शास्त्रीय रंग...और रफ़ी
मोहम्मद रफ़ी जी के गाये हुए शास्त्रीय संगीत पर आधारित अनेक गानों में इस गाने का क्रम सबसे उपर लगता है. इस के बारे में ज्यादा कहने के लिये कुछ नही, वरन सुनने के लिये ,मन के सानंद आनंद से डोलने के लिये है. सिवाय इसके की यह गाना रफ़ी साहब नें स्वर कोकिला लता मंगेशकर के साथ गाया है, जिसमें एक ही गाने में चार रागों का प्रयोग किया गया है.स्थाई में राग सोहोनी है, और ३ अंतरों में है राग बहार, राग जौनपुरी, और राग यमन.
यह बंदिश सन १९५७ में स्वर्ण सुंदरी फ़िल्म के लिये आदि नारायण राव नें संगीत बद्ध की,(ताल त्रिताल). लेकिन इतने सुंदर शब्दों को कविता में किसने ढाला, यह पता नही. मेघराज नें बादरीया का श्याम श्याम मुख चूम लिया है..
वाह,वाह.जानकारों से आग्रह है कि जानकारी बढायें.
कुहू कुहू बोले कोयलिया ,
कुंज कुंज में भंवरे डोले ss,
गुन गुन बोले SS,आ SSS..(कुहू कुहू)
सज सिंगार रितु आयी बसंती,
(आलाप)
जैसे नार कोई हो रसवंती, (सरगम)
डाली डाले कलियों को तितलियां चूमें
फ़ूल फ़ूल पंखडिया खोले, अम्रत घोले, आsss.. (कुहू कुहू)
काहे ,काहे घटा में बिजली चमके,
हो सकता है, मेघराज नें बादरिया का श्याम श्याम मुख चूम लिया हो..
चोरी चोरी मन पंछी उडे, नैना जुडे आsss ..(कुहु कुहु)
(आलाप)
चंद्रिका देख छाई, पिया, चंद्रिका देख छाई..
चंदा से मिलके, मन ही मन में मुसकाई, छाई,चंद्रिका देख छाई..
शरद सुहावन मधुमन भावन, २
बिरही जनों का सुख सरसावन, २
छाई छाई पूनम की छटा,घूंघट हटा, आsss (कुहू कुहू)
(आलाप)
सरस रात मन भाये प्रियतमा ,कमल कमलीनी मिले sss २
सरस रात मन भाये
किरण हार दमके, जल में चांद चमके,
मन सानंद आनंद डोले २
सरगम ...
यह गाना अछ्छे अच्छे गायकों के लिये आज भी बडी चुनौती है. जगह तो दिखती है, मगर गले में नही उतरती. उतरती है तो उठती नही.
रफ़ी और लता को सलाम.
Wednesday, August 20, 2008
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8 comments:
पं.भरत व्यास की वरेण्य क़लम का कारनामा है यह.
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धन्यवाद,
आपकी जानकारी का और मेरे ब्लोग पर आमद का. आमद-ओ-रफ़्त चलती रहे , रौनके ब्लोग युंही बढती रहे.
वरेण्य कलम एक लाजवाब मिसरा है.भाषा के इतिहास में, या भविष्य में दर्ज होने जैसा.
वे तो महान गायक थे ही .वो कशिस अब कहाँ मिलाती है किसी के गायन में
अति सुंदर. प्रस्तुति और जानकारी के लिए धन्यवाद!
रफी साहब की तारीफ शब्दों में कर पाना मुश्किल है। संगीत के इस देवता ने अपने साथ संगीत को भी अमर कर दिया।
आपने समीक्षा भी बहुत बढ़िया की, बधाई
इस तरह रागमालाओं पर बने और भी गीतों के बारे में जानने की इच्छा है। मेरे ध्यान में एक गीत है फिल्म हमदर्द का गीत ऋतु आये ऋतु जाये सखी री मन के मीत ना आये यह गीत भी चार रागों क्रमश: गौड़ सारंग, गौड़ मल्हार, जोगिया और बहार पर आधारित है।
धन्यवाद, सागर जी. आपके हौसला अफ़ज़ाई का, मेरे जैसे नवांतुक के लिये जो शब्द आपने लिखे, कोशिश करूंगा कि कुछ अच्छा काम मुझसे भी हो सके, आपके नक्शेकदम पर चलते हुए.
ब्लॊग की दुनिया में गाने के चयन से ले कर उसपर कुछ विशिष्ट, कुछ अलंकृत भाषा शैली में,नयी सोच लिये हुए लिखा जा सकेगा तो ही पोस्ट सार्थक होगा, ऐसा मुझे अपने इस अल्प प्रवास में मेहसूस हुआ.उतनी प्रतिभा होने के लिये परिश्रम कर के लिखने के रियाज़ के उद्देश्य से बिस्मिल्लाह किया है.
किसी भी संगीत रचना के पीछे उसके रचयिता की जो सोच रही होगी, उसके अपनी अपनी सोच से व्याख्या कर , व्यक्त कर हम अपने इस सुरमयी बिरादरी के सदस्यों से तादात्म्य स्थापित कर सकें, यह लक्श्य.
आपके संदर्भित पोस्ट पर जा कर सुन आया, एक अलग ही अनुभव...
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