Friday, August 15, 2008

मधुबन में राधिका नाचे रे



मुहम्मद रफ़ी यह नाम जेहन में आते ही हम एक ऐसे सुरेले संगीतमयी यात्रा पर निकल पडते है, जिसके सफ़र में हम आप रूबरू होते है पहाड की तलहटी के किसी घुमावदार पगदंडी से, या किसी बडे से शीतल पानी के झरने से, कलकल बहते हुए स्रोत से, या हल्की ,मीठी सी बयार से. हम बौरा जाते है, मन रक्स करने लगता है, और दिल चाहता है की यह रूहानी सफ़र कभी भी खत्म ना हो.

रफ़ी साहब के गानों पर बहुत कुछ सोचा था, अब अभिव्यक्त करने से थोडा और रूमानी हो जाऊं तो यारों मुआफ़ कर देना.

आप सब जानकारों ने जब भी उनको सुना तो पाया होगा की इससे मीठी, इससे पाक साफ़ और चिरयौवन आवाज़ दूजी नही हुई. कोई आश्चर्य नही की अपने ज़माने में लगभग ६०-७०% गाने जो हिरो , या कॊमेडियन या किसी भी चरित्र पर फ़िल्माये जाते थे, वे आवाज़ उधार लेते थे रफ़ी की.He was epitome of Youthfullness and rightousness in the character.किसी भी आवाज़ का ultimate - या ultima थे , एकदम मुकम्मल.

क्षमा चाहूंगा, यदि स्वयं प्रभु रामचन्द्र की भी आवाज़ होगी तो ऐसी ही होगी. आदर्श आवाज़!!

उन दिनों की फ़िल्मों के जो नायक होते थे वे ज्यादहतर सभ्य , अहिंसा वादी एवं दिल के साफ़, अच्छे इंसान हुआ करते थे, तभी तो रफ़ी साहब की आवाज़ उनपर मुआफ़िक बैठती थी .

रफ़ी जी के गानों में आपको कई रंग मिलेंगे. तो आज से शुरुआत करते है उनके नायाब और कालजयी गीतो के एक रंग से-

शास्त्रीय रंग या भजन रंग

कई गानें आपको याद आयेंगे- उसकी चर्चा अगले अंक में, मगर प्रस्तुत गीत तो ’ वाह भाई वाह ’

" मधुबन में राधिका नाचे रे "


आपने आजकल कई रिमिक्स सुने होंगे, सुन ही रहे होंगे. मगर, इससे पहले भी यह नुस्खा आज़माया जा चुका है, बडे बडे स्थापित गायकों की आवाज़ में. मगर उद्देश्य था बडा ही विनीत. दरअसल, वे गाने फ़िर से रिकॊर्ड किये गये, जिन्हे बडी शोहरत मिली , जिन्हे अच्छे और लेटेस्ट तकनीक के इस्तमाल से बेहतर बनाया गया. रफ़ी, मन्ना दा, महेन्द्र कपूर आदि.

फ़िल्म कोहिनूर के लिये राग हमीर में निबद्ध किये गया यह गीत उसी श्रेणी में है, जिसमें आप पायेंगे की कहीं कहीं रफ़ी जी ने ओरिजिनल साउंड ट्रेक से अलग भी गाया है,जो सुखद है.

नौशाद साहब की कोमेंट्री भी क्या गज़ब !!

अंत में एक दिल की बात! यह गाना इस खाकसार ने ७ वर्ष की उम्र से गाना शुरु किया, (पहला गाना )इसलिये भी, रफ़ी जी पर मेरी यह ब्लोगयात्रा का आगाज़ भी इसी महान गीत से..

आपके विचारों से संबल मिलेगा, या सुधरने का मौका मिलेगा.


2 comments:

दिलीप कवठेकर said...

किसी तकनीकी वजह से टिप्पणी की व्यवस्था नही हो पा रही थी, लेकिन कई प्रेमीयों ने मेल कर यह समस्या बताई.

शुक्रिया दोस्तों.

Overwhelmed I am .अभिभूत हूं.

अब वह टॆग लग गया है, और आपके प्रतिक्रिया के इन्तज़ार में ..

Harshad Jangla said...

Dilipbhai
Ajar amar yeh geet sunakar to din sudhar diya aapne.Naushad saab ki comments were exce;;ent.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

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