Wednesday, September 16, 2009
आशा भोंसले- स्वर्ग से उतरी एक स्वर किन्नरी...
पिछले दस दिन बस अस्पताल में गुज़रे.
और साथ ही इंदौर में एक मेगा ईवेंट भी चल रहा था, जुनून.. सात सुरों का, जिसमें अन्नु कपूर नें इंदौर आकर करीब सौ गायक गायिकाओं में से २४ कलाकार चुनें, सुगम (फ़िल्मी), सूफ़ी और लोकगीत विधाओं में , और ता. ९ को यहां के बडे अभय प्रशाल में उनकी कोंपिटीशन हुई तीन बडे निर्णायकों के सामने- इला अरुण , जस्पिन्दर कौर नरुला , और मोहम्मद वकील, (उभरते हुए ग़ज़ल फ़नकार) जो नितिन मुकेश के बदले बुलाये गये, क्योंकि उन्हे अचानक विदेश जाना पडा़.इस ईवेंट में मेरी और श्री संजय पटेल की हमेशा की तरह एक महती भूमिका रही.
लगता है, नज़र लग गयी और खाकसार भी गिर पडे़ चारो खाने चित, याने बुखार में, और पिछले तीन दिन से ज्वर की पीडा से गुज़र रहें है.
इन दिनों मेरे दिल के बेहद करीब , सुरों के साम्राज्य की मलिका, मदहोश दिलकश आवाज से पिछले साठ से भी ज़्यादा हम सभी के दिलों पर और कान पर राज करने वाली आशा भोंसले का जन्म दिन भी था ८ सितंबर को.(१९३३) याने यह उनका ७८ वां जन्म दिन था.
बाद में मेलोडी धुनों के शहंशाह जयकिशन जी की भी पुण्य तिथि थी १२ सितंबर को (१९७१).
इधर वाईरल नें घेरा और उधर संयोग ये रहा कि मेरे घर और ऒफ़िस के लेप्टॊप दोनों खराब हो गये. दर्द का आलम ये है पिछले तीन दिनों से कि रात जागते तिलमिलाते गुज़र रही थी, क्योंकि नेट से कट गये.बस एक ही चमकती रोशनी की किरण जो उस पीडा के अंधियारे से फ़ूट पडी वो आशा जी के कुछ वो नगमें जो ना मालूम क्यों रात रात भर मन में ही गनगुनाता रहा और दर्द से आंशिक सुकून पाता रहा.
प्यारा हिंडोला मेरा,
चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया,
ये है रेशमी जुल्फ़ों का अंधेरा (क्या खूब गाकर सुनाया था जस्पिंदर नरुला नें उस दिन)
अब ये लेप्टोप आ गया है, तो दर्दे दिल, दर्दे जिगर सभी इसमें ही समा गये हैं.
और ये गीत जो मैं आप को सुनाने जा रहा हूं, जिसके संगीतकार भी संय़ोग से शंकर जयकिशन ही है..
रे मन सुर में गा sss
ये गीत पहले कभी तैय्यार किया था, मगर गा नहीं पाये थे किसी भी कार्यक्रम में, उस कार्यक्रम में भी नहीं, जो बरसों पहले हमनें आशाजी की लिये पेश किया था और उसमें सामने स्वयं आशाजी नें हमें सुना.
इस गीत की रागरागिनी(राग यमन) पर बात करने की बजाय इस १०२ डिग्री बुखार में आशाजी की सिर्फ़ वह तान बार बार सुनाई दे रही है, जिसके सामने मैं नतमस्तक हूं. सुरों के हिमालय खुद मन्ना दा भी इस गाने में आशाजी के गले से निकली हरकतों, मुरकीयों के कायल हुए होंगे ज़रूर. कोई भी मानव गला ऐसी साफ़ सुथरी स्वच्छ पानी के झरने जैसी एक सुर से दूसरे सुर में फ़िसलती हुई नियंत्रित तान नही गा पाया हैं.क्या आरोह क्या अवरोह
(लताजी के दिवाने मुझें माफ़ करें, मगर उनका गला तो मानवीय है कहां?)
तो चले उस अमानवीय गले की भी तान नहीं सुनेंगे? तो प्रस्तुत है दिव्यात्मा लता जी का गीत ...
मनमोहना बडे झूटे
जिसके संगीतकार भी संयोग से शंकर जयकिशन ही हैं.
मगर मैं दोनों अज़ीम शाहकाराओं की तुलना करने का दुस्साहस क्यों कर रहा हूं? शायद वाईरल नें दिमाग पर असर कर दिया है,(दिल पर नहीं).
इसलिये मैं तो इस बहाने इस गुनाह की सज़ा से बच जाऊंगा. मगर आप क्या करेंगे जनाब?
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13 comments:
bahut khub, aapne indore aur ki yaad dila di.
जानदार पोस्ट । आभार ।
उम्दा आलेख.
अस्पताल में क्यूँ, क्या हुआ है??
कोई भी मानव गला ऐसी साफ़ सुथरी स्वच्छ पानी के झरने जैसी एक सुर से दूसरे सुर में फ़िसलती हुई नियंत्रित तान नही गा पाया हैं.क्या आरोह क्या अवरोह...ekdum sehmat huun...mai khud asha ji ke aagey kuch nahi sun paati..KAANCHA KA GALAA HAI :)..re mun sur me gaa ...bahut arse baad suna aaj...aabhaar
बहुत लाजवाब जी, लालपत्थर की तो बात ही निराली थी. आप जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें और फ़िर दर्शन दें तो कुछ बात बने.
रामराम.
aap viral fever ki duhaai dekar bach jaayenge ,to ham sab bhi yah kah kar bach nikalenge ki dilip ji ki sohabat ka asar hai ,kahiye kaisi rahi ,,,,,,,,,,
hum bhi apne jamaane ke bahaanebaaj kam n the .ab aap ke dushmnaon ki tabiyat kaisi hai janaab.
achche geet sunvaane ka shukriya
चलिए audition तो ख़तम हुए.!
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आप का सौभाग्य जो इतने गुनी महानुभावों से मिलना होता है.
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आशा जी और लता जी को मैं एक सिक्के के दो पहलू मानती हूँ..यूँ लता जी मेरी सर्वप्रथम पसंद हैं..लेकिन दोनों में कोई मुकाबला या तुलना नहीं--दोनों ही अतुलनीय हैं..
आशा जी का मुझे' साथी रे..भूल न जाना..'
गीत सब से अच्छा लगता है.
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शंकर जयकिशन जी को भी आपने याद किया..उनका यादगार गीत--'ओ मेरे सनम' [संगम का]...जिसे कम लोकप्रियता मिली मगर उनका वह गीत एक अनमोल नगीना है..
--आप को बुखार हैं..अपना ख्याल रखीये.
- shighr swasthylabh hetu शुभकामनायें.
बेहतरीन प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
Good but not enough. Not happy with yr song selection (out of 18K songs, this was a let down). You have raised the bar so high, that anything, even slightly less, is unacceptable. We expect a second part, which will talk, in musical details, about real gems of Ashaji.
I am confident that post this viral break, you will delight us, as always, with a memorable and unique take on Ashaji.
बहुत सुंदर लेख, लेकिन आप को क्या हो गया भाई एक नही दो नही दस दिन.... भगवान खेर करे सब ठीक तो है ना. हमारी शुभकामनाये.
बेहतरीन लेख सुन्दर प्रस्तुति..
ईश्वर कुशल करे...पर अस्पताल में क्यों?
गाना सुनकर अच्छा लगा.
आशा जी की आवाज़ वाह !
आशा जी की आवाज़ से दिल खुश कर दिया.
नज़रों से बचने के लिए काला टीका लगा लिया करें, कम से कम नज़ारे-बुखार की गिरफ्त से तो बस रहेंगें.....
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
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