Saturday, September 5, 2009

ये कौन चित्रकार है? मुकेश जी और प्रकृति का चमत्कार !!


मुकेश - कडी २

अभी दो दिन पहले ही मुंबई काम के सिलसिले में जाना हुआ.विघ्नहर्ता विनायक की स्थापना मुंबई के गली गली , कूचे कूचे में हुई नज़र आ रही थी. बडे बडे पांडाल, रोशनीयों की झप झप , झक पक, और एक दूसरे से होड लेती हुई भगवान गणपति देवा की बडी बडी ,दर्शनीय, और मनोहारी मूर्तियां....

क्या संयोग ही था कि हम प्रसिद्ध लालबाग चा राज़ा के गणपति पंडाल के पास के ही होटल में रुके हुए थे. चाहता तो था कि रात को ही दर्शन करता , मीटिंग देर तक चल रही थी और देर रात को भी इतनी भीड थी (कोई फ़िल्म स्टार आया था).तो सोचा कि कल अंतिम दिन याने अनंत चौदस को ही देखेंगे.

मगर एकदम खबर ये आयी इंदौर से, कि मेरी प्यारी सी बिटिया मानसी को तेज़ बुखार की वजह से हॊस्पिटल में भरती किया है.बस आनन फ़ानन में सुबह के प्लेन की टिकीट बुक किये और अल सुबह किंगफ़िशर की उडान में बैठ कर वापिस इंदौर चल दिये.मुंबई में बारीश हल्की हल्की हो ही रही थी, और विमान नें जब उडान भरी तो बादलों के कोहरे में से ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं के शीश झांक रहे थे.पता चला कि दो दिन से इंदौर में भी झम झम बारीश हो रही थी.

फ़्लाईट में दिल मश्कूक था और मन में असंख्य शंकायें जन्म ले रही थी.इंदौर में भी वाईरल का बुखार चल पडा था, डेंग्यु फ़्ल्यु का प्रकोप था ही, और रही सही कसर स्वाईन फ़्ल्यु में पूरी कर रखी थी. विमान में विडियो और ऒडियो एंटर्टेनमेंट था,मगर बिटिया की चिंता में कुछ भी देखने का मूड नही हो रहा था,तभी एक चेनल पर मुकेश जी के गीत सुनाई दिये तो बस वहीं अटक गया.

करीब एक घंटे की फ़्लाईट के बाद जब कप्तान नें इंदौर आने का संकेत दिया, तो संयोग से मुकेश जी का एक गीत लगा-

ये कौन .....चित्रकार है?

अमूमन जब भी ये गीत लगता है, तो मैं इसे फ़ास्ट फ़ारवर्ड कर देता था, क्योंकि अक्सर हर संगीत के अधिकतर कार्यक्रम में (जिसमें मुकेशजी के गीत होते है)ये गीत ज़रूर लिया जाता है. मगर दुर्भाग्य से या तो ऒर्केस्ट्रा के साज़ों के कंडक्शन में कहीं खामी रह जाती थी या गायक इस गीत के उत्तुंग भावों को पकड नहीं पाता था. संक्षेप में, इस गीत के बोल और वाद्य संयोजन के जादू को मैं कभी पहचान नहीं पाया था.

इस लिये अपने मन में हो रही हलचल का ध्यान बंटाने मैं खिडकी से बाहर झांक कर देखने लगा.तो मैने वर्षा के बादलों के झुरमुट में से नीचे दृष्टि डालकर देखा तो मैं ठगा सा ही रह गया.



नीचे हरे हरे गालीचे की माफ़िक मालवा की धरती फ़ैली हुई थी. कहीं कहीं भीगी भीगी सी झाडि़यां, कहीं सांप सी लहर खाती हुई नदीयां और उफ़नते नाले, कहीं पानी के बडे बडे लबालब भरे हुई जलाशय ....मानों अपने घर के आंगन के बगीचे में पानी भरा हुआ हो और हम उसमें ’आई’(मां) की स्नेहमई नज़र से बचते बचाते फ़चाक से कूद पडते हैं, गीले हो जाते हैं.या फ़िर कभी कभी कागज़ की कश्तियां तैराया करते थे

क्या मंज़र था... मुकेशजी की पाक नर्म सुरीली आवाज़ ,पं भरत व्यास के शुद्ध शहद से टपकते हुए मधुर बोल, अमृत में धुली हुई फ़िज़ा ए सहरी ,जमीं का शफ़्फ़ाफ़ सा लेहलहाता हुआ स्वरूप जैसे वसुंधरा की गोद फूलोँ से भरी हो, सिंदूरी आफ़ताब का चमकता अक्स कभी कभी सफ़ेद राजहंसों के हुजूम से उड रहे बादलों से चीर कर बारीश के पानी को ओढे पैरहन से पलट कर आता हुआ . .

मैं खा़लिक़ (सृष्टिकर्ता) की खा़लिस़ कुदरती ’अक्कासी (चित्रकारी)से अभिभूत हो कर , सन्मोहित हो कर मालिक के इस अज़ीम शाहकार से नतमस्तक हो गया, और वाकई में आंखों से भक्तिमय आंसूं तर आये.मन के भाव बौने हो गये, और उस महान सर्व शक्तिमान निर्माता के उत्तुंग व्यक्तित्व से प्रभावित मैं भक्तिसागर में डूब गया, कि जब हवाई जहाज नें जब ज़मीन को छुआ तब उस सन्मोहन से उबरा.

आज अभी देर रात को उस अस्पताल में हूं जिसको आज से कई सालों पहले मैने ही बनाया था एक होटल के लिये .उसके चौथे माले के प्राईवेट वार्ड के कमरे में बाहर बडी खिडकी से इंदौर शहर पर झमझमाती बारीश की चादर में से कहीं कहीं बिजली की कडकडाहट और रोशनी को देख रहा हूं , कहीं कहीं अनंत चौदस के गणपति विसर्जन की झांकीयों की रोशनी का उजाला देख रहा हूं , और फ़िर भी सुबह के उस मंज़र का खयाल दिलोदिमाग से निकाल नहीं पा रहा हूं.

चलो, आप को भी अपने इस अनुभव से गुज़ारने की हिमाकत करता हूं...

सुनिये और देखिये इस गीत के अंश को, दृष्यावली को, और शिक्षक बनें जीतेंद्र को (शिक्षक दिवस की संध्या पर). आप भी सन्मोहित हो जाये उस ईश्वर के जादूगरी का तसव्वूर कर के.आप पर भी वही आलम तारी हो जाये जो मुझ पर हुआ है.

अगर मज़ा नहीं आया तो मुझे कोसियेगा, ईश्वर को नहीं या इन्हे भी नहीं....!!!!



हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन,
के जिसके बादलों की पालकी उडा रहा पवन,
दिशायें देखो रंग भरी.....,
चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे ......किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है? ये कौन चित्रकार है?
ये कौन .....चित्रकार है?

तपस्वीयों सी है अटल ये पर्वतों की चोटीयां,
ये सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियां,
ध्वजा से ये खडे हुए .....है वृक्ष देवदार के ,
गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बहार के ,
ये किस कवि की कल्पना .....का चमत्कार है,

ये कौन चित्रकार है? ये कौन चित्रकार है?

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो,
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा ....अपने ललाट की,
कण कण से झांकती तुम्हे छवि विराट की
अपनी तो आंख एक है, उसकी हज़ार है.

गीतकार पं. भरत व्यास, संगीतकार सतीश भाटिया,
फ़िल्म बूंद जो बन गयी मोती ( वी. शांताराम)


16 comments:

Udan Tashtari said...

वाह! क्या चित्र-क्या आलेख और क्या उम्दा गीत..आभार!!

विवेक रस्तोगी said...

आशा है अब आपकी बेटी की तबियत अच्छी होगी ।

बेहतरीन गीत प्रस्तुति और फ़ोटो।

Alpana Verma said...

बहुत ही खूबसूरत तस्वीरें हैं...सच में प्रकृति बहुत ही खूबसूरत है.ख़ास कर इन्द्रधनुष वाली तस्वीर तो बहुत ही अच्छी है.
-मुकेश जी का गाया गीत और वीडियो शिक्षक दिवस पर सामायिक है.
-बहुत ही सुन्दर पोस्ट है.आभार.
--अब आप की बिटिया की तबियत कैसी है?मेरी शुभकामना है की जल्दी से जल्दी वह स्वस्थ हो.

"अर्श" said...

दिलीप जी पहले बिटिया कैसी है ये बताएं...??? अल्लाह मियां से दुया उसके प्यारी के लिए... ये कौन चित्रकार है ,,.. ये गीत देख के ऐसा लगा जैसे मेरा बचपन मेरे बगल में आकर बैठ गया है और मुझ से पूछ रहा है याद है ये गीत जब तुम चित्रहार या रंगोली में देखते थे... आँखें खुद बा खुद डबडबा गयी ...हम अपने बचपन के बहुत ही ऐसी चीजे छोड़ या भूल चुके है जो उस वक्त सुकून देता था .. हमें याद करने पे आज भी वो वेसे है सुकून देता है ... बहुत बहुत बधाई और आभार .... सलाम..

अर्श

निर्मला कपिला said...

खूबसूरत तस्वीरें और गीत । आपकी बेटी के लिये मेरी भी शुभकामनायें और आशीर्वाद्

Yunus Khan said...

शानदार तस्‍वीरें । ये मोबाइल से हैं या डिजिटल कैमेरे से । आपकी बिटिया अब कैसी है ।
मुंबई आएं तो खबर किया करें ।

ताऊ रामपुरिया said...

वाह आज तो मन तरंगित हो गया. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Manish Kumar said...

Geet to pasandeeda hai hi ..Chitron ne visheshtaur par man moh liya.

दिलीप कवठेकर said...

आप सभी का बिटिया के तबियत की मिज़ाजपुर्सी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया. आज मानसी को घर ले आया हूं.

आप सबके इस स्नेह से भावाभिभूत हूं , फ़िर से धन्यवाद!!

Creative Manch said...

गीत और फ़ोटो बेहतरीन
सहेज के रखने वाली
बहुत ही सुन्दर पोस्ट



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सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
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हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

Beautiful pictures....dil men sanjokar rakhen.

शरद कोकास said...

दिलीप जी मै यह पोस्ट पूरी पढ़ गया और सरसरी निगाह से कि अंत मे आप बिटिया की तबियत के बारे में ज़रूर लिखेंगे । मेरा मन पता नहीं क्यों वहीं अटका रहा । अब आपकी बिटिया के स्वस्थ्य होने का समाचार मिल जाये तो फिर इसे पढ़ूंगा । -शरद कोकास .दुर्ग

दिलीप कवठेकर said...

प्रिय शरदजी,

आपका धन्यवाद कि आपने मेरी बिटिया के स्वस्थ्य के बारे में इतनी संवेदनाशीलता दिखाई.

जैसा कि मैने लिखा है, पोस्ट को लिखते समय बिटिया अस्वस्थ ही थी, मगर बाद में ईश्वर के कृपा से अब पूर्णतयः स्वस्थ है, और अस्पताल से घर आ गयी है. पुनः एक बार धन्यवाद, इस मिजाज़पुर्सी के लिये.

वैसे, बाद में मैने कमेंट बोक्स पर यह जानकारी दे दी है.

शोभना चौरे said...

dilipji
bahut sundar aalekh ,utne hi sundar
chitra .indour ki khubsurti ka ahsas mujhe yhan benglor me aandolit kar gya vaise mai indor me hi rhti hoo .
mukeshji ki aavaj ka ah anmol geet hmesha hi romanchit kar deta hai .
bitiya ko ashirwad

neelam said...

dilip saahab ,
kaafi dinon baad aana hota hai aapke blog par tabiyat khush ho jaati hai ,is gaane ko bachpan se hi sanjoya hua tha humne apne dil me
aaj aapki post par phir se sunne ko mil hi gaya .aapki beti swasth ho chuki hai ,upar waale ki niyaamat hai.
iske sangeet kaar ar sangeet se bhi kai baate judi hui hain ,uske baare me bhi bataana tha na .

डिम्पल मल्होत्रा said...

wow!!pics r so nice....n post too...

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