Monday, September 13, 2010

यही वो जगह है, यहीं पर कभी हमने आपके सामने गाया था....



दोस्तों, कभी कभी हम अपने जीवन के ऐसे दौर से गुज़रते हैं, जब हमें खुदा हर तरफ़ से खुशियां बरसाता है, और आपका दिल बल्ले बल्ले उछल रहा होता है.

मगर , यूंही चलते चलते यादों के पुराने खंडहरों से हम गुज़रने लगते हैं, और खुशी और ग़म के समानांतर रास्ते पर जब हमारे गाडी़ हिचकोले खाती है,तो मीठी सी चुभन हो या तीखी सी ख़लिश हो, आप उसमें रमने लगते हैं, और दीदाए तर होते हैं.

पिछले दिनों, किशोर दा की जन्मदिन की खुशिया मनाईं कैरो (ईजिप्ट)में, जैसे कि रफ़ी साहब के पुण्यतिथी पर उन्हे याद किया था. रफ़ी साहब के बांद्रा स्थित घर के बरामदे में रखी हुई उनकी फ़िएट याद आये, जिसमें चाभी भी लटक रही है उस दिन से, या किशोर दा के बंगले पर गेट सेही उन्हे पेड पर चढे हुए गाना गाते हुए देखा और सुना....सभी यादें दिल में घर किये हुए है.

याद पडता है कि किशोर दा गाना गा रहे थे आशाजी का, जो दूरी के वजह से ठीक से सुनाई नही पड रहा था.. गाना था.........

यही वो जगह है ,यही वो फ़िज़ाएं, यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे....

पता नहीं क्यों, जिस खूबसूरती से आशा जी नें गाया था वो गाना, किशोर दा किसी और मूड में दर्द के काढे़ में अपने स्वरों को उकाल उकाल कर क्या समा बना रहे थे.चौकिदार नें अंदर नहीं जाने दिया, इसका ग़म ना करते हम तो बडे से जायेंट व्हील पर बैठ कर स्वरों के उस उतार चढाव में खो गये.फ़िर अचानक बीच में गाना रोक कर किशोर दा चिल्लाकर किसे को आवाज़ देने लगे नारायण,नारायण... तो हम खिसक लिये.

तो अभे जब आशाजी की जन्मदिन की खुशियां मनाईं, तो उस दिन ये गाना रिकोर्ड कर लिया , कुछ ऐसे ही अंदाज़ में. संय़ोग ये रहा, कि इन दिनों में अल्पना जी से बातचित हुई तो उन्होने ये बताया कि अभिजीत नें भी इसे गाया है. खैर, आप भी सुनिये.

आशा जी सुनेंगी तो नाराज़ होंगी ही. पिछली नाराज़गी भारी पडी़ थी मुझे, जब इंदौर में उन्होने एक कार्यक्रम दिया था, और मैने, अखबार नईदुनिया में उसकी समीक्षा में उनके आलोचना के थी, क्योंकि उन्होने अधिकांश गीत नये लिये थे, और मेरे जैसे अनेक दीवानों को निराश किया था. इसलिये दूसरे दिन जाने से पहले उन्होनें नाराज़गी से लताडा था मुझे.(सर आंखों पर)


चलिये अब सुनिये, वही गीत और अगली बार समय रहा तो उस बात का जिक्र करूंगा, कि जब वे इंदौर आयीं थीं लताजी के नाम का पुरस्कार ग्रहण करने, और गाने का प्रोग्राम देनें से इंकार कर दिया था.और फ़िर इस खा़कसार को स्टेज पर आपातस्थिती में उतरना पडा था. आप सोच सकते हैं, कि जो पब्लिक उन्हे सुनने आये थी उसे मुझ जैसे नाचीज़ को सुनना पडा होगा तो क्या हुआ होगा!!!!(रब की मर्ज़ी)

यही वो जगह है, जहां कभी हमने आपके सामने गाया था....

Blog Widget by LinkWithin