Saturday, August 23, 2008

वृंदावन का कृष्ण कन्हैया

रफ़ी - शास्त्रीय रंग एवम भजन ..

आज कृष्ण जन्माष्टमी है, और कल भी.

तो क्यों नही आज उस नटखट , नंद गोपाल कन्हाई की याद में रफ़ी साहब की आवाज़ में कोई गीत पेश किया जाये.आज भी और कल भी. हम अभी भी रफ़ी के शास्त्रीय रंग के गानों की मेहफ़िल में है जनाब. कुछ जी नही भर रहा है.

वैसे गाने तो बहुत सारे है रफ़ी जी के, जो कृष्ण के विषय पर है,जैसे-

राधिके तूने बंसरी चुरायी, बडी देर भई नंदलाला, ना जईयो राधे छेडेंगे श्याम..

लेकिन प्रस्तुत गीत तो कालजयी है, लता के साथ गाकर अमर हुए इस गीत को राजेन्द्र कृष्ण नें लिखा(जिनके नाम में ही कृष्ण है)और हेमंत दा नें स्वरों मे पिरोया है. सन १९५७ की ’ मिस मेरी ’ फ़िल्म के लिये--

वृंदावन का कृष्ण कन्हैया , सब की आंखों का तारा,
मन ही मन क्यूं जले राधिका,मोहन तो है सब का प्यारा..


आपने देखा, ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी कैसे हल्के फ़ुल्के रोल में है. रेखा के पिता जेमिनी गणेशन और जमुना.. साथ में हमारे किशोर कुमार भी...(हास्य कलाकार मारुती या जगदीप भी ?)पूरी धमाल से भरी फ़िल्म थी. एक और बेहद सूरीला और बेजोड गीत था - सखी री सुन बोले पपीहा उस पार.. क्या संयोग था- लता और आशा की आवाज़ एक साथ.वो फिर कभी.

कहीं तो यह भी कहा गया है की ओरिजिनल गाना तमिल में था जिसे पी सुशीला और ए एम राजा नें गाया था. मगर गाने का स्वरूप खालिस उत्तर हिन्दुस्तानी लग रहा है, पूरबी रंगत लिये, हेमंत दा के जन्म स्थान वाराणसी की तरफ़ का.अतः यही ओरिजिनल है , बात खतम!

देखा जाये तो किशन कन्हैया हिन्दी फ़िल्मों के सभी गीतकारों का और संगीतकारों का आंखों का तारा थे. संपूर्ण अवतार थे वे, मगर दैहिक प्रेम की बजाय , आत्मीय प्रेम के पर्याय .An Epitome of Platonic Love !! तभी तो उन दिनों के नायक और नायिका के मन की सच्ची अनुरागी अवस्था कृष्ण और राधा के निस्पृह प्रणय की प्रेम गाथा द्वारा संदर्भित होती थी. आज कल युवाओं में वह तन मन की शुद्धता कहां? तभी तो आज कल ऐसे गीत कहां बनते है ( अपवाद स्वरूप - लगान फ़िल्म के गाने को छोडकर, जिसमें लगभग यही भाव थे)

अमूमन, जो भी भजन होते थे हिंदी फ़िल्मों में वह शास्त्रीय स्वरूप में ढाले जाते थे, और इसी विषय वस्तु के आसपास होते थे. साथ में यहां दक्षिणी फ़िल्म होने के कारण इसमें नृत्य का भी समावेश किया गया जो सोनें में सुहागा जैसा सुहाता है. सुना नही आपने, क्या खूब तबला और नाल बजी है, अलग अलग ठेके में.. और बांसुरी की मन मोहने वाली धुन..क्या समाधी तक नही ले जाती?

शब्दों पर भी ज़रा गौर करें.

रंग सलोना ऐसा जैसे छाई हो घट सावन की
एरी मैं तो हुई दिवानी, मन मोहन मन भावन की
तेरे कारण देख सांवरे छोड दिया मैनें जग सारा

(एरी मैं तो ..यहां मीरा भी उपस्थित है)



आईये और प्रेम रस में सुध बुध खो जायें..

2 comments:

RAJ SINH said...

yeh aur o raat ke musafir sun pachas saal peeche teens me pahunch gaya.film hai miss merry.meena kumaree ke sath gemini ganeshan(rekha ke pita)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जितनी लत्ता दीदी की आवाज़ मेरी प्रिय है उसी तरह रफी साहब की आवाज़ की भी मैँ बहोत नडी फेन हूँ
आपकी आवाज़ की तारीफ सुनी हैँ :)
~~~ उसका लिन्क भी दीजियेगा.
अभी तो,लत्ता दीदी की आवाज़
रफी सा'ब की आवाज़ की सुनहली,रुपहली, झिलमिलाती सैरगाह मेँ,
दिल सैर कर रहा है .
जिसके लिये आपका बहोत सारा शुक्रिया अदा करती हूँ
ऐसे ही गीतोँ के खजाने पेश करते रहियेगा,
स स्नेह,
लावण्या

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