Tuesday, September 22, 2009

’राग - ज़ेज़ स्टाईल ’ हिंदुस्तानी शास्त्रीय राग और पश्चिमी संगीत का फ़्युज़न - जयकिशन



इस चित्र को आप ज़रा गौर से देखें.

नामवर संगीतकार जोडी शंकर जयकिशन में से एक जयकिशन डाह्याभाई पांचाल.....

अभी पिछली १२ तारीख को आपकी पुण्यतिथी थी और हम सबनें उन्हे याद किया. वैसे पिछली ६ ता. को यहां मुंबई से आई एक फ़िल्मी संगीत को समर्पित एक ग्रुप आया था जिसनें शंकर जयकिशन जी की धुनों के प्यारे प्यारे नगमें सुनाये थे. मैं जा नहीं सका क्योंकि अस्पताल में था बिटिया के लिये, मगर बाद में पता चल्ल कि बेहद ही बढिया कार्यक्रम हुआ था उस रात. खुद संजय पटेल जो स्वयं पुराने फ़िल्मी गीतों के दर्दी हैं,गुले गुलज़ार हो कर मुझे दाद देते हुए कहा कि एक तो शंकर जयकिशन की मेलोडी और ऊपर से इतना बढिया प्रोग्राम. बस उनकी टिप्पणी में ही मैंने पूरे कार्यक्रम का लुत्फ़ उठा लिया.

शंकर जयकिशन दोनों अलग अलग संगीत देते थे ये बात हम सभी जानते ही हैं. मगर कई बार सुनने वाले यही जानने की चेष्टा में लगे रहते हैं, कि कौनसी फ़िल्म में गीत शंकर जी नें दिया था और कौनसी में जयकिशन जी नें.

मेरे एक मित्र श्री श्रीधर कामत बता रहे थे कि अमूमन शैलेन्द्र नें शंकर के लिये लिखा था और हसरत नें जयकिशन के लिये. मगर मुझे लगता है ये पूर्णतयः सही नही होना चाहिये. रात के हमसफ़र ये गीत शैलेंद्र नें लिखा था मगर मेलोडी जयकिशन की लगती है.

वैसे पgaला कहीं का, एप्रिल फ़ूल, आम्रपाली,दिल एक मंदिर आदि जयकिशन जी नें ही दिये होंगे. क्योंकि मोटे तौर पर जब भी हम उनकी धुन को सुनते हैं उसमें मेलॊडी की बहुतायत मिलेगी बनिस्बत पाश्चात्य सिम्फनी भरे कोर्ड्स भरी धुन के जो शंकर का बेस्टन था या उनकी स्ट्रेंग्थ थी.शंकर के गीतों में ऒर्केस्टा ज़्यादा मिलेगा,जिसमें पाश्चात्य वाद्यों की बहुतायत होगी, और जयकिशन के ईंटरल्य़ुड्स में भारतीय वाद्य और तबले ढोलक का उपयोग ज़्यादा.

पहचान के लिये एक और छोटा सा नुस्खा मैं वापरता हूं. शंकर जी का बाद में लताजी से अनबन होने की वजह से उनकी धुनों को लताजी नें नहीं गाया, जबकि जयकिशनजी नें लताजी की मधुर आवाज़ का उपयोग बादमें भी किया.

ये चित्र एक रिकोर्डिंग के समय का हैं जो हमें विश्वास नेरुरकर (लोकसत्ता)के सौजन्य से प्राप्त हुआ है.ये रिकोर्डिंग ज़र हटके है.

दायीं ओर जयकिशन जी को तो पहचानने में कठिनाई नहीं आयेगी. बायीं तरफ़ है, प्रख्यात सितारवादक रईसखान , जिन्होने हिंदी फ़िल्मी गीतों में कई बार सितार के पीसेस बजाये हैं ( तुम्हे याद करते करते- लताजी- आम्रपाली)

काला चष्मा लगाये हुए चश्मे बद्दूर हैं, मशहूर सॆक्सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंग (तुम्हे याद होगा कभी हम मिले थे- हेमंत-लता - सट्टा बाज़ार) या (आवाज़ देके हमें-रफ़ी-लता-प्रोफ़ेसर)ये बाद में प्रसिद्ध संगीतकार राहुलदेव बर्मन के मुख्य असिस्टेंट और अरेंजर भी रहे हैं (छोटे नवाब से लव स्टोरी १९४२ तक)

जयकिशनजी के पीछे बैठकर ड्रम बजा रहे हैं ड्रमप्लेय लेस्ली गोदिन्हा.

ये रिकोर्डिंग किसी फ़िल्म की गाने की ना होकर १९६८ में बनी एक एल पी रिकोर्ड ’राग - ज़ेज़ स्टाईल ’ के समय का है.जानकारी के अनुसार इसमें और जिन वादक कलाकरों नें अपने हुनर दिखाये थे वे थे -

अनंत नैय्यर और रमाकांत (तबला)
झॊन परेरा ( ट्रंपेट)
एडी ट्रेवर्स (बास)
दिलीप नाईक और एनिबाल केस्ट्रो ( एलेक्ट्रिक गिटार)
सुमंत (फ़्ल्यूट)

वाद्यवृंद संयोजन था एस. जे. का!! जिन्हे हमेशा की तरह असिस्ट किया दत्ताराम और सेबेस्टियन डिसूज़ा नें.

हिंदुस्तानी राग और पश्चिमी संगीत का फ़्युज़न ४० साल पहले करने का भारत में ये पहला और अभिनव प्रयोग था. इससे पहले उस्ताद रविशंकर जी नें ऐसे प्रयोग किये थी ज़रूर, मगर अमेरीका में.

उन दिनों किसी कारणवश फ़िल्म इंडस्ट्री के वादकों का स्टाईक चल रहा था, और कई दिनों से संगीतकार बस घर बैठे थे.तो ऐसे में एच एम व्ही के श्री विजयकिशोर दुबे के मन में इस परिकल्पना का जन्म हुआ और उन्होंने यह बात जयकिशन को बताई. वैसे ये बात शंकर जी को खास पसंद नहीं आयी, और उन्होंनें इसका कुछ विरोध भी किया.मगर जयकिशन जी को ये बात और चेलेंज इतना मन भाया कि उन्होने शंकर के विरोध के बावजूद इस क्रीयेटिव काम को अंजाम देनेम की ठान ली.

शास्त्रीय संगीत में प्रचलित प्रसिद्ध राग तोडी, भैरव, मालकंस, कलावती, तिलक कामोद, मियां की मल्हार,बैरागी जयजयवंती ,पिलू, शिवरंजनी, और भैरवी इन ग्यारह रागों पर आधारित फ़्युज़न संरचना उन्होने कंपोज़ की ये अलग सी इंस्टुमेंटल रिकोर्ड. उन दिनों नयी तकनीक से स्टीरीयो में ध्वनिमुद्रण किया गया, जिन धुनों को बाद में कहीं किन्ही फ़िल्मों में जयकिशन जी नें उपयोग भी किया था.

परंपरा को छोड कर किया गया कोई नवप्रयोग हमेशा टीका का पात्र होता आया है.इस रिकोर्ड का भी हश्र ऐसा ही हुआ, और कालांतर में इस सृजन को भुला दिया गया. बाद में सारेगामा कं नें सी डी में ये एल पी फ़िर से बाज़ार में लायी थी तब फ़िर से उन क्षणॊम को फ़िर से याद किया गया.

मैं इस सी डी की खोज में हूं. जिस तरह स्व. मदन मोहन जी एक पुराने गीतों की मनमोहन रिकोर्डिंग फ़िर से सुनाई दी थी, ये भी सुनने की ख्वाईश है, खासकर आज जब काउंटर मेलोडी के नाम पर पॊप रिथम के अंतर्गत ना जाने क्या क्या परोसा जा रहा है.

किसी भी संगीतप्रेमी के पास यह रिकोर्ड मिलेगी? लता दीनानाथ मंगेशकर संग्रहालय के सुमन चौरसिया जी के पास शायद होना चाहिये, जो अभी मुम्बई गये हुए हैं.

(जानकारी लोकसत्ता से साभार)
तो सुनिये वह बेहतरीन नगमा जो लताजी नें गा कर अमर कर दिया.


सेंस्युलिटी का एक अंडरकरंट जो इस गाने में है, वह उस्ताद रईसखान जी के सितार में आपको मिलेगा. सॆक्सोफ़ोन को लोग नाम के अनुरूप सेक्स्युलिटी का प्रतिरूप कहते हैं, मगर सितार का जो उपयोग हुआ है, वह तो इस दुनिया के बाहर की चीज़ है.



सेक्सोफोन का भी उपयोग अधिकतर पार्टी गीत में रात को उपयोग किया जाता है, मगर विरह के लिये जिस तरह मनोहारी सिंग नें प्रोफ़ेसर फ़िल्म में बजाया गया है, वह भी इस दुनिया से बाहर की चीज़ है.सॆक्सोफोन के सुर सीधे तार सप्तक में मींड के साथ घूमते हैं तो यूं लगता है, कि जैसे किसीने बरफ़ के चाकू को सीने में गोद दिया है, और उसे हलके से घुमा रहा हो.साथ में तबले की ताल नें और भी गज़ब ढाया है.रफ़ी जी और लताजी के दर्द भरे सुर कलेजे को चीर कर अंदर घुस जाते हैं.

और क्या लिखूं और? आपही सुन खुद सुन लिजिये...और शंकर जयकिशन के इस कालजयी रचनाओं को दाद दिजिये.

7 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

वाह जी आज तो आपने परमानंद में ही डुबो दिया. बहुत धन्यवाद.

रामराम.

Old Monk said...

Kya baat hai. Excellent. This is what we expect from a musical genius like you. Here is great commentary, less known facts, such in depth explanation of nuances, perfectly suitable song selection. The list is endless.
After seeing this song from Aamrapali, you can't blame Ajatshatru for invasion of Vaishali. We would have done it sooner.

Manish Kumar said...

बहुत ही प्यारा और जानकारी भरा आलेख जिसमें शंकर और जयकिशन की अलग अलग विशेषताओ् को आपने बखूबी चिन्हित किया। तुम्हें याद करते करते मेरा बेहद बेहद पसंदीदा नग्मा है।

शरद कोकास said...

वाह जयकिशन जी को देखकर अच्छा लगा ।

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छा लेख है.सच है ,शंकर जयकिशन जी के संगीतबद्ध गीत मन को बहुत लुभाते हैं.ऐसा लगता है आप के यहाँ संगीत के लाइव प्रोग्ग्राम बहुत होते रहते हैं.शुक्रिया एक achchee पोस्ट के लिए.

डॉ .अनुराग said...

बेमिसाल पोस्ट ...आने वाले समय में संगीत प्रेमियों द्वारा इसे ढूंढ कर पढ़ा जाएगा यकीनन

श्रद्धा जैन said...

कमाल का लेख है
शुक्रिया इतनी सारी जानकारी बांटने के लिए

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