगा...ब्लॉग का माध्यम मन के खुले पन का है.नुक़्ताचीनियाँ इस बात का परिचायक हैं कि लिखा हुआ ध्यान से पढ़ा जा रहा है. जो बात किसी के लिख देने के बाद कही जाए वह सरकारी मास्टरी से ज़्यादा कुछ नहीं होती.(मूल वैसे भी कहाँ कहा जा रहा है..पूरी दुनिया में शब्द की चोट्टाई एक बड़ा कारोबार है)श्री रामचरित मानस में गोसाईं तुलसीदासजी ने श्री गणेश,गुरूवर्य,शिव,राम,भवानी संतों के बाद विशेष कर असंतों की वंदना की है. हम सभी शब्द के गुणग्राहक हैं सो हमें भी ऐसा ही सदाचरण करना चाहिए...ज़रूर आया करें ऐसे महान संत (?) आपके ब्लॉग पर और बताया करें कि क्या कमी रह गई....श्रध्दा से अनुगृहीत रहें आप उनके प्रति.....ब्लॉग की दुनिया से लगभग दूर हो कर निजी जीवन में बस यही सब मैं भी कर रहा हूँ (गोया सुनी सुनाई बात नहीं है अपने ऊपर गुज़री है)

दिलीप कवठेकर said...

संजय जी, खुश आमदीद !!

तुम आ गये हो नूर आ गया है,
नही तो चरागों से लौ जा रही थी,

आप भी तो हम सभी की तरह उसके रंग में रंगे हो . आप और रंग बिखरेंगे इस के लिये ईश्वर से प्रार्थना.

धन्यवाद.

Harshad Jangla said...

दिलीपभाई
आपकी और दुसरे ब्लोगरों के बीच हो रही दलीलों से यह बात तो सिध्ध हो गई है कि आपका दिल कितना विशाल है , आपका ह्रदय कितना उदार है और आपका दिमाग कितना परिपक्व है | I salute your magnanimity and maturity of mind. I request you to ignore unwanted and unnecessary comments made by others.It is a way of the world that you get more bricks than bouques. So please continue to show your creativity,cultured language and interesting information thru your blogs in the days to come.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

kumar Dheeraj said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने दिलीपजी । मै भी एक स्पेशल प्रोगाम रहमान के लिए बनाया था और उसकी जय हो कि पूरे देश में पहुचाने का प्रयास किया था । रहमान की जय हो हम तमाम भारतीय की जय हो है । आभार

Anonymous said...

दिलीप जी,
संगीतमय प्रस्‍तुति और शिवमणि से मिलाने के लिए आभार।

Manish Kumar said...

देर से पढ़ी आपकी येपोस्ट। रहमान के ग्रुप के बाकी कलाकारों के बारे में पढ़कर और शिवमणी की कलाकारी देख मन प्रसन्न हुआ।

Anonymous said...

holi has been more colourful for me this year as your blog has given a great musical company to me.

keep spreading melodious colours

srk

Anonymous said...

your silance is disturbing...please write some thing new. I was waiting some piece on holi...please do.

susheel

Anonymous said...

हम आज हिउ पहली दफा आपके ब्लॉग पर आये. बहुत सुन्दर आलेख रहा. शिवमणि के वीडियो बहुत अछे लगे. आभार.

Sajeev said...

good hai dilip ji...keep posting

Blog Widget by LinkWithin