रफ़ी - भजन रंग
जय श्री कृष्ण !!!
वास्तव में जन्माष्टमी कल थी या आज है इसका किसको खयाल.. हमारे मन की अवस्था तो यूं है - मन तरपत हरि दर्शन को आज..
आज यह गीत कृष्ण भजन है और बैजु बावरा के प्रसिद्ध भजन का रिमिक्स है,खुद रफ़ी जी नें गाया. जैसा की पिछली बार”मधुबन में ’गाने में था.गीत में वैसा ही improvisation .खुला , कृष्ण भक्ति में मगन हो कर गाया रफ़ी जी द्वारा. एक आग्रह, कृपया पुराने ओरिजीनल गाने से तुलना न करें.
मै और कुछ भी लिख पाने की स्थिती में नही हूं. अभी अभी संजय भाई के सुरपेटी ब्लॊग पर माखन मिश्री खा कर आ रहा हूं . आप भी प्रसाद ग्रहण करने वहां पधारें.www.surpeti.blogspot.com.
प्रस्तुत भजन के संदर्भ में इस के संगीतकार जनाब नौशाद सहाब खुद कहते है-
गूंजते है तेरे नगमों से अमीरों के महल,
झोपडों में भी गरीबों के तेरी आवाज़ है,
अपनी मौसीकी पे सबको फ़क्र होता है मगर,
मेरे साथी आज मौसीकी को तुझपर नाज़ है...
यह कृष्ण के लिये कहा गया है, या रफ़ी जी के लिये , अपने अपने अर्थ आप स्वयं लगांयें...
देखा जाये तो सही अर्थों में धर्म निरपेक्षता हमें फ़िल्म जगत में ही दिखाई पडती है.
स्वयं भगवान शिव द्वारा रचित राग मालकौंस पर निबद्ध इस कृष्ण भजन को मोहम्मद रफ़ी नें गाया, मोहम्मद शकील ने लिखा, और नौशाद अली ने बनाया.. क्या बात है..
मुकद्दस पाकीज़गी से बनाया गया यह गीत आप को बेखुद कर दे ,आप पर अगर कैफ़ियत तारी हो जाये तो फिर मुझसे मत पूछियेगा कि ये किसका कमाल है..
आप खुद ही तय किजिये.....
मुझ पर भी इसकी कैफ़ियत तारी हो गयी है, इसलिये - दिलीप के दिल से - भी यह भजन सुनने का आग्रह.. यानी , मेरी आवाज़ में, वैसे ही- मै, आप, और रफ़ी !!
रफ़ी जी और आप से क्षमा चाह्ते हुए..
Monday, August 25, 2008
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1 comment:
राग मालकौंस पर आधारित यह भजन दिल को छू जाता है।
रफी साहब, नौशाद साहब और कलाकारों ने बड़ी मेहनत की। रफी साहब तो जैसे मानो उन लल्लू भाई की तरह कैफ़ियत में डूब कर इस गीत को गा रहे हों, तभी इतना बढ़िया गीत बन पाया।
फिलहाल तो मैं सुनते सुनते झूम रहा हूँ।
धन्यवाद दिलीप साहब।
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