Friday, October 16, 2009

किशोर दा के साथ- कश्ती का खा़मोश सफ़र -



अभी परसों ही हमारे लाडले , मस्ताने ,ऒल राउंडर कलाकार , गायक किशोर दा की पुण्य तिथी थी. १३ अक्टूबर १९८७ को वे हमको दर्द भरा अफ़साना सुना कर हमेशा के लिये इस ज़िंदगी के सुहाने सफ़र को खत्म कर के कहीं दूर चले गये. दूर गगन के इस राही नें, इस मुसाफ़िर नें हमें अपने खुशनुमा व्यक्तित्व से हंसाया और दुखी मन के स्वरों द्वारा रुलाया.

किशोर दा का जन्म खंडवा में हुआ था. खंडवा याने हमारे शहर इंदौर से ढाई घंटे के रास्ते पर एक छोटा सा कस्बा, जहां किशोर दा का बचपन गुज़रा. आपको सभी को पता ही है, कि वे अपने जन्मस्थान से कितनी मुहब्बत करते थे, कि उन्होनें यह वसीयत भी कर रखी थी कि उनका अंतिम संस्कार खंडवा में ही किया जाये.

इस बार मैंने सोचा था कि उनके जन्मस्थान खंडवा जाऊं , जहां उनके जन्म दिन और पुण्यतिथी पर उत्सव सा माहौल होता है. सारे देश के कोने कोने से किशोर दा के दीवाने यहां आते हैं ,उनके पैतृक घर और समाधि स्थल को बडे भक्तिभाव से विज़िट करते हैं. वहां स्थानीय लायंस क्लब द्वारा एक कार्यक्रम भी रखा था, जिसमें मुझे भी किशोरदा के गीत गानें का आमंत्रण था. मगर किसी कारणवश वह निरस्त हो गया.

तो मैने सोचा कि हमेशा की तरह आज मैं फ़िर उसी जगह जाऊं जहां की पावन ज़मीं पर किशोर दा के कदम पडे थे, जिस फ़िज़ां में उनकी गायी हुई स्वरलहरीयां अभी भी अठखेलियां करती होंगी.

इसलिये मैं जा पहुंचा इंदौर के उस महाविद्यालय में जहां किशोर दा नें अपने कोलेज जीवन के तीन साल गुज़ारे.

हां, मैं बात कर रहा हूं इंदौर क्रिश्चियन कॊलेज की.

वहां की झलकीयां मैं दिवाली के बाद कुछ चित्रों और विडियो के ज़रिये पेश करूंगा.एक Audio Visual Tribute जिसे देख कर सुनकर आप आनंदित होंगे, और उन लोगों को भी सुकून हासिल होगा जो किशोर दा को इंतेहां मुहब्बत करते हैं और इबादत करते हैं.


रात को हमेशा की तरह , अपने स्टडी में बैठ कर मैने किशोर दा के पुराने दर्द भरे नगमें गाये, वो नगमें जो मैं खंडवा में गाने वाला था.

इसी बीच, जैसा कि आपको पिछले साल बताया था, किशोरदा का एक गीत मेरे ज़ेहन में बहुत गहरे बैठा हुआ है, जो मेरे किशोर वय में हुए एक मीठी याद की वजह से है.

गीत है कश्ती का खा़मोश सफ़र है, शाम भी है , तनहाई भी, दूर किनारे पर बजती है, लहरों की शहनाई भी...
आज मुझे कुछ कहना है, आज मुझे कुछ कहना है.

यह गीत किशोर दा नें सुधा मल्होत्रा के साथ गाया था, जिसमें दिलों के कोमल एहसासातों की अभिव्यक्ति बडी ही शालीन ढंग से की गयी है, जो आज की पीढी के लिये एक आश्चर्य या शगुफ़ा हो सकता है.

यह गीत मेरे किशोर वय में भोपाल में मैंने हमीदिया कॊलेज के स्टेज पर सुना था, जहां मेरे पिताजी प्रोफ़ेसर थे, और श्री मल्होत्रा थे प्रिंसिपल ,जो सुधा मल्होत्रा के पिताजी थे.तो गॆदरींग में यह गीत सुधाजी नें गाया था, और चाहा था कि कोई स्थानीय गायक उनके साथ वह गीत गाये. किसी नें मेरा नाम भी सुझाया था, मगर सुधा जी नें मुझे देख कर हंस कर बोला, अरे तुम तो अभी छोटे हो!! तुम रहने दो.

बस , आज यह गीत गा ही देता हूं, अब तो बडा हो ही गया हूं. मगर फ़िर मैंने हमारे ब्लोग जगत की प्रसिद्ध कवियत्री, गायिका, फ़ोटोग्राफ़र, पर्यटन विषेशग्य, सुश्री अल्पना वर्मा से अनुरोध किया कि इस दोगाने को मेरे साथ गायें , जो उन्होने सहर्ष स्वीकार किया और उपकृत किया. वे भी किशोर दा की तरह हर हुनर में विषेश कमाल रखतीं है!!!

इस गाने की विषेशता ये है, कि इसमें कोई कराओके का ट्रेक इस्तेमाल नहीं किया है, मगर मूल पार्श्व वाद्यों को मिक्स करनें का प्रयत्न किया गया है.आशा है आपको पसंद आयेगा.

आपको साथ ही में धनतेरस की शुभ कामनाये. आपको यह वर्ष धन और समृद्धी की वर्षा लेकर आये. साथ ही किशोर दा नें जैसे कहा है कहा है- आपको संतोषधन मिले, आनंद धन मिले यही कामना.(जैसा कि इस गीत को गाकर मुझे मिला)

दिवाली के बाद फिर मिलता हूं अपनी रिपोर्ट के साथ.... ब्रेक के बाद!!!

-------------------------------------

14 comments:

सागर said...

अति सुन्दर अभिव्यक्ती ....किशोर दा हमेशा हमारी यादों के झरोखे में गाते मुस्कुराते रहेंगे .....!

उनको श्रद्धांजलि देती चंद पंक्तियाँ मेरे भी मन ने उकेरी थी .... यदि आप मेरे ब्लॉग पर आयें तो अच्छा लगेगा !

http://sagarnaama.blogspot.com/2009/10/blog-post_12.html

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया रहा यह सफर.

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल 'समीर'

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत पसंद आयी आज की प्रस्तुति दिलीप भाई
स स्नेह दीपावली की शुभकामनाएं आपके परिवार के सभी के लिए
- लावण्या

राजकुमार ग्वालानी said...

इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए

जिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए

हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए

सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए

चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए

और सारे गिले-शिकवे भूल जाए

सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई

संगीता पुरी said...

किशोर कुमार जी के बारे में जानना अच्‍छा लगा !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

नितिन | Nitin Vyas said...

आपको और आपके परिवार, मित्रों को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.

नीलम शर्मा 'अंशु' said...

अति सुंदर ! बहुत-बहुत धन्यवाद। भाई 'कश्ती का ख़ामोश सफ़र है' किस फ़िल्म से यह भी बता देते तो बेहतर है ताकि उसे ढूंढ कर मैं सुनुं और अपने शहर के एफ. एम. श्रोताओं को भी सुनवाऊँ।

किशोर साहब की पुण्यतिथि, अशोक कुमार साहब का जन्मदिन है, और इसी दिन नुसरत फ़तेह अली खाँ साहब का जन्मदिन भी पड़ता है।

जिस तरह आप खंडवा ले गए, चलिए मेरे साथ रफ़ी साहब के गांव के सफ़र पर मेरे 'संस्कृति सरोकार' के माध्यम से। लोग अक्सर कहते हैं कि रफ़ी साहब का जन्म स्थान पाकिस्तान में हैं लेकिन उनका जन्म स्थान हिन्दुस्तान में ही है।

आपको भी प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

- नीलम शर्मा 'अंशु'

Alpana Verma said...

आप ने किशोर जी को याद किया और उनके कॉलेज का चित्र भी देखने को मिला.
आप के संस्मरण के बाकि चित्र विडियो का भी इंतज़ार रहेगा.
किशोर और सुधा मल्होत्रा का गाया यह गीत मैं ने भी पहली बार ही सुना था.
आप जैसे गुणी और बड़े कलाकार के साथ गीत में स्वर देने का अवसर आप ने दिया.इस के लिए मैं आप की आभारी हूँ.
[Is geet se judi aap ki yaaden aap ki post se maluum hui...warana main soch hi rahi thi jab dusre geeton ke track available hain to aap ne yahi gaana kyun chuna jiska track bhi nahin hai]
[मार्च में रिकॉर्ड किया गया हमारा पहला युगल गीत -दिल के नज़र से' अब तक ८३ बार download किया गया है.:)]

आप की खुशनसीबी है जो आप संगीत से जुडी इन महँ हस्तियों से मिलते रहे हैं.Sudha जी ने यह गीत [सोलो ]बीबीसी के एक प्रोगाम्म में live सुनाया था.
@
neelam ji yah gana film-girl friend ka hai.

शरद कोकास said...

एक पूरा द्र्श्य निर्मित कर देता है यह गीत

हरकीरत ' हीर' said...

दिलीप जी,

आपकी दिलकश नशीली आवाज़ में ये गीत सुना .....सुनते सुनते आपके कालेज के दिनों में जा पहुंची .....सोच रही हूँ .....उस शर्मीली नीली आँखों वाली से दिलीप जी क्या कहना चाहते होंगे .....और मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ ......!!

रंजू भाटिया said...

बेहतरीन पोस्ट किशोर कुमार जी के बारे में पढना हमेशा ही मनपसंद रहा है मेरे लिए .शुक्रिया

सागर नाहर said...

किशोरदा का मैं बड़ा प्रशंसक नहीं हुं परन्तु उनके कुछ गीत मुजे बहुत अच्छे लगते हैं, जिनमें से एक यह भी है।
इस गीत में संगीत/वाद्ययंत्रों का उपयोग बहुत कम होते हुए भी कमाल करता है, इसके बोल, कलाकारों का योगदान दिल को छू जाता है।
आप दोनों ने इस गीत को बहुत अच्छी तरह से निभाय़ा है, अल्पनाजी और दिलीपजी को बहुत बहुत बधाई।

सागर नाहर said...

एक बात और कहना चाहूंगा कि सुधाजी बहुत अच्छी संगीतकार भी हो सकती थी, उन्होने एक बार संगीतभी दिया है आपको याद होग वह गीत.. तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको, मेरी बात और है मैने तो मुहब्बत की है
हां, इस गीत का संगीत सुधाजी ने ही दिया है।

Anonymous said...

Kashti ka khamosh safar,
R u Kishore kumar re born ?
excellent singing!!

i was very pleased.

-jeetu_rajesh

Blog Widget by LinkWithin